Deoli News : महामण्डेश्वर दिव्य मुरारी बापू ने कहा कि धर्म में शारीरिक शुद्धता का काफी महत्व है। अशुद्ध व्यक्ति का मन धर्म व पूजा-पाठ में नहीं लगता है। इसी वजह से स्नान व तिलक के बाद मनुष्य का शरीर पवित्र माना जाता है। यह बात बापू ने शिवमहापुराण कथा के तीसरे दिन कही।
उन्होंने कहा कि मनुष्य अहंकारी होता है। उसे अपने मान, प्रतिष्ठा, धन, दौलत पर गर्व होता है। लेकिन श्मशान ऐसी जगह है, जहां प्रत्येक व्यक्ति की शान समान होती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य तिलक लगाने के बाद पूजा करने योग्य पवित्र होता है। शिवपुराण में त्रिपुण्ड तिलक का खास महत्व बताया है। त्रिपुण्ड सम, रज, तम, भूत, भविष्य, वर्तमान, जाग्रत, सुषुप्त व स्वप्नावस्था का प्रतीक है। संसार के दुख देखने के बाद भगवान शिव के निकले अश्रु का जल रुद्राक्ष है।
रुद्राक्ष के धारण करने से तन व मन के रोग दूर होकर आधि-व्याधि से मुक्ति मिलती है। कथावाचक बापू ने कहा कि मद्यपान के सेवन करने वाले व्यक्ति को रुद्राक्ष कतई धारण नहीं करना चाहिए। यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है। उन्होंने रुद्राक्ष को वैराग्य का स्वरुप बताया है। कथा में बताया गया कि आज भी काशी में भगवान शिव विराजमान रहते है। बस उन्हें सच्चे दिल से ढूंढऩे की जरुरत है। इस बीच भजनों पर श्रद्धालुओं ने नृत्य किया।