जयपुर
राज्य में 2 पिछले 2 दिनों में ही राजनीतिक उठापटक का दौर शुरू हो गया है। इसमें सबसे पहले कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने अपना इस्तीफा प्रेस को भेजकर कर एक नई सनसनी फैला दी है। इस्तीफा राज्यपाल को भेजे जाने की बात कही गई है परंतु उसे राज्यपाल को नहीं दिया गया बल्कि मीडिया में फैलाया गया।
कटारिया का यह कदम दबाव की राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है इससे सचिन पायलट खेमे को नुकसान होने की संभावना है।
आपको बता दें कि लालचंद कटारिया अशोक गहलोत खेमे के खास सिपहसालार माने जाते हैं। पूर्व में वे सीपी जोशी के नजदीक थे परंतु समय के साथ उन्होंने खेमा बदल लिया और वह गहलोत के साथ हो गए। चुनाव से पहले भी उन्होंने गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर दी थी कई मौकों पर पायलट का खुलकर विरोध भी किया था। अब चुनाव के बाद एकाएक अपना इस्तीफा देकर उन्होंने माहौल बनाने की कोशिश की है।
कटारिया की इस्तीफे में जो बातें खुलकर सामने आ रही है उसमें कई चौकाने वाले तथ्य हैं सबसे पहले तो उन्होंने इस्तीफा मीडिया में क्यों भिजवाया जबकि उसे राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पास भिजवाना था, दूसरा कटारिया इस्तीफा देकर अपना फोन बंद कर कहां चले गए और इस्तीफे की पुष्टि क्यों नहीं की
तीसरा जो बड़ा कारण सामने आया है वह यह कि कटारिया ने इस्तीफा तो दे दिया पर उसमें अपने लेटर हेड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जबकि वह कैबिनेट मंत्री है उनके हर पत्र पर उनका लेटर हेड होना जरूरी है अंत तक उनका निजी स्टाफ भी इस्तीफे का खंडन ही करता रहा और वे खुद भी मीडिया के सामने आकर इस्तीफा स्वीकार नहीं कर पाए। इन बातों से साफ होता है कि कटारिया ने यह सिर्फ राजनीतिक पैंतरा आजमाया था जो अब उल्टा पड़ गया।
कटारिया लोगो का हार औऱ गहलोत से ध्यान भटकाने के लिए इस्तीफे का जाल बुन रहे थे, लेकिन दिल्ली में 2 दिन में हुए घटनाक्रम के कारण अब गहलोत सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मंगलवार को कटारिया ने इस्तीफा देने और आगे चुनाव नहीं लड़ने की बात कही पर उनका दो दिनों तक गायब रहना कहीं संदेह पैदा कर रहा है।अगर यही रहा तो अगले 5 साल प्रदेश में कांग्रेस सरकार का चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।