Bhilwara News । साल 2020 अपनी विदाई से मात्र चार कदम दूरी पर है और आने वाले नए साल 2021 को लेकर सबको बेसब्री से इंतजार है की शायद नए साल में कुछ अच्छा हो अस्ताचल की ओर साल 2020 राजस्थान की राजनीति के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जो कभी भुला नहीं जाएगा इस चालू साल में कटे राजनीतिक घटनाक्रम गहलोत सरकार के संकट में आना सरकार के ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उसके साथी विधायकों द्वारा सरकार के खिलाफ बगावत कर सरकार को जबरदस्त संकट में डाल देना ऊपर से कोरोना संक्रमण काल और राजनीतिक संकट काल में मुख्यमंत्री गहलोत की दिल्ली से राजभवन तक परेड करा दी इसे शब्दों में यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि साल 2020 राजस्थान की जनता के लिए सरकार की ओर से विकास के दृष्टिकोण से देखा जाए तो शून्य रहा ।
साल 2020 विदा हो रहा है। यह साल राजस्थान के राजनीतिक संकट के लिए याद किया जाएगा। इस साल जुलाई में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए कि प्रदेश की राजनीति के लिहाज से ये इतिहास का पन्नों में दर्ज हो गए। इन घटनाक्रमों के घेरे में मुख्यमंत्री, सचिन पायलट, कांग्रेस के बागी, राजभवन, विधानसभा सभी शामिल रहे।
पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के मन में राजनीतिक महत्वकांक्षा और टीस से उपजा सियासी संकट राजस्थान की राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से भारतीय जनता पार्टी पर सरकार को गिराने की साजिश, विधायकों को खरीदने के आरोप लगाए गए। एजेंसियां भी अलर्ट रखी गईं थी। सचिन पायलट के अपने मसले थे, लेकिन बगावत का बहाना बना एसओजी का नोटिस। 10 जुलाई को एसओजी की ओर से धारा 124ए और 120बी आईपीसी के तहत गवाही देने के लिए तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को नोटिस दिया गया। यह राष्ट्रद्रोह का मामला था। यही मामला कांग्रेस में पायलट और 19 विधायकों की बगावत का कारण बना। तीन निर्दलीय विधायक खुशवीर सिंह, ओमप्रकाश हुडला और सुरेश टॉक भी जयपुर से दिल्ली पहुंच गए। तीनों के खिलाफ एसीबी ने खरीद-फरोख्त के प्रयास का मामला दर्ज किया था। हालांकि पायलट को मिले नोटिस को लेकर सीएम गहलोत ने सफाई दी, लेकिन बात नहीं बनी।
पायलट ने बगावती सुर अख्तियार कर लिए थे। 12 जुलाई को उन्होंने कहा कि गहलोत सरकार अल्पमत में है, उनके साथ 30 विधायक हैं। उनके इस बयान के साथ शुरू हुई कांग्रेस विधायकों की बगावत और पॉलीटिकल क्राइसिस। इसके बाद सरकार को 34 दिनों तक जयपुर और जैसलमेर में बाड़ाबंदी में रहना पड़ा। 13 जुलाई को सुबह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर विधायक दल की बैठक बुलाई। इसमें सचिन और उनके साथी बागी विधायक शामिल नहीं हुए। उधर कांग्रेस नेता राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ पर ईडी और इनकम टैक्स की कार्रवाई ने सरकार को सकते में ला दिया। 13 जुलाई को हुई विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट समेत 19 कांग्रेस के और तीन निर्दलीय कुल 22 विधायक विधायक शामिल नहीं हुए थे। लिहाजा विधायक दल की बैठक के बाद सरकार गिरने के डर से विधायकों को राजधानी में दिल्ली रोड स्थित होटल फेयरमाउंट में शिफ्ट कर दिया गया। उधर 13 जुलाई को ही सचिन पायलट कैंप की ओर से हरियाणा के मानेसर में मौजूद विधायकों का वीडियो जारी किया गया। 14 जुलाई को सचिन पायलट विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्री पदों से बर्खास्त कर दिया गया। पायलट को प्रदेश अध्यक्ष, मुकेश भाकर को युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राकेश पारीक को सेवादल का प्रदेश अध्यक्ष पद गंवाना पड़ा। गोविंद सिंह डोटासरा को नया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया। कांग्रेस के संगठन सेवादल की कमान हेम सिंह शेखावत और यूथ कांग्रेस का नया अध्यक्ष विधायक गणेश घोगरा को बनाया गया।
15 जुलाई को राजस्थान विधानसभा के नोटिस जिला प्रशासन ने सभी बागी विधायकों के आवास पर चस्पा कर दिए। इन नोटिस में 17 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के सामने उपस्थित होने की बात लिखी गई थी। कांग्रेस के बागी विधायक इन नोटिस के खिलाफ कोर्ट पहुंच गए। पायलट की तरफ से हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी वकील बने। उधर स्पीकर की ओर से कोर्ट में 17 जुलाई तक विधायकों पर कोई कार्यवाही नहीं करने की बात कही गई।
कांग्रेस विधायकों की बगावत के बीच केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भाजपा नेता संजय जैन, कांग्रेस विधायक भंवरलाल और विश्वेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री के ओएसडी लोकेश शर्मा ने पैसे के लेनदेन का ऑडियो टेप जारी कर दिया। 16 जुलाई को यह दावा किया गया कि 3 ऑडियो टेप में कथित तौर पर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह ने खरीद फरोख्त की कोशिश की। कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने 17 जुलाई को केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह, विधायक विश्वेंद्र सिंह, विधायक भंवरलाल शर्मा और भाजपा नेता संजय जैन के खिलाफ एसीबी में एफआईआर दर्ज करा दी। विधायक भंवरलाल शर्मा और विधायक विश्वेंद्र सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से 6 साल के लिए निलंबित भी कर दिया गया। इसी दौरान 22 जुलाई को ईडी ने मुख्यमंत्री के भाई अग्रसेन गहलोत पर और सीबीआई ने 20 व 21 जुलाई को विधायक कृष्णा पूनियां से पूछताछ की तो राज्य सरकार ने केंद्र पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा दिया।
सरकार ने विधानसभा सत्र बुलाना चाहा लेकिन राज्यपाल ने अनुमति नहीं दी। अनुमति नहीं मिलने पर 24 जुलाई को मुख्यमंत्री गहलोत समेत कांग्रेस के सभी मंत्री, विधायक और नेता राजभवन कूच कर गए और वहां धरना दिया-प्रदर्शन किया। इसके बाद भी कोई निर्णय नहीं निकला। राजभवन के खिलाफ कांग्रेस ने पूरे देश में लोकतंत्र बचाओ संविधान बचाओ कार्यक्रम का आयोजन किया। 27 जुलाई को इस अभियान में पूरे देश के राजभवन पर कांग्रेस ने घेराव किया। 27 जुलाई को कांग्रेस विधायकों ने राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखा।
इस पूरे सियासी घटनाक्रम में बसपा अचानक मुखर होकर कांग्रेस पर बरस पड़ी। बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायकों की सदस्यता को भाजपा विधायक मदन दिलावर और बसपा के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इस बीच विधान सभा बुलाने के चौथे प्रस्ताव को राज्यपाल ने स्वीकार किया लेकिन 21 दिन का समय मांगा। विधानसभा का सत्र 14 अगस्त को आहूत करने की तिथि तय हो गई। 31 जुलाई को कांग्रेस के सभी विधायकों को जयपुर के होटल फेयरमाउंट से जैसलमेर के सूर्यगढ़ रिसोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया। विधायकों की ईद और राखी जैसलमेर में बाड़ाबंदी में ही मनी।
10 अगस्त को अचानक यह खबर आई कि कांग्रेस आलाकमान ने पायलट के साथ मुलाकात की है और सुनवाई का आश्वासन दिया है। इसके बाद शाम को एआईसीसी मुख्यालय पर प्रियंका गांधी के साथ पायलट समेत सभी बागी विधायक मिले। बागी विधायकों में से एक भंवर लाल शर्मा दिन में ही जयपुर के लिए रवाना हो गए और वे शाम को मुख्यमंत्री गहलोत से मिले लेकिन जब प्रियंका गांधी से इन सब विधायकों की मुलाकात हुई उसके बाद राजस्थान में चल रहा राजनीतिक गतिरोध टूट गया और सरकार बचती हुई दिखाई दी। पायलट कैंप की जयपुर वापसी के बाद जैसलमेर में मौजूद सभी कांग्रेस विधायकों 12 अगस्त को जयपुर बुला लिए गए, लेकिन विधायकों को घर की जगह बाड़े बंदी में होटल फेयरमाउंट में ही भेजा गया जबकि पायलट कैंप के विधायक आजाद रहे।
कांग्रेस आलाकमान के सामने अपनी बात रखने के बाद 11 अगस्त को पायलट कैम्प के सभी विधायक जयपुर लौट आए और 13 अगस्त को मुख्यमंत्री आवास पर हुई विधायक दल की बैठक में शामिल हुए। वहां विक्ट्री साइन दिखा कर यह साफ कर दिया कि अब राजस्थान में कांग्रेस सरकार को किसी तरीके का कोई डर नहीं है। 13 अगस्त को कांग्रेस विधायक विश्वेंद्र सिंह और भंवर लाल शर्मा का निलंबन वापस ले लिया गया। 14 अगस्त को राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू हुआ जिसमें पहले कांग्रेस ने अपना बहुमत पेश किया। बहुमत पेश करने के लिए उन्हें वोटिंग की जरूरत नहीं पड़ी और ध्वनि मत से ही गहलोत सरकार ने अपना बहुमत पेश कर दिया और राजस्थान में गहलोत सरकार बच गई।