जयपुर। जुलाई 2020 में सचिन पायलट कैंप की ओर से बगावत करने के बाद सरकार पर आए सियासी संकट के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालने वाले लक्ष्मणगढ़ से कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह डोटासरा के पीसीसी अध्यक्ष पद के कार्यकाल को आज 2 साल पूरे हो गए हैं। 14 जुलाई 2020 को कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को हटाकर गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौंपी थी।
हालांकि इन 2 सालों के कार्यकाल के दौरान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष ने पांच सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में से 4 सीटों पर जीत दर्ज कराने के साथ ही पहली बार निकाय चुनावों में पार्टी को बढ़त दिलाई तो वहीं उनका कमजोर पक्ष भी इन 2 सालों में देखने को मिला है, जहां वो 2 सालों में जिला और ब्लॉक लेवल पर संगठन तक खड़ा नहीं कर पाए। कई बार आपने बयानों को लेकर भी विवादों में रहे हैं। हालांकि इन 2 सालों के भीतर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ लगातार धरने-प्रदर्शनों का भी एक रिकॉर्ड उनके कार्यकाल में बना है।
कृषि कानून, पेगासस जासूसी मामला, महंगाई-बेरोजगारी, अग्निपथ स्कीम और ईस्टर्न कैनल परियोजना जैसे मुद्दों पर डोटासरा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ सड़कों पर संघर्ष करते दिखाई दिए। डोटासरा के नेतृत्व में सहाड़ा, सुजानगढ़, धरियावद और वल्लभनगर में कांग्रेस पार्टी को जीत मिली और केवल राजसमंद में ही पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि राजसमंद में भी हार का अंतर बेहद कम रहा।वहीं डोटासरा के कार्यकाल में पहली बार ऐसा देखने को मिला जब निकायों के अंदर भी कांग्रेस को बढ़त मिली। अधिकांश निकायों में कांग्रेस के बोर्ड बने और पंचायत चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी को बढ़त मिली।
दो साल से ब्लॉक और जिले भंग
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के 2 साल के कार्यकाल में सबसे कमजोर पक्ष यही रहा है कि 2 साल के भीतर जिला और ब्लॉक लेवल पर संगठन को खड़ा नहीं कर पाए। 2 साल से 400 ब्लॉक भंग हैं, तो अभी तक केवल 13 जिलाध्यक्षों की ही नियुक्ति हो पाई है उनमें से भी चार ने इस्तीफे दे दिए हैं, जबकि 29 जिलाध्यक्ष भी अभी तक नहीं बनाए गए। इसके साथ ही डोटासरा अपनी प्रदेश कार्यकारिणी का भी विस्तार तक नहीं कर पाए हैं। उनकी कार्यकारिणी में 39 की पदाधिकारी हैं। इसके अलावा 2 साल से भंग विभागों और प्रकोष्ठ का गठन भी अभी तक नहीं हो पाया, जिससे प्रदेश में सवा साल के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बिना संगठन की मजबूती के पार्टी को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।