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जयपुर।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच लंबे समय से चली आ रही अदावत अब एक बार फिर सियासी गलियारों में गूंजने लगी है। लोकसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं ने जनता को संदेश देने के लिए एक साथ सभाएं कि लेकिन यह अपने दिल से अदावत को नहीं निकाल पाए। नतीजा यह रहा की चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ गई है, वहीं दिग्गज नेता भी हाशिए पर जाते दिख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दोनों दलों की ओर से जमकर राजनीतिक गेम खेला गया है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जहां सचिन पायलट को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आगे रखकर हार का ठीकरा उनके सिर फोड़ने की तैयारी कर ली है वहीं इसमें बड़ा गेम करते हुए सचिन पायलट ने भी अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत की पैरवी कर अपना दामन बचाने की कोशिश की है।
जोधपुर सीट से अगर वैभव गहलोत नहीं जीत पाए तो यह नैतिक रूप से अशोक गहलोत की बड़ी हार होगी ऐसे में अशोक गहलोत अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए इस हार की जिम्मेदारी खुद लेंगे और पायलट इससे बच निकलेंगे। हालांकि अब तक मिली रिपोर्टों के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस 3 से चार सीटों तक ही सिमट रही है। ऐसे में किसी एक बड़े नेता पर हार की गाज गिरना तय है माना जा रहा है की हार का ठीकरा सचिन पायलट के सर फोड़ने की पूरी तैयारी है और पायलट को डिप्टी सीएम या पार्टी प्रदेश अध्यक्ष में से एक पद छोड़ना ही होगा।
हालांकि गहलोत पहले ही यह चाहते थे कि पायलट संगठन में रहकर काम करें जबकि राहुल गांधी के दबाव में पुणे डिप्टी सीएम बनाना पड़ा अब लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले हैं इन नतीजों के बाद ही कयास है कि इन दोनों ने बड़े नेताओं के बीच चल रही राजनीतिक रंजिश खुलकर सामने आ सकती है।