जयपुर। राज्य में सरकार बनाने के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत ने अभी तक सीएम पद का अपना दावा छोड़ा नहीं, बस रणनीति बदली है. अब दोनों का जोर अपने गुट के ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाना, जिससे पार्टी सत्ता में आई तो विधायकों के जरिए सीएम का दावा ठोक सके।
पीसीसी में अब यहीं चर्चा है कि पायलट और गहलोत दोनों नेता बीजेपी को मात देने के लिए एक साथ काम करेंगे या खुद के मुख्यमंत्री बनने की जंग लड़ेंगे. कांग्रेस की इस गुटबाजी की चर्चा यहां आम है, लेकिन पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ये मान लिया कि पार्टी सत्ता में तभी आ सकती है जब गहलोत और पायलट भिड़ने के बजाय दोस्ती कर लें.
एक सप्ताह पहले करौली में कांग्रेस की संकल्प रैली में मंच तक सचिन पायलट और अशोक गहलोत एक ही बाइक पर पहुंचे थे. बाइक चला रहे थे सचिन पायलट और पीछे बैठी सवारी थे अशोक गहलोत. राहुल गांधी ने कहा कि पायलट के पीछे गहलोत को बाइक पर बैठे तस्वीर देख कर ही मैंने मान लिया था कि अब राजस्थान में कांग्रेस पार्टी चुनाव जीत जाएगी.
राहुल गांधी ने कहा कि इससे अनुमान लगा लिया कि राजस्थान में कांग्रेस अब एकजुट होकर मिलकर चुनाव लड़ रही है. यानी गुटबाजी खत्म होने की उम्मीद है। राहुल गांधी का यह बयान राजनीतिक हलकों में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है, पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी यह मान रहा है कि यहां सब कुछ सही नही चल रहा है और गहलोत तथा पायलट के बीच दूरियां है। ऐसे में वे किसी नेता पर कार्रवाई से बचने के लिए दोनों के एक करने में ही जुटे हुए है।
राहुल गांधी ने ये कहकर राजस्थान कांग्रेस में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच गुटबाजी की चौड़ी दरार की ओर इशारा किया कि जनता की तकलीफ और बीजेपी को हराने की मंशा दोनों में एकजुटता लेकर आई है. उन्होंने कहा कि जनता के दर्द ने पार्टी को एकजुट किया. राहुल गांधी ने कहा कि अमूमन नेताओं में एकजुटता लाने के लिए उन्हें बैठाकर समझाना पड़ता है, लेकिन दोनों ने खुद ही तय किया कि वे साथ चलेंगे.
पिछले महीने ही इससे पहले रोड शो के बाद रैली में राहुल गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत को पहले हाथ मिलाने और फिर गले लगने के लिए कहा था। राहुल के फरमान के बाद न केवल दोनों मंच पर गले मिले उसके बाद एकजुटता दिखाने के लिए कांग्रेस की संकल्प रैलियों में बस में बैठकर गहलोत और पायलट एक साथ जाने लगे।
राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत कई दफा खुद के सीएम के चेहरे और नेतृत्व का दावा इशारों में ही नहीं मीडिया के सामने कह चुके हैं.
अशोक गहलोत खुद की लोकप्रियता को आधार गिना कर दावा करते नजर आए. साल 2013 की हार को वह खुद की हार के बजाय मोदी लहर का नतीजा बता चुके हैं। दोनों के चुनावी मैदान में उतरने का असर ये हुआ कि राजस्थान में पार्टी को बूथ स्तर पर मजबूत करने के लिए आयोजित किए गए मेरा बूथ मेरा गौरव कार्यक्रम दोनों गुटों के बीच शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बन गया था और आपसी आरोप- प्रत्यारोप शुरू होने लगा था.