एम.इमरान टांक/ सरवाड़ के किले की बरसों बाद सरकार नें सुध ली है ओर करोड़ों का रिनोवशन चल रहा है। लेकिन कंस्ट्रक्शन फर्म नें पैसों की बचत करनें के चक्कर में किले की एक दीवार को तोड़ उससे पत्थर निकाल फर्म के टेंडर वाली दीवारों को बनानें में लगा दिए। इससे फर्म को तो लाखों का फ़ायदा हो गया लेकिन किले की रौनक जाती रही। किला आगे तो बनकर तैयार होता जा रहा है लेकिन भीतर से फर्म द्वारा जीर्ण-क्षीण कर दिया गया है। ये तो वही बात है “एक बस्ती को बसानें में दूसरी तबाह” की जा रही है ?
आवाम, नेता और प्रशासन जिम्मेदारी निभाए।*
किले में रिनोवशन कर रही फर्म को सिर्फ़ जल्दी से जल्दी काम निपटानें और ज्यादा से ज्यादा पैसा बचानें से मतलब है लेकिन किला तो अपना है। मतलब शहर की धरोहर है। इसकी देखरेख की ज़िम्मेदारी शहरवाशियों, नेताओं और प्रशासन की बनती है।
स्वर्णिम इतिहास का गवाह किला
सरवाड़ किशनगढ़ राज्य के अधीन एक परगना था। यहां राठौड़ वंशीय शासकों से लेकर गौड़ वंशीय शासकों का शासन रहा। इसे परगना गौडा पट्टी भी कहते हैं। किला 51 बीघा भूमि में बना हुआ है। ऊंचाई से देखनें पर कैरम बोर्ड की तरह दिखाई देता है। किले का निर्माण राजा बच्छराज गौड़ नें करवाया था।