Jaipur। राजस्थान (Rajasthan)तीन विधानसभा (Three assembly) क्षेत्रों में होने जा रहे उपचुनाव (Bye election) के लिए कांग्रेस में एकता दिखाने को प्रयास हुआ है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अपने साथ सरकारी हैलीकॉप्टर में सचिन पायलट (Sachin Pilot) जो कि विधायक है।
और राजस्थान में कांग्रेस (Congress) की आंतरिक संघर्श की स्थिति के दौरान जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष से हटाने की मांग खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की थी। साथ लेकर जा रहे है। यह भी नया नही है कि राजनीति (Politics) में आपसी टकराव और तकरार दोनों होती है और एक पार्टी के नेता कई बार मतभेदों की स्थिति में बयान बाजी करते है लेकिन जिस तरह के बयान राजस्थान में सुनने को मिले थे वैसा इससे पहले कभी नही हुआ था।
वह फ्लैशबैके की बातें थी आज परिस्थितियों पर बात की जाए तो चूंकि राजस्थान में जिन तीन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने जा रहे है। उनमें से दो विधानसभा क्षेत्र सहाडा और राजसंमद ऐसे क्षेत्र है जहां गुर्जर मतदाता हार जीत में बडी भूमिका निभा सकते है। और अन्य जो जातियां भी असरकारक है। यहां समझना यही है कि राजस्थान में विधानसभा के आम चुनाव के दौरान गुर्जर मतदाता (Gujjar voters) ही थें।
जिन्होनें राजस्थान में पहली बार एकमुश्त वोट कांग्रेस को देकर यह दर्शाया कि तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को किस जगह देखना चाहतें है। परिस्थितियां बदली और आज सचिन पायलट सिर्फ विधायक तो ना सिर्फ बल्कि सचिन पायलट के साथ जो युवा जुडा था और जिसके बदौलत सचिन पायलट ने राजस्थान में बडी फैन फॉलोंइग तैयार की थी क्या वह समर्थक अब सचिन पायलट को सिर्फ विधायक रूप में देख कर कांग्रेस को वोट देने के लिए तैयार हो जाएगें वह भी तब जबकि उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने साथ हेलीकॉप्टर में बिठाकर ले जा रहे है।
हालाकि समझने के लिए सिर्फ इतना काफी है कि जब सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था और उसके बाद राजस्थान में लोकसभा चुनाव हुए थे तो वही गुर्जर और सचिन पायलट समर्थक मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में वोट नही करकें दर्शा दिया थ कि सचिन पायलट को लेकर उनकी सोच स्श्पट है। अब सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से हटाए जा चुके है और राजस्थान में उपचुनाव अब जिस परिस्थिति में होने जा रहे है तो सचिन पायलट का इन तीन विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार करना क्या वास्तव में कांग्रेस को फायदा देने के लिए काफी है।
यह एक ऐसा अनुतिरत सवाल है जिसक जवाब दो मई को चुनाव परिणाम आने पर स्पष्ट होगा। हालाकिं राजनीति में संकेत मायने रखते है और संकेत बहुत साफ उसीदिन मिल गए थे जब नामांकन रैलियों के दौरान सचिन पायलट का भाशण समाप्त होते ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भाषण सुने बिना बडी संख्या में लोग उठ कर चले गए थे। वह सचिन पायलट को सुनने ही आए थे।
अब कांग्रेस को इस तरह की उम्मीद लग रही है कि सचिन पायलट को मुंख्यमंत्री के साथ लेकर जाने से यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक – ठाक है। लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जून और जुलाई में दिए गए बयानों के वीडियों सामने आ रहे है। जिससे उन्होनें सचिन पायलट पर टिप्पणिया की थी उससे भी ऐसा लग रहा है कि पायलट समर्थक अब उन बातों को सामने रखकर जवाब चार रहे है कि आखिकार उस समय सचिन पायलट के खिलाफ जब इतनी टिप्पणियां कर दी गई थी तो फिर आज क्यों कर पायलट को साथ लेकर प्रचार करने की जरूरत पड गई है।
भले ही प्रदेश के प्रभारी अजय माकन ठंडे छीटें देकर दूसरी बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक ही हेलिकॉप्टर (Helicopter) से लेकर चुनाव प्रचार करवा चुके है लेकिन समर्थकों के बीच जब तक यह संदेश स्श्पट रूप् से नही जाएगा वास्तव में दोनों नेताओं के बीच मतभेद समाप्त हो चुके है। तब तक क्या कांग्रेस फायदा उठा पाएगी। यह संकेत देने के लिए जरूरी था कि इन तीनों विधानसभा उपचुनाव में जिन लोगों को जिम्मेदारी देकर भेजा गया उनमें कही ना कही सचिन पायलट समर्थकों का समावेश किया जा सकता है।
लेकिन ऐसा हुआ नही। हालाकिं अब स्टार प्रचारकों में सचिन पायलट सहित उनके समर्थक कुछ नेताओं को षामिल करके एकता का समावेश करने का प्रयास जरूर हुआ है। अब जैसे-जैसे चुनाव प्रचार आग बढेगा और उस दौरान किस तरह से यह समावेश मंच के साथ मतदाताऔ की समझ में आएगा। यही परिणाम तक लेकर जाएगा
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