Jaipur news /ऋषिकेश राजोरिया । राजस्थान का राजनीतिक घटनाक्रम एक रोचक फिल्म की तरह अत्यंत रोचक मोड़ पर है। अशोक गहलोत की सरकार खतरे में होने का प्रचार किया जा रहा है, जबकि अब तक उनसे न तो किसी ने इस्तीफा मांगा है और न ही किसी ने बहुमत साबित करने की मांग की है।
ऐसा कुछ नहीं हुआ, फिर भी मामला हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा हुआ है और विकट राजनीति हो रही है। यह घटनाक्रम 10 जुलाई से शुरू हुआ, जब सचिन पायलट के समर्थक सक्रिय हुए, जिसकी सूचना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मिल गई। सचिन पायलट सहित करीब आधा दर्जन लोगों को नोटिस जारी हो गए। इस नोटिस से पायलट को आहत होना ही था।
इसके बाद उन्हें भाजपा की मदद से राजस्थान की सरकार गिराने की तैयारी करते हुए देखा गया। 12 जुलाई को हरियाणा के मानेसर स्थित एक बड़े होटल में 30 कमरे बुक करवाए गए। कहा जाता है कि ये कमरे जेपी नड्डा के कहने से बुक हुए थे।
सचिन पायलट पायलट के समर्थक करीब 18 विधायक वहां पहुंच गए। इसकी सूचना मिलते ही अशोक गहलोत ने कांग्रेस के सभी विधायकों को फेयरमोंट होटल में ठहरा दिया। निगरानी बढ़ा दी कि कोई पैसे देकर विधायकों को खरीद न ले। साबित हुआ कि कांग्रेस के विधायक बिकाऊ हैं। 30-35 करोड़ रुपए तक का भाव बताया जाता है।
उसके बाद से बयानबाजी हो रही है। अदालतों में याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। हकीकत यह है कि अशोक गहलोत की सरकार पूरे बहुमत और नियम कायदे के साथ कायम है और सचिन पायलट के खेमे में शामिल विधायकों को भी पार्टी से नहीं निकाला गया है। हम कह सकते हैं कि कांग्रेस के विधायकों में कुछ सचिन पायलट के साथ हैं और बाकी के अशोक गहलोत के साथ।
गहलोत की राजनीतिक सफलता यही है कि पायलट इतने विधायक नहीं जुटा सके कि वह भाजपा की सहायता से सरकार गिरा सकें। इस रोचक फिल्म में मनोरंजन के सभी तत्व हैं। कांग्रेस का विधायक दल है। दोनों की खींचतान देख रही भाजपा है। सत्ता की खींचतान है। आलीशान होटलों में विधायकों की बाड़ाबंदी है। कुछ विधायक एक होटल में, बाकी के दूसरे होटल में और होटल में तो सभी सुविधाएं मिलती हैं। सरकार बचाने और गिराने में इस समय होटलों पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। कोरोना काल में जिन होटलों में कोई कस्टमर फटकता नहीं था, विधायकों के कारण ऐसे दो होटलों में अच्छी रौनक हो गई है।
मीडिया के चुनींदा फोटोग्राफरों को विधायकों की तस्वीरें खींचने की अनुमति है। कोई महिला विधायक साइकल चला रही है। कुछ युवा विधायक क्रिकेट खेल रहे हैं। कुछ गपशप में लगे हैं। समय काटने के लिए फिल्म देख रहे हैं। कभी मुगल-ए-आजम तो कभी शोले। कुछ मंत्री फाइलें देखकर यह साबित करने का नाटक कर रहे हैं, कि वे निष्क्रिय नहीं हैं, होटल में भी सरकारी काम कर रहे हैं।
मंत्रिमंडल की बैठक भी होटल में ही हो रही है। इतना बड़ा सचिवालय वीरान है। विधानसभा में पक्षी उड़ रहे हैं। मंत्रियों के बंगले खाली पड़े हैं। विधायकों के घर वाले नहीं जानते कि वे कब तक क्वारंटाइन हैं।
इन विधायकों ने ऐसा आनंद जिंदगी में कभी नहीं उठाया होगा। इन्हें कोई चिंता नहीं है। कोरोना फैलता है तो फैलता रहे। क्षेत्र को सरकारी अधिकारी संभाल ही रहे हैं। कलेक्टर और एसपी अपना काम मुस्तैदी से कर ही रहे हैं। होटल में समय काट रहे सभी विधायक और मंत्री यह साबित कर रहे हैं कि सरकार चलाने में उनका क्या योगदान है? उनके नहीं होने से भी सरकार चलती है।
पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए हैं। गहलोत को कमजोर करने के लिए भाजपा की तरफ से बहुत कुछ हो रहा है। अशोक गहलोत के भाई, बेटे के सहयोगी, निकट समर्थक आदि पर ईडी और सीबीआई के छापे पड़ चुके हैं। गहलोत के आर्थिक स्रोतों की जबर्दस्त निगरानी हो रही है। गहलोत सरकार ने ऑडियो टेप मीडिया में लाकर अलग तहलका मचाया हुआ है।
राजस्थान में केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के खिलाफ भी धोखाधड़ी का एक पुराना मामला खुल गया है। शेखावत पूरे घटनाक्रम में भाजपा की तरफ से कमान संभाले हुए हैं। इस रोचक कहानी में मनोरंजन के सभी तत्व आ रहे हैं। सचिन पायलट, अशोक गहलोत और भाजपा। भाजपा में भी दो गुट हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पूरे मामले में खामोश है, जबकि एक गुट मुखर है।
केंद्र में सर्वेसर्वा बनी भाजपा किसी भी राज्य की सरकार को पलटने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। उसने मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक 19 विधायकों को शामिल करने के बाद कमलनाथ की सरकार पलट दी थी। गहलोत के मुताबिक ऐसी रणनीति राजस्थान में भी छह महीने से चल रही थी। राज्यसभा चुनाव में भी इसकी झलक मिली थी। सचिन पायलट खुद को मुख्यमंत्री से कम नहीं समझते थे। उप मुख्यमंत्री पद से उन्हें संतोष नहीं था। उनका असंतोष यहां तक पहुंच गया था कि उनके लिए सरकार में गहलोत की अधीनता में बने रहना संभव नहीं रहा। उन्होंने सोचा कि सिंधिया की तरह वह भी पाला बदलकर अपना राजनीतिक भविष्य बदल सकते हैं।
ऐसा कुछ नहीं हुआ और बहुत कुछ हो गया। बताया जाता है कि सचिन पायलट को कांग्रेस से निकाला जाना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा में मतभेद हैं। इतना कुछ होने के बाद भी कांग्रेस में सचिन पायलट के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि गहलोत विधायकों को होटल से बसों में लाकर राजभवन पर धरना दे चुके हैं। धरना देने के बाद सारे विधायक वापस बसों में बैठकर फेयरमोंट होटल चले गए।
कांग्रेस विधायक दल के 107 सदस्यों में से 22 पायलट के समर्थन में है। यह कोई बड़ी बात नहीं है। जो जयपुर के फेयरमेंट होटल में हैं और जो हरियाणा के मानेसर स्थिति होटल में हैं, वे सभी अब तक कांग्रेस के ही विधायक हैं। प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं हुआ। सबकुछ गुपचुप चल रहा था। गहलोत सरकार ने मामले की जांच के लिए एसओजी गठित कर दी है, जो पायलट समर्थक विधायकों तक पहुंचने के लिए हरियाणा पहुंची थी, लेकिन जब पुलिस पहुंचती है, तब विधायक कहीं और चले जाते हैं। अब तक राजस्थान एसओजी के पुलिस अधिकारी हरियाणा में एक भी विधायक को नहीं पकड़ पाए हैं।
गहलोत मुखर हैं और पायलट के खिलाफ शब्दों की सीमाएं लांघ चुके हैं। इसके विपरीत पायलट खामोश हैं। उनके पास कहने के लिए कुछ है भी नहीं। गहलोत से बगावत के चक्कर में वह अपना राजनीतिक करियर ही दाव पर लगा बैठे हैं। गहलोत सरकार विधानसभा में बहुमत साबित करना चाहते हैं और राज्यपाल इसके पक्ष में नहीं है, क्योंकि अब तक किसी ने यह नहीं कहा कि गहलोत सरकार अल्पमत में है। जब तक पायलट और उनके सारे विधायक कांग्रेस में हैं, तब तक तो उनकी सरकार बहुमत में है ही। फिर इतना तमाशा क्यों हो रहा है?