भाजपा में चुनाव होंगे या थोंपे जाएगें मण्ड़ल अध्यक्ष ?

liyaquat Ali
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Tonk News / Dainik reporter (रोशन शर्मा ) – जिले में होने वाले भाजपा (BJP) के संगठनात्मक चुनाव (Organizational election) को लेकर टोंक विधानसभा क्षैत्र (Tonk Assembly Area) को छोड़ करके सभी मण्डलों की बैठकें हो चुकी वहीं पर्यवेक्षकों ने मण्डल अध्यक्ष के चुनाव के लिए आवेदन भी प्राप्त किये हैं। लेकिन भाजपा में  लोकतान्त्रिक (Democracy) तरीके से भाजपा में चुनाव होंगे या फिर ऊपर से अध्यक्ष (president) को थोपा जाएगा। इसको लेकर पार्टी में संशय की स्थिति बनी हुई हैं जिसका कारण भाजपा मण्डल अध्यक्षों के लिए गए आवेदन फॉर्म के साथ ही नाम वापसी का फॉर्म भी भराया गया हैं।

जिले में टोंक नगर परिषद के चुनाव (Tonk Municipal Election) होने के कारण टोंक शहर के दो मण्डलों में अभी तक न तो कोई बैठक हुई न ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई शेष टोंक जिले के सभी मण्डलों में चुनाव अधिकारी पहुंच करके अध्यक्ष के लिए आवेदन पत्र प्राप्त किये हैं। सबसे बडी बात यह हैं कि भाजपा मण्डल अध्यक्ष के आवेदन फॉर्म के साथ ही अध्यक्ष पद के प्रत्याशी से विड्रोल फॉर्म(नाम वापसी)भी लिया गया हैं।

ऐसी स्थिति में टोंक ही नही बल्कि राजस्थान में भाजपा कार्यकर्ताओं के समक्ष सवाल उठ रहा हैं कि दुनिया की सबसे बडी पार्टी भाजपा में मण्डल अध्यक्ष की नियुक्ति न तो कार्यकर्ताओ की सहमति से न ही लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से की जाएगी बल्कि प्रदेशाध्यक्ष की ओर से मण्डल अध्यक्ष थोपे जाएगें। जिससे पार्टी में गुटबाजी को बढावा मिलेगा ,कार्यकर्ताओं का कहना हैं कि पूर्व में भी मण्डल अध्यक्षों की नियुक्ति सिर्फ विधायको की अनुशंसा से की गई थी ।

जिसका ही परिणाम था कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवानी पडी क्योंकि मण्डल अध्यक्ष सिर्फ विधायक तक ही सिमट करके रह गए जिससे न तो संगठन मजबूत हो पाया न ही वार्ड समितियों का गठन जिससे काम करने वाले कार्यकर्ता अलग थलग हो गए। जिसका खामियाजा हाल ही टोंक नगर परिषद चुनाव में भी उठाना पडा वहीं पार्टी को नुकसान हुआ।

टोंक जिले में भी यदि भाजपा के मण्डल अध्यक्ष एवं जिलाध्यक्ष की नियुक्ति ऊपर से थोपी गई तो निश्चित ही भाजपा को नुकसान उठाना पडेगा। क्योंकि भाजपा से पूर्व मुख्यमन्त्री वसुन्धराराजे को अलग थलग किये जाने एवं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के रूप में सतीश पूनिया की ताजपोशी से लगता हैं कि अब जिलाध्यक्ष सहित मण्डल अध्यक्षों की नियुक्ति में अंधा बांटे रेवडी अपने -अपने का देय कहावत चरितार्थ हो सकती हैं। जिससे संगठन में गुटबाजी बढेगी वहीं वार्डो में काम करने वाले कार्यकर्ता किनारा करेंगे तो पार्टी को नुकसान होगा।

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