श्रावण मास में राजकलेश्वर में लग रही है भक्तो की भीड़

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देवली/दूनी

(हरि शंकर माली)

  राष्ट्रीय राजमार्ग 12 पर टोंक से देवली के बीच सरोली से 15 किमी दक्षिण मे कस्बे की अरावली पहाडिय़ों की गोद मे सुरम्यता लिए राजकलेश्वर महादेव के पवित्र धाम की महिमा अपार है। क्षेत्र मे छोटी काशी के रूप मे विख्यात सन्तों की यह तपोभूमि प्राकृतिक सौन्दर्य, आध्यात्मिक शक्ति, गौरवमय ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण भी अपनी खास पहचान बनाए हुए है। यहां सरोवर की पाळ पर जीविता पुरुष बाबा योगीराज बालक नाथ व गोमुखी के नीचे सन्त की जीवित समाधियां भक्ति और योग की दिव्य जोत जलाती है।

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देवली/दूनी(हरि शंकर माली)  राष्ट्रीय राजमार्ग 12 पर टोंक से देवली के बीच सरोली से 15 किमी दक्षिण मे कस्बे की अरावली पहाडिय़ों की गोद मे सुरम्यता लिए राजकलेश्वर महादेव के पवित्र धाम की महिमा अपार है। क्षेत्र मे छोटी काशी के रूप मे विख्यात सन्तों की यह तपोभूमि प्राकृतिक सौन्दर्य, आध्यात्मिक शक्ति, गौरवमय ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण भी अपनी खास पहचान बनाए हुए है। यहां सरोवर की पाळ पर जीविता पुरुष बाबा योगीराज बालक नाथ व गोमुखी के नीचे सन्त की जीवित समाधियां भक्ति और योग की दिव्य जोत जलाती है।विराजित भोले नाथ व धाम की मर्यादा और धर्म की प्रहरी समाधिस्थ योगीराज जीवितापुरूष बाबा जन-जन की आस्था के केन्द्र बने है। ऐसे मे कनक दण्डवत करने के वाले श्रद्धालुओं की लम्बी- लम्बी कतारें नजर आना आम बात हंै। सरोवर का जल चर्म रोगों के लिए राम बाण औषधि बनने के साथ आसपास के खेतों को सिंचित कर जीवन का आधार भी बना है। शराब पीकर आने और शिकार का घिनौना प्रयास भी यहां दण्ड पाने का कारण बनता आया है।शिवरात्रि पर शिव परिवार का पंचामृत से अभिषेक, रात्रि जागरण व मेले मे हजारों लोग पैदल और कनक दण्डवत करते बाबा के दरबार मे हाजिरी लगाते हैं। समिति की ओर से आयोजित शिवरात्रि के धार्मिक कार्यक्रमों मे विगत दो दिनो से आवां, बारहपुरों सहित निकट की पंचायतों के श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है।गौरवपूर्ण रहा है इतिहास पहाड़ी पर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है,जिसका दिग्दर्शन चहुं दिशा मे फैला है। जीर्णोद्धार के समय गोमुखी के नीचे एक बाबा की समाधिस्थ अवस्था मे अस्थियां मिली। कहा जाता है कि इन्ही सन्त ने इस शिवधाम की स्थापना का श्रीगणेश किया था। आज भी उनकी अस्थियों को श्रीगुप्तेश्वर शिवालय आवां में प्रतिस्थापित कर पूजा जा रहा है।मध्यकाल मे शेव मत के बारह पंथी नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध सन्त बालक नाथ ने शिष्यों के साथ यहां रह कर कठोर तपस्या की, जिनके तपोबल और चमत्कार की अनेक किवदन्तियां आज भी जन मानस मे प्रचलित है। बाबा बालक नाथ महान योगी और सिद्धियों के ज्ञाता थे। हवा मे उडऩा, पानी पर चलने जैसी कला मे प्रवीण थे। एक किवदन्ती के अनुसार उस समय दिल्ली पर एक कट्टर धार्मिक आक्रान्ता का शासन था, जो साधु-सन्तों को यातना देकर चक्कियों मे आटा पिसवाता था।इनकी मुक्ति के लिए बाबा अपने शिष्यों सहित जाजम सहित उडकऱ दिल्ली पहुंच गए, जहां बादशाह ने कैद कर उनको भी चक्की चलाने की सजा सुना दी। बाबा के योगबल से सभी चक्कियां अपने आप चलने लग गई। चमत्कार देख बादशाह हतप्रभ और भयभीत हो बाबा के चरणों मे गिर पड़ा। सभी सन्तों को आदर सहित विदा कर बाबा को मुद्राएं भेंट कर सदाचार अपनाने की शपथ ली।20 अक्टूबर 198 2 को यहां खुदाई मे मिली मुगल कालीन रजत मुद्राएं साक्ष्य और प्रमाण बन इस घटना की सत्यता जाहिर करती है। गुप्त निधि अधिनियम के तहत दूनी पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर इन मुद्राओं को जब्त कर लिया गया। दूसरी किवदन्ती के अनुसार सरोवर की पाळ पर एक आम का विशाल वृक्ष था, जिसके फल मीठे और बड़े स्वादिष्ट थे। राजा ने उसके आधे आम लाने के लिए बाबा के पास अपने सेवक भिजवा दिए।बाबा ने सैनिकों को अगले दिन आकर आम ले जाने को कहा। सन्त ने तपोबल से रातों-रात आम को आमली के पेड़ में बदल दिया। दूसरे दिन आए राजा के सेवकों का आम के स्थान पर आमली के पेड़ का दृश्य देख पैरों तले की जमीन खिसक गई। आमली का यह वृक्ष 2008 तक बाबा के चमत्कार की कहानी कहता रहा। लोगों का कहना है कि पूर्वजों ने इस सरोवर मे सिंह और गाय एक साथ पानी पीते देखा है।हर-पल होती है, अनुभूति बालक नाथ बाबा सहित अनेक सन्तों ने यहां जीवित समाधियां लेकर धाम की महिमा को बढ़ा दिया है। नाथ सम्प्रदाय के इन योगियों ने कठोर तप, आत्मा के अजर-अमरता व परमात्मा के मिलन के अष्टांग योग, कुण्डली जागरण और समाधि के कठिन मार्ग का अनुसरण कर सिद्धियां पाई हैं। माना जाता है कि कई भक्तों को इनके आशीष की हर-पल अनुभूति होती रहती है।नित रोज निखर रहा है, परिवेश नाथ सम्प्रदाय के नारायण नाथ बाबा, सन्त श्योकिशन भगत और वर्तमान कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी के मार्गदर्शन में मंदिर समिति ने मंदिर का जीर्णोद्धार और दो बार महायज्ञ का आयोजन भी करवाया है। यहां सडक़, बिजली, पानी सहित अन्य आधारभूत सुविधाएं विकसित करने के साथ 198 2 से ही मंदिर परिवेश के निखार के निरन्तर नित नए प्रयास हो रहे हैं।सिकन्दरा के कारीगरों ने लाल पत्थर पर जीवितापुरूष बाबा के अद्भुत छतरी बनाई है। राज्य बजट घोषणा की अनुपालना मे देवस्थान विभाग और राज्य पर्यटन विभाग ने इसे प्रमुख पौरााणिक मंदिर मानकर परिवेश को संवारने व निखारने के लिए करोड़ों रुपए की स्वीकृतियां जारी की है। जिन पर जल्द ही काम शुरू किया जाना प्रस्तावित है।

विराजित भोले नाथ व धाम की मर्यादा और धर्म की प्रहरी समाधिस्थ योगीराज जीवितापुरूष बाबा जन-जन की आस्था के केन्द्र बने है। ऐसे मे कनक दण्डवत करने के वाले श्रद्धालुओं की लम्बी- लम्बी कतारें नजर आना आम बात हंै। सरोवर का जल चर्म रोगों के लिए राम बाण औषधि बनने के साथ आसपास के खेतों को सिंचित कर जीवन का आधार भी बना है। शराब पीकर आने और शिकार का घिनौना प्रयास भी यहां दण्ड पाने का कारण बनता आया है।

शिवरात्रि पर शिव परिवार का पंचामृत से अभिषेक, रात्रि जागरण व मेले मे हजारों लोग पैदल और कनक दण्डवत करते बाबा के दरबार मे हाजिरी लगाते हैं। समिति की ओर से आयोजित शिवरात्रि के धार्मिक कार्यक्रमों मे विगत दो दिनो से आवां, बारहपुरों सहित निकट की पंचायतों के श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है।

गौरवपूर्ण रहा है इतिहास पहाड़ी पर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है,जिसका दिग्दर्शन चहुं दिशा मे फैला है। जीर्णोद्धार के समय गोमुखी के नीचे एक बाबा की समाधिस्थ अवस्था मे अस्थियां मिली। कहा जाता है कि इन्ही सन्त ने इस शिवधाम की स्थापना का श्रीगणेश किया था। आज भी उनकी अस्थियों को श्रीगुप्तेश्वर शिवालय आवां में प्रतिस्थापित कर पूजा जा रहा है।

मध्यकाल मे शेव मत के बारह पंथी नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध सन्त बालक नाथ ने शिष्यों के साथ यहां रह कर कठोर तपस्या की, जिनके तपोबल और चमत्कार की अनेक किवदन्तियां आज भी जन मानस मे प्रचलित है। बाबा बालक नाथ महान योगी और सिद्धियों के ज्ञाता थे। हवा मे उडऩा, पानी पर चलने जैसी कला मे प्रवीण थे। एक किवदन्ती के अनुसार उस समय दिल्ली पर एक कट्टर धार्मिक आक्रान्ता का शासन था, जो साधु-सन्तों को यातना देकर चक्कियों मे आटा पिसवाता था।

इनकी मुक्ति के लिए बाबा अपने शिष्यों सहित जाजम सहित उडकऱ दिल्ली पहुंच गए, जहां बादशाह ने कैद कर उनको भी चक्की चलाने की सजा सुना दी। बाबा के योगबल से सभी चक्कियां अपने आप चलने लग गई। चमत्कार देख बादशाह हतप्रभ और भयभीत हो बाबा के चरणों मे गिर पड़ा। सभी सन्तों को आदर सहित विदा कर बाबा को मुद्राएं भेंट कर सदाचार अपनाने की शपथ ली।

20 अक्टूबर 198 2 को यहां खुदाई मे मिली मुगल कालीन रजत मुद्राएं साक्ष्य और प्रमाण बन इस घटना की सत्यता जाहिर करती है। गुप्त निधि अधिनियम के तहत दूनी पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर इन मुद्राओं को जब्त कर लिया गया। दूसरी किवदन्ती के अनुसार सरोवर की पाळ पर एक आम का विशाल वृक्ष था, जिसके फल मीठे और बड़े स्वादिष्ट थे। राजा ने उसके आधे आम लाने के लिए बाबा के पास अपने सेवक भिजवा दिए।

बाबा ने सैनिकों को अगले दिन आकर आम ले जाने को कहा। सन्त ने तपोबल से रातों-रात आम को आमली के पेड़ में बदल दिया। दूसरे दिन आए राजा के सेवकों का आम के स्थान पर आमली के पेड़ का दृश्य देख पैरों तले की जमीन खिसक गई। आमली का यह वृक्ष 2008 तक बाबा के चमत्कार की कहानी कहता रहा। लोगों का कहना है कि पूर्वजों ने इस सरोवर मे सिंह और गाय एक साथ पानी पीते देखा है।

हर-पल होती है, अनुभूति बालक नाथ बाबा सहित अनेक सन्तों ने यहां जीवित समाधियां लेकर धाम की महिमा को बढ़ा दिया है। नाथ सम्प्रदाय के इन योगियों ने कठोर तप, आत्मा के अजर-अमरता व परमात्मा के मिलन के अष्टांग योग, कुण्डली जागरण और समाधि के कठिन मार्ग का अनुसरण कर सिद्धियां पाई हैं। माना जाता है कि कई भक्तों को इनके आशीष की हर-पल अनुभूति होती रहती है।

नित रोज निखर रहा है, परिवेश नाथ सम्प्रदाय के नारायण नाथ बाबा, सन्त श्योकिशन भगत और वर्तमान कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी के मार्गदर्शन में मंदिर समिति ने मंदिर का जीर्णोद्धार और दो बार महायज्ञ का आयोजन भी करवाया है। यहां सडक़, बिजली, पानी सहित अन्य आधारभूत सुविधाएं विकसित करने के साथ 198 2 से ही मंदिर परिवेश के निखार के निरन्तर नित नए प्रयास हो रहे हैं।

सिकन्दरा के कारीगरों ने लाल पत्थर पर जीवितापुरूष बाबा के अद्भुत छतरी बनाई है। राज्य बजट घोषणा की अनुपालना मे देवस्थान विभाग और राज्य पर्यटन विभाग ने इसे प्रमुख पौरााणिक मंदिर मानकर परिवेश को संवारने व निखारने के लिए करोड़ों रुपए की स्वीकृतियां जारी की है। जिन पर जल्द ही काम शुरू किया जाना प्रस्तावित है।

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