निजी स्कूलों ने खोल रखी है, कमीशनखोरी की दुकान
आंखेें मूंदें बैठा है शिक्षा विभाग
टोंक, (फिरोज़ उस्मानी)। एक और तो सरकार गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिलाने के लिए भरकस कौशिश कर रही है, वही इसके उलट निजी स्कूल अपनी मनमानी कर अभिभावकों की जेबे काटने में लगे है। बच्चों की पुस्तकों से लेकर युनिफार्म तक में कमीशनखोरी का खेल खुलेआम चल रहा है। निजी स्कूल संचालकों ने बुक विके्रता व बुक प्रकाशक के साथ सांठ-गांठ कमीशनखोरी का खुला ध्ंाधा खोल रखा है। हद तो ये है, कि बच्चों की युनिफार्म से लेकर टाई, बेल्ट, बैच व जुते तक पर निजी स्कूलों की कमीशनखोरी का ठप्पा लगा हुआ है। आरटीई दाखिले वाले बच्चों से भी साल के अंत में मोटी फीस वसूल ली जाती है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग मौन धारण कर निजी स्कूलों पर लगाम कसने में नाकाम है।
ऐसे चलती है, कमीशनखोरी
बच्चों की कक्षाओं में उनके पाठयक्रम चलाने के लिए बुक प्रकाशकों व बुक विक्रेता निजी स्कूलों से सम्पर्क कर मोटी रकम देते है। एक पुस्तक पर आधी रकम का कमीशन स्कूल संचालक लेते है। इंग्लिश कोर्स की पुस्तकों पर 40 से 50 प्रतिशत का कमीशन निजी स्कूलों का बनता है। तथा हिन्दी कोर्स की पुस्तकों पर 60 से 70 प्रतिशत कमीशन होता है। स्कूल संचालक बच्चों को इन्ही बुक विके्रता से पाठ्य सामाग्री लेने को विवश करते है। किसी ओर बुक विके्रता या प्रकाशक द्वारा ज्यादा कमीशन देने पर पाठ्य पुस्तकें भी बदलती रहती है।
युनिफार्म से लेकर टाई-बेल्ट तक पर मौटी कमाई
निजी स्कूल संचालक स्कूल द्वारा चलाई जा रही बच्चों की यूनिफार्म से लेकर टाई-बेल्ट, बेच,जुते-मोजे तक में मोटी रकम वसूलते है। ज्यादा कमाई के लिए कई स्कूल हर वर्ष यूनिफार्म बदल कर ज्यादा मुनाफा कमाते है। इसके साथ साथ ही स्कूलों में होने वालें वार्षिक क्रिया-कलापों के लिए अभिभावकों से पैसा लिया जाता है।
आरटीई (शिक्षा का अधिकार) 2010 में लागू किया गया, इसके तहत पहली कक्षा से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है। इसमें 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को अपने आस पास के सरकारी या किसी भी निजी स्कूल में दाखिला लेने का अधिकार है। जो बच्चें निजी स्कूल या कान्वेंट स्कूल में दाखिला लेते है। इसकी सूचना प्राप्त होने पर राज्य सरकार उन्हें नियमानुसार भूगतान करती है। इस नियमानुसार 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब वर्ग के बच्चों को मुफ्त में प्रवेश करना होगा।