आजाद चोक में राष्ट्रसंतों को सुनने के लिए उमड़ी जनता
✍️ मूलचन्द पेसवानी
Bhilwara news । महान दार्शनिक राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ महाराज ने कहा कि किसी भी घर की ताकत दौलत और शौहरत नहीं, प्रेम और मोहब्बत हुआ करती है। प्रेम बिना धन और यश व्यर्थ है। जिस घर में प्रेम है वहाँ धन और यश अपने आप आ जाता है। उन्होंने कहा कि जहां सास-बहू प्रेम से रहते हैं, भाई-भाई सुबह उठकर आपस में गले लगते हैं और बेटे बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं।
वह घर धरती का जागता स्वर्ग होता है, वहीं दूसरी और भाइयों के बीच में कोर्ट केस चल रहे हैं, देराणी-जेठाणी, सास-बहू एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करती समझो वह घर साक्षात नरक है। उन्होंने कहा कि अगर भाई-भाई साथ है तो इससे बढ़कर माँ-बाप का कोई पुण्य नहीं है, और माँ-बाप के जीते जी अगर भाई-भाई अलग हो गए तो इससे बढ़कर उस घर का कोई पापोदय नहीं है।
संतप्रवर शुक्रवार को दिव्य सत्संग एवं पावन चातुर्मास समिति द्वारा आजाद चैक में आयोजित जीने की कला पर चार दिवसीय प्रवचन माला के दूसरे दिन घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर आप संत नहीं बन सकते तो सद्गृहस्थ बनिए और घर को पहले स्वर्ग बनाइए। जो अपने घर-परिवार में प्रेम नहीं घोल पाया वह भला समाज में क्या प्रेम रस घोल पाएगा? जो अपने सगे भाई को ऊपर उठा न पाया। वह समाज को क्या ऊपर उठा पाएगा? मकान, घर और परिवार की नई व्याख्या देते हुए संतश्री ने कहा कि ईंट, चूने, पत्थर से मकान का निर्माण होता है, घर का नहीं। जहाँ केवल बीबी-बच्ड्ढचे रहते हैं वह मकान घर है, पर जहाँ माता-पिता और भाई-बहिन भी प्रेम और आदरभाव के साथ रहते हैं वही घर परिवार कहलाता है।
चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि लोग सातों वारों को धन्य करने के लिए व्रत करते हैं, अच्छा होगा वे आठवां वार परिवार को धन्य करे, सातों वार अपने आप धन्य हो जाएंगे।
सेवा के लिए लिया संन्यासरू अपने जीवन का यथार्थ बताते हुए संतश्री ने कहा कि हमने वैराग्य से या मोक्ष पाने के लिए नहीं माता-पिता की सेवा के लिए संन्यास लिया है। माता-पिता ने बुढ़ापे को धन्य करने के लिए संन्यास ले लिया, बुढ़ापे में उनकी सेवा कौन करेगा, यह सोचकर ललितप्रभजी और मैं भी संन्यस्त हो गया। उन्होंने कहा कि हमने राम-लक्ष्मण को देखा नहीं, पर हम दोनों भाइयों ने राम-लक्ष्मण के आदर्श को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है।
घर को घर नहीं मंदिर समझेंरू घर को मंदिर बनाने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा जहां हम आधा-एक घंटा जाते हैं, उसे तो मंदिर मानते हैं, पर जहाँ 23 घंटे रहते हैं उस घर को मंदिर क्यों नहीं बनाते हैं। उन्होंने कहा कि घर का वातावरण ठीक नहीं होगा तो मंदिर जाने की याद आएगी पर हमने घर का वातावरण अच्छा बना लिया तो हमारा घर-परिवार ही मंदिर-तीर्थ बन जाएगा।
किसी का भी दिल न दुखाएंरू संतश्री ने कहा कि घर का हर सदस्य संकल्प ले कि वह कभी किसी का दिल नहीं दुरूखाएगा। हम किसी के आँसू पौंछ सकते हैं तो अच्छी बात है, पर हमारी वजह से किसी की आँखों में आँसू नहीं आने चाहिए।
अगर हमारे कारण माता-पिता की आँखों में आँसू आ जाए तो हमारा जन्म लेना ही बेकार हो गया। उन्होंने कहा कि हमसे धर्म-कर्म हो तो अच्छी बात है, पर ऐसा कोई काम न करें कि जिससे घर नरक बन जाए।
एक-दूसरे के काम आएंरू घर को स्वर्ग बनाने के लिए संतश्री ने कहा कि घर के सभी सदस्य एक-दूसरे के काम आए। घर में सब आहूति दें। घर में काम करना यज्ञ में आहूति देने जितना पुण्यकारी है। संतश्री ने घर को स्वर्ग बनाने के सूत्र देते हुए कहा कि घर के सभी सदस्य साथ में बैठकर खाना खाएं, एक-दूसरे के यहाँ जाएं, सुख-दुरूख में साथ निभाएं, स्वार्थ को आने न दें, भाई-भाई को आगे बढ़ाएं, सास-बहू जैसे शब्दों को हटा दें। जब बहू घर आए तो समझे बेटी को गोद लिया है और बहू ससुराल जाए तो सोचे मैं माता-पिता के गोद जा रही हूँ।
प्रवचन से प्रभावित होकर जब भाइयों और देरानियों-जेठानियों ने एक-दूसरे को गले लगाया तो माहौल भावपूर्ण हो उठा।
भजन सुनकर झूमें श्रद्धालु जब संतप्रवर ने स्वर्ग सरीखा लगे सुनहरा मंदिर सा सुंदर हो ऐसा अपना घर हो…. भजन सुनाया तो श्रद्धालु झूम उठे। कार्यक्रम का शुभारंभ सांसद सुभाष बहेड़िया, पूर्व सभापति मंजु पोखरना, ओमप्रकाश नराणीवाल, राजेन्द्र मारू, भूपेन्द्र पगारिया, उदयलाल समदानी, मीठूलाल स्वर्णकार, माहेश्वरी महिला मण्डल, महावीर शर्मा, गोपाल शर्मा, लवकुश शर्मा, महावीर चैधरी, अशोक कोठारी, सुरेन्द्र सुराणा, सागरमल पानगड़िया, भूपेन्द्र मोगरा, प्रीतम काबरा आदि ने दीप प्रज्वलित किया। भजन गायिका सुमन सोनी ने स्वागत गीत गाया।
कार्यक्रम में अर्चना सोनी, अलका गर्ग, मंजु खटवड़, संगीता अग्रवाल, चेतन मारू, मुकेश नराणीवाल, बबीता अग्रवाल आदि व्यवस्था से जुटे हुए थे।