हाईब्रिड बनाम बाड़ाबंदी में इजाफा,धन बल से प्रमुख पद के लिए होगी दावेंदारी

liyaquat Ali
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Jaipur News( फिरोज़ उस्मानी) : हाईब्रिड (Hybrid ) को लागू करने वाला राजस्थान(Rajasthan) देश का पहला राज्य बन गया है, जिसके तहत पार्षद (Councilor) के चुनावों में बिना हिस्सा लिए व हारा हुआ प्रत्याक्षी भी पालिकाध्यक्ष, सभापति (Chairman) व मेयर (Mayor) बन सकता है। सरकार के इस फैसले के बाद पार्षद चुनने के बाद प्रमुख पद की दावेंदारी के लिए होने वाली बाड़ा बंदी में और इजाफा होगा। योग्य दावेंदारों की भी अनदेखी की जाएगी। जिसको लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में रोष व्याप्त होगा।

धन बल(Money power) पूर्वक प्रमुख पद की दावेंदारी ठोंकने वालों की लाईन सी लग जाएगी। इसके तहत प्रमुख पार्टियों पर कई सवालियां निशान खड़े होते दिखाई देगें। यही नही कार्यकर्ताओं में पार्षद बनने के बाद भी पालिकाध्यक्ष, सभापति व मेयर पद के लिए ना उम्मीद  होना पड़ेगा।

सरकार अगर इसी फैसले पर अडिग रहती है तो मेयर चुनाव के लिए होने वाली पार्षदों की बाड़ाबंदी को बढ़ावा मिल जाएगा। धन बल के साथ कोई भी पूजिंपति पाट्री का साट्रिफिकेट लेकर पद की दावेंदारी ठोकता दिखाई देगा। हांलाकि अभी तक ये सीता तय नही हुई है कि कितने समय बाद सभापति या मेयर को पार्षद का चुनाव जीतकर आना होगा।  लेकिन हाईब्रिड (Hybrid ) लागू होने के बाद हारा हुआ पार्षद या बिना पार्षद का चुनाव लड़े ही पालिकाध्यक्ष, सभापति व मेयर बन जाएगा।

राजस्थान सरकार (Government of Rajasthan) ने नगर पालिका (निर्वाचन) नियम, 1994 में संशोधन करते हुए इसका नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। पालिकाध्यक्ष, सभापति व मेयर पद के लिए किसी भी प्रमुख राजनितिक दल से नांमाकन के अंतिम दिवस में पाट्र्री का अधिकृत पपत्र प्रपत्र प्रस्तृत कर सकता है।

इसको लेकर शहर के पूंजिपतियों में मेयर बनने की हौड़ लग गई है, सभापति बनने के इच्छुक वार्डो में घुमकर लोगों को रिझाने के लिए कमर कस चुके है। हांलाकि सरकार की पाट्री के अंदर ही विरोध के सुर उठते भी दिखाई दे रहे है। परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास व खाद्य आपूति मंत्री रमेश मीणा भी विरोध में आ गए है। इनका कहना है, कि चुनाव लडक़र जीते पार्षदों के साथ ये गलत सबित होगा। क्योंकि पाट्र्री के कार्यकर्ताओं द्वारा वार्ड से जीतकर आने वाले पार्षदों की ये भी उम्म्ीद रहती है कि वो भी मेयर बन सकते है। पाट्री के अंदर उठे इन विरोधी सुरू के बाद अब देखना ये होगा कि क्या सरकार इसी फैसले पर अडिग रहती है, या नही?

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