मौत के 17 साल बाद मिला कर्मचारी को न्याय

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जयपुर

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हाईकोर्ट ने अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में कनिष्ठ लिपिक की 17 साल पहले की गई बर्खास्तगी को गलत माना है। हालांकि फैसला सुनने के लिए याचिकाकर्ता अब इस दुनिया में ही नहीं है। इसके चलते अदालत ने बर्खास्तगी से कर्मचारी की मौत की अवधि का आधा वेतन और अंतिम वेतन के आधार पर ग्रेच्युटी तथा अन्य परिलाभों का भुगतान उसकी पत्नी को करने के आदेश दिए हैं।इसके साथ ही अदालत ने मृत कर्मचारी की विधवा को पेंशन परिलाभ देने और अनुकंपा नियुक्ति पर विचार करने को कहा है। न्यायाधीश एसपी शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश याचिकाकर्ता अशोक कुमार शर्मा और बाद में मुकदमे को लडऩे वाली उसकी विधवा कमला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को जेएनएन अस्पताल प्रशासन ने जून,1998 को निलंबित कर दिया था। वहीं दिसंबर,1999 में उसे पुन: निलंबित किया गया। इसके बाद 22 जनवरी,2002 को उसे बर्खास्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी गई। याचिका के लंबित रहने के दौरान ही याचिकाकर्ता की मौत हो गई। इस पर उसकी विधवा ने मुकदमे को आगे बढ़ाया।याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कर्मचारी की बर्खास्तगी अवैध थी। इसलिए उस आदेश को निरस्त किया जाए। याचिका पर फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि विभाग ने जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की है। याचिकाकर्ता को फरवरी,2002 तक वेतन दिया और बिना कारण बताए बर्खास्तगी 22 जनवरी,2002 को ही कर दी। अदालत ने कहा कि कर्मचारी की मौत होने के कारण मामला पुन: जांच के लिए भेजने का कोई अर्थ नहीं है।ऐसे में बर्खास्तगी से उसकी मौत होने की अवधि का आधा वेतन और अन्य परिलाभ उसकी पत्नी को दिए जाए। इसके साथ ही अदालत ने बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए कर्मचारी की विधवा को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए विचार करने को कहा है।

हाईकोर्ट ने अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में कनिष्ठ लिपिक की 17 साल पहले की गई बर्खास्तगी को गलत माना है। हालांकि फैसला सुनने के लिए याचिकाकर्ता अब इस दुनिया में ही नहीं है। इसके चलते अदालत ने बर्खास्तगी से कर्मचारी की मौत की अवधि का आधा वेतन और अंतिम वेतन के आधार पर ग्रेच्युटी तथा अन्य परिलाभों का भुगतान उसकी पत्नी को करने के आदेश दिए हैं।

इसके साथ ही अदालत ने मृत कर्मचारी की विधवा को पेंशन परिलाभ देने और अनुकंपा नियुक्ति पर विचार करने को कहा है। न्यायाधीश एसपी शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश याचिकाकर्ता अशोक कुमार शर्मा और बाद में मुकदमे को लडऩे वाली उसकी विधवा कमला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को जेएनएन अस्पताल प्रशासन ने जून,1998 को निलंबित कर दिया था। वहीं दिसंबर,1999 में उसे पुन: निलंबित किया गया। इसके बाद 22 जनवरी,2002 को उसे बर्खास्त कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी गई। याचिका के लंबित रहने के दौरान ही याचिकाकर्ता की मौत हो गई। इस पर उसकी विधवा ने मुकदमे को आगे बढ़ाया।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कर्मचारी की बर्खास्तगी अवैध थी। इसलिए उस आदेश को निरस्त किया जाए। याचिका पर फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि विभाग ने जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की है। याचिकाकर्ता को फरवरी,2002 तक वेतन दिया और बिना कारण बताए बर्खास्तगी 22 जनवरी,2002 को ही कर दी। अदालत ने कहा कि कर्मचारी की मौत होने के कारण मामला पुन: जांच के लिए भेजने का कोई अर्थ नहीं है।

ऐसे में बर्खास्तगी से उसकी मौत होने की अवधि का आधा वेतन और अन्य परिलाभ उसकी पत्नी को दिए जाए। इसके साथ ही अदालत ने बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए कर्मचारी की विधवा को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए विचार करने को कहा है।

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