इन जिलो में समीकरण बिगाड सकती है बेनीवाल की बोतल

liyaquat Ali
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जयपुर। निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल ने पार्टी का एलान कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है, अब तक चुनावी संघर्ष बसपा ही त्रिकोणीय बनाती आई है लेकिन इस बार कई जिलो में बेनीवाल की बोतल तीसरी शक्ति के रूप में सामने आ सकती है। भारत वाहिनी नामक पार्टी का गठन करने वाले घनश्याम तिवाड़ी की पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘बांसुरी’ है और तिवाड़ी ने बेनीवाल की ‘किसान हुंकार रैली ‘में जाकर ‘बोतल और बांसुरी’ के सियासी मिलन को साफ़ कर दिया है।
किसानों के सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी, किसानों को मुफ्त बिजली, खाली पड़े सरकारी पदों पर नियुक्ति, दस हज़ार रुपये बेरोजगारी भत्ता लागू करने, किसान हित में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने और मजबूत लोकपाल विधेयक लागू करने जैसे मुद्दों को जब- तब गर्माते रहे बेनीवाल, घनश्याम तिवाड़ी जैसे पुरानी नेताओं के सहारे सत्ता में आने का सपना तो संजो ही रहे हैं, पूरे प्रदेश में सड़कों पर टोल टेक्स ख़त्म करने जैसे वादे भी कर रहे हैं।
तीसरे मोर्चे के उदय की राजस्थान में संभावनाएं न के बराबर ही है। पहले ‘सोशियल जस्टिस फ्रंट ‘के बैनर तले पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी और लोकेन्द्र सिंह कालवी ने भी ऐसा ही राजनीतिक प्रयोग 1998 के विधान सभा चुनावों में किया था। बांसुरी और बोतल’ भी चाय के प्याले में तूफ़ान बनकर न रह जाए. हालांकि, पश्चिमी राजस्थान और शेखावाटी की राजनीति में बड़ा दखल रखने वाली जाट जाति के नौजवानों के लिए जातीय गौरव बने हनुमान बेनीवाल की सोशल मीडिया पर फॉलोइंग देख लगता है कि वह कुछ नया कर सकते हैं।
बेनीवाल उसी ‘जाट’ वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में हैं। अजमेर, अलवर लोकसभा और मांडलगढ़ विधानसभा के उप चुनाव में हार की बड़ी वजह राजे के इसी जातीय तुष्टिकरण और बेलगाम ब्यूरोक्रेसी को मानते रहे हैं, अजमेर उप चुनाव में बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह माने गए जाट आईपीएस अधिकारी राजेंद्र सिंह को अजमेर से भी बेहतर अलवर जिले का बतौर पुलिस अधीक्षक जिम्मा दिया गया।
जातीय गणित को साधने की वसुंधरा सरकार ने बीते पांच साल से कोशिश जारी रखी है, जिसके सहारे हनुमान बेनीवाल अब तक का अपना सबसे बड़ा राजनैतिक दांव खेलने जा रहे हैं। जिलों में तैनात अखिल भारतीय सेवा और राज्य सेवा के पुलिस और प्रशासनिक सेवा अधिकारीयों का आंकड़ा इस जातीय गणित को साधने की सरकारी कोशिश को उसी शिद्दत से रेखांकित कर रहा है, जिस शिद्दत से किसी जमाने में अखिलेश यादव की सरकार यादव अधिकारीयों की तैनाती के जरिए करती रही है।
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