मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री
टोंक । भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रप्रद कृष्ण पक्ष अष्टमी बुधवार को अद्र्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र उच्चका चन्द्रमा मूल त्रिकोण राशि में वृक्ष लग्र में हुआ था। इस वर्ष 2 सितम्बर रविवार को सप्तमी तिथि रात्रि 8.47 बजे तक है। जिसके उपरांत अष्टमी का शुभारंभ है जो 3 सितम्बर सोमवार को रात्रि 7.20 बजे तक है। रोहिणी नक्षत्र 2 सितम्बर रविवार को रात्रि 8.49 बजे से प्रारंभ होकर 3 सितम्बर रात्रि 8.05 बजे तक
है। अत: भगवान श्री कृष्ण का जन्म अद्र्ध रात्रि से होने से 2 सितम्बर रविवार अद्र्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र को ही व्रत
एवं पूजन करना झूला झूलाना आदि जन्मकालिनी स्थिति से प्रशस्त है।
मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि धर्म ग्रन्थों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रप्रद कृष्ण पक्ष अष्टमी बुधवार को अद्र्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र उच्चका चन्द्रमा मूल त्रिकोण राशि में वृक्ष लग्र में हुआ था। वैष्णव मतवाले मथरा वृन्दावन, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि में सूर्य उदयकालीन तिथि को ग्रहण कर जन्मोत्सव मनाने की परम्परा है।
3 सितम्बर सोमवार को अष्टमी उदयकालीन तिथि है। जिसके अनुसार 3 सितम्बर को जन्मअष्टमी बताई है। किन्तु इस अवधि में अद्र्धरात्रि के सम नवमी तिथि एवं मृग शीरा नक्षत्र होगा। उत्तर भारत के सभी प्रांतों में चन्द्रोदय व्यापिनी तिथियों में व्रत जन्मोत्सव आदि मनाने की परम्परा है। अत: श्री कृष्ण जन्मोत्सव 2 सितम्बर रविवार रात्रि को मनाया जाना प्रशस्त है। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म वृष लग्र में हुआ था।
लग्नेश शुक्र स्वराशि के होकर छठे भाव में उच्च के शनि से युति कर रहे है। चन्द्रमा वृष राशि में मंगल, मकर राशि में बुध कन्या राशि में, गुरू कर्क राशि में, उच्च के होकर बैठे है। सूर्य स्वराशिस्थ होकर चतुर्थ भाव में स्थित है। अत: इनके पांच ग्रह उच्च के एवं दो ग्रह स्वराशिस्थ है। राहू केतु भी अपनी राशियों में है।

उच्च का चन्द्रमा लग्र में स्थित होना तथा पराक्रम के नैसर्गिक कारक मंगल का उच्च राशि में नवम भाव में स्थित होकर
पराक्रम भाव को देखना मंगल पर गुरू के प्रभाव के कारण इन्होने सदैव अपने साहस शोर्य एवं पराक्रम का उपयोग न्यायपूर्ण ढंग से किया तथा सत्य का समर्थन किया। हिन्दू संस्कृति में संस्कारों का महत्व बताकर गीता का उपदेश दिया।