चुनावों में भुगतना पड सकता है खामियाजा
जयपुर। अब तक कांग्रेस में ही जगजाहिर रही गुटबाजी राजस्थान भाजपा में खुलकर
सामने आने लगी है। धड़ों में बंटी बीजेपी यदि चुनावों से पहले नेताओं के
मतभेद खत्म नहीं हुए आगामी चुनावों में भारी नुकसान हो सकता है।
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी के भीतर नेताओं के गुटों में शह
और मात का खेल भी तेज हो गया है. चाहे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के जयपुर,
जोधपुर और उदयपुर संभाग की सभाएं हो या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव
यात्रा, पार्टी में गुटबाजी खुलकर देखने को मिल रही है।
अब तक भीतरघात, भाई-भतीजावाद, गुटबाजी के लिए कांग्रेस का ही उदाहरण दिया
जा रहा था लेकिन गत दिनों हुए कई वाकयों ने साबित कर दिया कि कांग्रेस
ज्यादा गुटबाजी और मनभेद तो भाजपा में है।कांग्रेस में एकजुटता का संदेश
देने के लिए पार्टी के बड़े नेता एक साथ बस में बैठकर संकल्प रैलियों में
जा रहे हैं। वहीं करौली में कांग्रेस की संकल्प रैली में जब सभास्थल के
चारो ओर लम्बा जाम लग गया, तब प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट एक कार्यकर्ता
की मोटरसाइकिल लेकर अशोक गहलोत को अपने पीछे बैठाकर रैली स्थल पहुंचे।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सागवाड़ा की रैली में दोनों नेताओं की
इस दोस्ती का स्वागत भी किया। इन रैलियों में शामिल होने से पहले प्रदेश
अध्यक्ष सचिन पायलट स्वयं महासचिव अशोक गहलोत को लेने उनके निवास पर जाते
हैं। दोनों नाश्ते के साथ टेबल पर रैली में उठाए जाने वाले मुद्दे पर
चर्चा करते हैं, इससे यह मैसेज देने की कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस
में राहुल गांधी की पहल पर दोनों नेताओं ने अपने मतभेद भुला दिए है।
लेकिन बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष के मुद्दे पर उभरी गुटबाजी अब व्यापक
होती देखी जा सकती है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए पार्टी आलाकमान ने जोधपुर
सांसद और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम तय कर दिया था,
लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शेखावत के नाम पर वीटो कर दिया और
अपने गुट के नेताओं से लामबंदी भी कराई। वसुंधरा का यह रुख सीधे पार्टी
के केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती देने वाला था।
गजेंद्र सिंह शेखावत पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पसंद हैं, इसलिए शाह ने
उन्हें प्रदेश अध्यक्ष न बनवा पाने की भरपाई प्रचार समिति का अध्यक्ष
बनवा कर की गई है। दूसरी तरफ राजस्थान में बीजेपी की तरफ से दो प्रचार
अभियान चल रहे हैं। एक का नेतृत्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गौरव यात्रा
के माध्यम से कर रहे हैं. तो दूसरे प्रचार अभियान की कमान स्वयं अमित शाह
ने संभाल रखी है।
अमित शाह लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं, पिछले 15 दिनों में शाह
जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और कोटा संभाग में पार्टी के बूथ स्तर के
कार्यकर्ता और समाज के विभिन्न वर्गों से मिलें। इन सभाओं में शाह
वसुंधरा राजे के कामकाज के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज के
नाम पर वोट मांग रहे हैं। अमित शाह के इन कार्यक्रमों में बीजेपी महासचिव
ओम माथुर और गजेंद्र सिंह शेखावत तो दिखते हैं लेकिन मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार भी शामिल नहीं हुईं। शेखावत की तरह ओम
माथुर को भी मुख्यमंत्री राजे का विरोधी माना जाता है।
राजस्थान में बीजेपी के गढ़ हाड़ौती क्षेत्र के कोटा में एक बार फिर
गुटबाजी सामने आई जब पूर्व मंत्री और विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने एक
ट्वीट में बीजेपी के कद्दावर नेता और सांसद ओम बिरला के खिलाफ ट्वीट में
लिखा ‘सांसद ने आपको गोली दे दी अध्यक्ष जी’। हालांकि बाद में उन्होंने
अपने ट्विटर अकाउंट हैक होने का हवाला देकर सफाई भी दी. वही कोटा संभाग
से विधायक प्रहलाद गुंजल और विधायक चंद्रकांता मेघवाल में ठनी हुई है।
विधायक गुंजल ने केंद्रीय नेतृत्व को चिट्ठी लिखकर शिकायत भी की है कि
गौरव यात्रा में उनके सीट पर सभा के दौरान स्थानीय नेतृत्व नादारद रहा।
22 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की गंगापुर की सभा में भी राज्यसभा
सदस्य किरोड़ी लाल मीणा और विधायक मान सिंह गुर्जर के समर्थकों की तीखी
नोंकझोंक ने शाह को नाराज कर दिया।
मेवाड़ या उदयपुर संभाग में भी सत्ताधारी बीजेपी गुटबाजी का सामना कर रही
है। मेवाड़ में पार्टी का सबसे बड़ा धड़ा गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया
का है। कटारिया के धुर विरोधी माने जाने वाले निर्दलीय विधायक रणधीर सिंह
भिंडर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चहेते हैं, स्थानीय नेताओं की नाराजगी
के बावजूद मुख्यमंत्री राजे ने भिंडर के समर्थन में गौरव यात्रा के दौरान
सभा की. इस सभा में गुलाब चंद कटारिया शामिल नहीं हुएं लेकिन सरकार में
मंत्री और राजे की करीबी किरण महेश्वरी मंच पर मौजूद थीं।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजस्थान गौरव यात्रा अजमेर संभाग में
समाप्त होनी है। यहां भी पार्टी को गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है,
अजमेर संभाग से पार्टी के दो बड़े नेता और मंत्री वासुदेव देवनानी और
अनीता भदेल एक दूसरे के परस्पर विरोधी बताए जाते हैं।
बहरहाल तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए
राजस्थान सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहा है, ऐसे में यदि चुनाव से पहले
गुटबाजी और निजी स्वार्थ किनारे रख कर संपूर्ण नेतृत्व एकजुट नहीं होता
है तो बीजेपी को सत्ता में दोबारा वापसी करने में मुश्किलों का सामना
करना पड़ सकता है।