Bhilwara news। चिकित्सकों को आधुनिक भगवान का दर्जा दिया गया है और इस कोरोना कोहराम के बीच आमजन की आशा की उम्मीद केवल चिकित्सक ही हैं लेकिन यही चिकित्सक अब रोगियों से ऐसा बर्ताव कर रहे हैं की मानो कोरोना छूत की बीमारी है और अगर रोगी को छू लिया तो उन्हें रोग हो जाएगा। ऐसी हालत में रोगी का उपचार सही तरीके से हो पाएगा यह कहना मुश्किल है ।
कोरोनावायरस को लेकर आमजन में खौफ इतना है इसकी बयां नहीं किया जा सकता और माना कि चिकित्सक भी इसी मानव समाज के प्राणी हैं उनके भी बच्चे हैं बीवी है भाई है बहन मां बाप है और पूरा परिवार है लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस महामारी के दौर में आमजन की आशा की किरण भी एकमात्र चिकित्सक ही है लेकिन आजकल सरकारी अस्पताल हो या निजी अस्पताल यह देखने को प्राय मिल रहा है कि कोई भी रोगी किसी भी रोग से ग्रसित होकर या छोटी मोटी जुकाम बुखार होने पर भी अगर वह चिकित्सक को बताने जाता है तो चिकित्सक उसे प्रॉपर मेडिकल तरीके से चेक करने की बजाय 2 फीट की दूरी से ही उसकी बिना कुछ सुने कि उसे क्या तकलीफ है उसका नाम और दवाई लेकर पर्ची टेबल पर रख देते हैं हद तो तब हो जाती है जब किसी हादसे में शिकार होकर हड्डी टूट जाने पर कोई रोगी चिकित्सक के पास जा रहा है तो चिकित्सक उसकी वह निरीक्षण किए बिना कि कहां फैक्चर हुआ है एक्सरे करा कर दवाई ले भर्ती कर देता है यह चिकित्सक की मानवता है और इलाज ।
चिकित्सकों इसी व्यवहार को लेकर आज आमजन छोटे-मोटे कंपाउंडर के पास और छोटी सी दुकानों में क्लीनिक चलाने वाले झोलाछाप के पास जाकर अपना इलाज कराने को विवश है और यही कारण है कि झोलाछाप अप्रशिक्षित शिक्षित लोगों से उपचार के कारण उसका मर्ज बढ़ जाता है और वह मृत्यु शैया तक पहुंच जाता है ।
चिकित्साक निभाएं अपना धर्म
कोरोना महामारी के इस काल में चिकित्सकों को चाहिए कि वे अपना चिकित्सक के धर्म निभाए और आने वाले हर रोगी को चिकित्सा पद्धति के अनुसार और चिकित्सीय गाइडलाइन के अनुरूप उसका निरीक्षण करने के बाद दवाई और उपचार दें नेकी इस कोरोना महामारी में उसके साथ छुआछूत और घृणित भावना का प्रदर्शन करें