
टोंक । खेती किसानी और पशुपालन को लेकर देश के वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. टोंक जिले के मालपुरा में केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान (Central Sheep and Wool Research Institute) में भेड़ और ऊन पर शोध (research on sheep and wool) किया जा रहा है. संस्थान के डायरेक्टर बताते हैं कि राजस्थान के किसान (Farmers of Rajasthan) अब विदेशी भेड़ पालन (exotic sheepCompliance) कर इसे व्यवसाय (Business) के रुप में भी अपना सकते हैं. जानकारी के लिए संस्थान में किसानों को ट्रेनिंग (training to farmers) भी दी जाती है.
विदेशी नस्ल (exotic breed) की दुम्भा भेड़ (dumba sheep) राजस्थान के वातावरण में कैसे रहें. इसको लेकर यहां के वैज्ञानिक इसकी नस्ल पर लगातार शोध कर रहे हैं. मिडिल ईस्ट की दुम्बा भेड़ का पालन कर किसान तीन गुना मुनाफा कमा सकते हैं.
दुम्मा भेड़ की खासियत इसकी दुम्ब है. इसकी पूंछ की जगह दुम्बा भेड़ है. इसमें फेट स्टोर रहती है. जैसे ऊंट के कुबड़ में फेट स्टोर रहती है. एनवायरमेंट की खास कंडीशन में ये सरवाइवल के लिए काम में आता है.
संस्थान के एनिमल फिजियोलॉजी डिविजन के वैज्ञानिक डॉ. सत्यवीर सिंह डांगी बताते हैं कि केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान दुम्बा भेड़ को लेकर बहुत प्रो एक्टिव हैं. सजग है. संस्थान इसकी ग्रोथ परफोर्मेंस, इसके मिल्क की एफिशिएंसी और इसके मीट की क्वालिटी पर काम कर रहा है. ये प्रजाति मुख्यत मिडिल ईस्ट में पाई जाती है. लेकिन वहां और राजस्थान के वातावरण में कोई खास फर्क नहीं है. इसलिए राजस्थान के किसान इस दुम्बा भेड़ को आराम से पाल सकते हैं. इस भेड़ को यहां के वातावरण से कोई खास परेशानी नहीं है.
यहां के किसान इसके मीट को लेकर भी इसे पाल सकते हैं. क्योंकि यहां के लोकल भेड़ की इसकी तुलना में एफिशिएंसी कम है. उदाहरण के तौर पर तीन महीने की देशी भेड़ करीब 15 किलो की होती है लेकिन दुम्बा भेड़ 30 किलो से ज्यादा की हो जाती है. मीट कन्वर्जन एफिशिएंसी के लिए किसान इसे पाल सकता है.
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर का काम ही भेड़ पर शोध करना है. यहां के साइंटिस्ट्स ने भेड़ पालन को लेकर किसानों को समय-समय पर ट्रेनिंग देता है. संस्थान के पोर्टल से किसान खुद यहां संपर्क कर जानकारी जुटा सकता. किसान अपनी ट्रेनिंग को लेकर पत्र भी लिख सकता है. ट्रेनिंग के लिए किसानों को संख्या पूरी होते ही ट्रेनिंग आयोजित की जाती है. किसानों को कई बार निशुल्क और कभी कुछ फीस लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है. हर बारिकियां यहां किसानों को सिखाई जाती है.
संस्थान के एनिमल फिजियोलॉजी डिविजन के वैज्ञानिक डॉ. सत्यवीर सिंह डांगी बताते हैं कि भेड़ और बकरी पालन को लेकर किसान अगर सिरियस विचार करें तो किसान के लिए मुनाफे का सौदा हो सकता है.