अलविदा 2020 – राजस्थान में बसपा को मिला दगा,बाकी क्षेत्रीय दल तलाशते रहे धरातल

Dr. CHETAN THATHERA
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Jaipur News। राजस्थान की राजनीति में क्षेत्र दलों की बात की जाए तो राजस्थान में सभी क्षेत्रीय दलों को भटका दगा का ही मिला । बसपा को धोखा मिला तो माकपा और आप धरातल तलाशते रहे वही बेनीवाल की रालोपा और बीटीपी कभी इधर कभी उधर के चक्कर में ही चल रही है।

 

दो साल पहले विधानसभा चुनाव में 6 सीटें जीतकर प्रदेश में उभरी मायावती की बहुजन समाज पार्टी वर्ष 2020 में राजस्थान में बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पाई। गत बसपा के सभी 6 विधायकों ने पार्टी का दामन छोडक़र कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। इस प्रकरण के बाद पार्टी में मचे गदर के कारण बचीखुची साख को भी बट्टा लग गया था। इस वर्ष बसपा अपने बागी विधायकों के अधिकारों पर रोक लगवाने के लिए हाई कोर्ट के चक्कर लगाती रही, लेकिन कुछ कर नहीं पाई। माकपा भी इस साल कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई। विधानसभा में 2 सीटों पर काबिज माकपा में राज्यसभा चुनाव के समय बिखराव हो गया। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी पूरे साल संगठन को मजबूत करने की बात करती रही लेकिन किया कुछ भी नहीं।

बसपा का हाल

बहुजन समाज पार्टी 2020 में राजनीतिक उठापटक की वजह से सुर्खियों में रही। 2019 में अपने सभी 6 विधायक कांग्रेस के हाथों गंवा चुकी बसपा 2020 में कांग्रेस को घेरने के प्रयास में लगी रही लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी। राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को वोटिंग के अधिकार से रुकवाने का प्रयास किया और मामले को लेकर हाईकोर्ट भी पहुंची लेकिन नतीजा सिफर रहा। सियासी संकट के दौरान भी पार्टी विश्वास मत के दौरान बागी विधायकों को वोटिंग से रुकवाने के लिए हाईकोर्ट पहुंची। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कोटा के जेके लॉन अस्पताल में बच्चों की मौत और सियासी संकट जैसे मामलों को लेकर बार-बार कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। पार्टी ने पंचायतीराज चुनाव और निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी।

माकपा की स्थिति

माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अपने विधायक बलवान पूनियां के रूख की वजह से सुर्खियों में रही। राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने किसी भी दल के पक्ष में मतदान नहीं करने का निर्णय किया, लेकिन पार्टी विधायक बलवान पूनियां कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने पहुंच गए। पार्टी ने इसके लिए पूनियां को एक साल के लिए पार्टी से निष्कासित भी किया। इसके बावजूद पूनियां पार्टी लाइन पर नहीं चले और सियासी संकट के दौरान मुख्यमंत्री निवास पर हुई विधायक दल की बैठक में शामिल हुए। प्रदेश में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 2020 में धरने-प्रदर्शनों में तो खूब सक्रिय रही लेकिन पंचायतीराज चुनाव और नगर निकाय चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ज्यादा अच्छा नहीं रहा।

आप का हाल-, बेहाल

आम आदमी पार्टी वर्ष 2020 में प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाई। पार्टी ने जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर अपनी जमीनी पैठ बनाने की कोशिश की लेकिन ज्यादा कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। नगर निकाय चुनाव में पार्टी को अपना सिम्बल नहीं मिला जिसके चलते पार्टी की जमीनी पैठ का सही तरीके से आकलन ही नहीं हो सका। पार्टी को संगठनात्मक नियुक्तियों का भी इंतजार रहा। रामपाल जाट के प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी साल 2020 में बिना अध्यक्ष के ही रही।

रालोपा कभी इधर कभी उधर

थर्ड फ्रंट के दलों से जुड़ी कई बड़ी घटनाओं ने ना केवल प्रदेशवासियों का बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। कांग्रेस और भाजपा के अलावा नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और आदिवासी समाज की बीटीपी चर्चा में रही। 2020 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी अपने बगावती तेवरों के चलते चर्चा में रही। एनडीए में शामिल होने के बावजूद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने कृषि कानूनों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया और बाद में एनडीए से नाता भी तोड़ लिया। इससे पहले पार्टी के संयोजक बेनीवाल ने संसद की तीन समितियों से इस्तीफा दे दिया। प्रदेश में भी बेनीवाल अपने बयानों की वजह से सुर्खियों में बने रहे। वसुंधरा राजे के धुर विरोधी बेनीवाल ने बार-बार अपने बयानों और ट्वीट्स के जरिये पूर्व मुख्यमंत्री पर प्रहार किए। इन बयानों पर प्रदेश बीजेपी की ओर से बार-बार ऐतराज भी जताया गया और बेनीवाल को गठबंधन धर्म निभाने की हिदायत दी गई लेकिन बेनीवाल बयानों से बाज नहीं आए और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तथा वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच राजनीतिक गठजोड़ का आरोप खुलेआम लगाया। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने पंचायतीराज और निकाय चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ा और अच्छा प्रदर्शन भी किया।

बीटीपी बिना पेदे के. .

राज्य विधानसभा में दो सीटें रखने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी सरकार के साथ अपने समर्थन को लेकर साल 2020 में सुर्खियों में रही। सरकार को बाहर से समर्थन कर रही बीटीपी ने पंचायत चुनाव के बाद कांग्रेस से अपनी राह अलग करने का ऐलान कर दिया। डूंगरपुर जिला परिषद् में जिला प्रमुख बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस के एक होने से बीटीपी ने कांग्रेस का साथ छोडऩे का फैसला किया। इससे पहले प्रदेश में खड़े हुए सियासी संकट के दौरान भी बीटीपी गहलोत गुट को अपने समर्थन में लेकर सुर्खियों में रही। इससे पहले राज्यसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया था।

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम