बाड़मेर । सीमावर्ती जिले बाड़मेर की मस्जिद की अज़ान बॉर्डर पार रोजेदारों को साफ सुनाई देती है। इसे सुनकर दो गांवों में सहरी की जाती है। भारत-पाक सीमा पर कितना भी तनाव हो, लेकिन राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर की एक मस्जिद दोनों देशों के बीच एक ऐसा रिश्ता जोड़े हैं,जिसकी डोर रजमान के महीने में और मजबूत हो जाती है। हम बात कर रहे हैं बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद और रमजान के दौरान मस्जिद अजान की यहां की अज़ान सरहद पार के गांव पादासरिया और जमाल की ढाणी तक सुनाई देती है और इसी के भरोसे वहां के रोजेदार सहरी करते हैं। रमजान के महीने में राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर की यह मस्जिद बॉर्डर पार रोजेदारों के लिए खास बन जाती है। बन्ने की बस्ती के रफीक खान के अनुसार आसपास में उनकी बस्ती में ही मस्जिद है। जबकि उनकी बिरादरी और समाज के लोग दूर-दूर तक फैले हैं। बंटवारे के समय उनके ही परिवार से कुछ लोग पाकिस्तानी सीमा में रहने लगे थे। यहां ढाणियों में रहने वाले मुस्लिम परिवारों के लिए यह मस्जिद खास है, क्योंकि रमजान के महीने में यहां की अज़ान से वे लोग सहरी करते हैं। बन्ने की बस्ती के एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि सीमा पर तारबंदी के बाद दोनों ओर रहने वालों का आना-जाना भले ही बंद हो गया, लेकिन आज भी सीमा पार के कुछ गांव रमजान के महीने में सूरज निकलने से पहले तक सहरी की अदायगी यहां की अज़ान से करते हैं। इसी तरह सूरज डूबने के वक्त यानी मगरिब की अज़ान होने पर वहां रोजा इफ्तार होता है।