Jaipur News। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे वर्चस्व की लड़ाई को समाप्त करने के लिए कांग्रेस के आलाकमान की सारी कोशिशें नाकाम होती नजर आ रही है आलाकमान के फार्मूले को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लागू करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं और यही नहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आलाकमान तक अपने विश्वस्त मंत्रियों की माध्यम से यह संदेश भी पहुंचा दिया है कि राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में उन्हीं की चलेगी अर्थात उन्हीं का निर्णय रहेगा ।
आलाकमान के दिशा निर्देश पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रहे विवाद को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव केसी वेणुगोपाल, राजस्थान के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार राजस्थान का दौरा कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलकर पायलट गुट को समायोजित करवाने का प्रयास कर चुके हैं।
राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने तो लगातार तीन दिनों तक कांग्रेस के सभी विधायकों, बसपा से आए छह विधायकों, सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों से फीडबैक ले चुके हैं।
फीडबैक के दौरान अधिकांश विधायकों ने माकन से सरकार में शामिल कई मंत्रियों की जमकर शिकायतें भी की थी । लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला और यही कारण है कि अगस्त महा समापन की ओर है लेकिन मैं तो राजस्थान में मंत्रिमंडल का पुनर्गठन विस्तार और नहीं राजनीतिक नियुक्तियां अभी तक नहीं हो पाई है ।
कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राजस्थान में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद और महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष की पुर्नवृत्ति न हो और सचिन पायलट समर्थकों को भी पर्याप्त सम्मान मिले व उन्हें भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए। इसके लिए कांग्रेस आलाकमान द्वारा पूरी कवायद की जा रही है।
मगर राजस्थान में मंत्रिमंडल में फेरबदल व राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पा रही है। अशोक गहलोत चाहते हैं कि मंत्रिमंडल का सिर्फ विस्तार किया जाए। मंत्रिमंडल में रिक्त स्थानों पर नए मंत्रियों की नियुक्ति हो। किसी भी वर्तमान मंत्री को हटाया नहीं जाए। जबकि कांग्रेस आलाकमान के पास राजस्थान सरकार के कई मंत्रियों के खिलाफ लंबी-चौड़ी शिकायतें पहुंची र हैं।
तो दूसरी और सचिन पायलट भी अपने समर्थक 6 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करवाना चाहते हैं लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पायलट समर्थक 3 विधायकों को ही मंत्री बनाने की जिद पर अड़े हैं और पायलट खेमे से मंत्री बनने वाले तीन विधायकों का चयन भी मुख्यमंत्री गहलोत अपनी मर्जी से करना चाहते हैं जो पायलट को मंजूर नहीं है।
माकन का जबाव दिला दिया गहलोत ने
अपनी तीन दिवसीय यात्रा के बाद दिल्ली रवानगी से पूर्व पत्रकारों से बातचीत में माकन ने तो इतना कह दिया था कि मैं ही दिल्ली हूं। उनका इशारा था कि वह जो निर्णय करेंगे वही कांग्रेस आलाकमान का निर्णय माना जाएगा।
मगर माकन द्वारा लिए गए फीडबैक का अभीतक कोई नतीजा नहीं निकला है। वहीं मुख्यमंत्री गहलोत के नजदीकी स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने यहां तक कह दिया था कि राजस्थान में तो कांग्रेस के एकमात्र आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही हैं।
जैसा गहलोत चाहेंगे वैसा ही राजस्थान में होगा। धारीवाल के बयान को माकन के मैं ही दिल्ली हूं वाले बयान का जवाब माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धारीवाल से बयान दिलवाकर गहलोत ने माकन को भी उनकी सीमा में बांध दिया है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी राजस्थान का पूरा मामला स्वंय देख रही हैं। सचिन पायलट की बगावत के बाद प्रियंका गांधी के प्रयासों से ही पायलट फिर से पार्टी के साथ आ गए थे। उस समय प्रियंका गांधी ने पायलट से वादा किया था कि उनकी सभी समस्याओं का समाधान करवाया जाएगा और पार्टी में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया जाएगा।
प्रियंका गांधी के प्रयासों से ही गहलोत व पायलट के मध्य उपजे विवादों को दूर करवाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने वरिष्ठ नेताओं अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल व अजय माकन की तीन सदस्य समिति बनाई थी। उस समिति को पायलट व गहलोत के मध्य सुलह करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन पटेल के निधन के बाद माकन और वेणुगोपाल ने प्रयास जारी रखे परंतु नतीजा अभी तक नही निकल पाया ।
और मंत्रिमंडल विस्तार पुनर्गठन नहीं होने तथा राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पाने से प्रदेश कांग्रेस के नेताओं कार्यकर्ताओं में अंदर ही अंदर असंतोष पनप रहा है ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपनी बात पर अड़े हैं। उनका कहना है कि पायलट की बगावत के समय पार्टी का साथ देने वाले विधायकों व मंत्रियों को पहले तरजीह मिलनी चाहिए। चूंकि पायलट ने बगावत कर एक तरह से गहलोत सरकार को उखाड़ने का पूरा प्रयास किया था। मगर पार्टी विधायकों, मंत्रियों, बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों व निर्दलीय विधायकों के समर्थन से पायलट व भाजपा के मंसूबे पूरे नहीं हो पाए थे।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोरोना के पहले चरण के प्रारंभ होने के बाद से ही अधिकांश समय अपने सरकारी आवास से ही कार्य कर रहे हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर वह अपने आवास से बाहर भी नहीं निकले हैं। पिछले दो महीनों से तो मुख्यमंत्री गहलोत अपने आवास पर भी किसी से व्यक्तिगत नहीं मिलकर सिर्फ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही बात कर रहे थे। दो महीने के बाद 15 अगस्त के दिन पहली बार गहलोत अपने सरकारी आवास से बाहर निकलकर कुछ कार्यक्रमों में शामिल हुए थे।
विधानसभा सत्र के बाद ही होगा..
आगामी नौ सितंबर से विधानसभा का मानसून सत्र आहूत किया जा रहा है। ऐसे में संभावना है कि मंत्रिमंडल का विस्तार भी उसके बाद ही किया जाएगा। मुख्यमंत्री गहलोत ने जितनी सख्ती पायलट को लेकर दिखाई है। वैसा कड़ा रुख उन्होंने उससे पहले कभी नहीं किया।
इसलिये लगता है कि राजस्थान की राजनीति में अंततः वही होगा जो अशोक गहलोत चाहेंगे। पायलट कितना भी भागदौड़ कर लें, गहलोत की मर्जी के बिना राजस्थान में कुछ भी नहीं होने वाला है।