जयपुर। राज्य की गहलोत सरकार के कार्यकाल के साढ़े 3 साल बीतने के बावजूद भी सरकार में संसदीय सचिवों और विधानसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होना चर्चा का विषय बना हुआ है।साढ़े 3 साल बाद भी संसदीय सचिवों और विधानसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त चल रहा है, अब आगे संसदीय सचिवों की नियुक्ति होगी या नहीं इसे लेकर लेकर भी सत्ता और संगठन चुप्पी साधे हुए हैं।
बीते साल 21 नवंबर को हुए मंत्रिमंडल पुनर्गठन के दौरान संसदीय सचिव बनाए जाने की कवायद जोर शोर के साथ शुरू की गई थी। तकरीबन 15 विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने को लेकर सरकार ने विधिक राय भी ली थी लेकिन तब कहा गया था कि सरकार के चौथे बजट सत्र के दौरान संसदीय सचिवों की नियुक्ति की जाएगी लेकिन सत्र बीतने के बाद भी न तो संसदीय सचिवों की नियुक्ति हो पाई और नही विधानसभा उपाध्यक्ष की।
मंत्रिमंडल पुनर्गठन और राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट नहीं हो पाए विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने की उम्मीद थी लेकिन सत्ता और संगठन की ओर से संसदीय सचिवों को लेकर किसी प्रकार की कोई कवायद शुरू नहीं करने से विधायकों में अंदर खाने नाराजगी बढ़ती जा रही है। कई विधायक तो मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के समक्ष नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं।संसदीय सचिव बनने के लिए बसपा से कांग्रेस में आए विधायक और पहली बार जीत कर आए कांग्रेस के युवा विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने की चर्चा लंबे समय से चल रही है, लेकिन अभी तक इस कवायद को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है।
सूत्रों की माने तो संसदीय सचिव नहीं बनाए जाने और राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट नहीं किए जाने से नाराज विधायकों की नाराजगी का सामना पार्टी को जून माह में होने वाले राज्यसभा चुनाव में करना पड़ सकता है। पार्टी को विधायकों की नाराजगी का खामियाजा नहीं भुगतना पड़े इसके लिए माना जा रहा है राज्यसभा चुनाव से पहले विधायकों को संतुष्ट करने की कवायद सत्ता और संगठन की ओर से की जा सकती है।
वहीं विधानसभा में विधानसभा उपाध्यक्ष का पद भी पिछले साढे 3 साल से रिक्त चल रहा है, कई वरिष्ठ विधायकों के नाम इस पद के लिए चर्चा में है लेकिन इस पद को भरने की कवायद भी अभी तक सरकार ने शुरू नहीं की है। ऐसे में चर्चा यही है कि क्या 15 वीं विधानसभा का कार्यकाल इस बार बिना उपाध्यक्ष के ही पूरा हो जाएगा।