यहां बसती है । हीरानंदगिरी महाराज की आत्मा -खर्च हुए करोड़ो रूपये ।।

Sameer Ur Rehman
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करोड़ो की लागत से बनी श्री हिरानन्दगिरी जी महाराज की समाधि स्थल

निवाई। (विनोद सांखला) दौसा कोथून हाईवे पर स्थिति निवाई के ग्राम पंचायत हरभावता में अद्वेत आश्रम पर संत श्री हीरानंदगिरी जी महाराज की समाधि बनकर तैयार हो गई है । समाधि में करोड़ो रूपये खर्च हुए। सरोवर की पाल पर स्थित स्वामी जी का भव्य समाधि की शोभा अद्भुत है,सफेद मारबल से बनी विशाल समाधि का निर्माण संत श्री बालकानन्दगिरी के सान्निध्य में 2 वर्ष पुर्व से किया जा रहा था, इसमे सुक्ष्म कला के अद्भुत नमुने है, विशाल गुमज प्रातः काल सुर्य की रोशनी से जगमगाता हुआ प्रतित होता है, विशाल सरोवर की पाल पर एक तरफ हिरानन्दगिरी के शिष्य संत सेवानन्दगिरी की समाधि बनी हुई है, जो स्थापत्य कला के अद्भुत नमुने है, विशाल समाधि के चारों तरफ सरोवर है ,तथा पेड़ पोधो से सम्पूर्ण समाधी सुशोभित होती है । आश्रम समिति के लोगों ने बताया कि हिरानन्दगिरी की समाधि मे सम्पूर्ण मारबल ड़ेगाना नागौर से लाया गया है, इस समाधी मैं सीमेंट का उपयोग नाम मात्र हुआ है, स्थापत्य कला से पत्थरों को जोड़ जोड़ कर सुनियोजित ढंग से समाधी निर्माण करवाया गया है, अब स्वामी जी की मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कि जायेगी ।

महान संत थे श्री हिरानन्दगिरी जी महाराज

ग्रामीणों ने बताया कि स्वामी जी ने लगभग 20 वर्ष तालाब की पाल पर झोपड़ी बनाकर अंखड़ तपस्या की, उसके बाद उनको आत्म ज्ञान की प्राप्ति हुई,
हिरानन्दगिरी महाराज पढ़े लिखे नहीं थे, किन्तु जो पद इनके मिलते है इनकी भाषा में आत्म बल है, जहाँ व्याकरण के नियम नतमस्तक हो जाते है, इनके पद हृदय की आवाज है महात्मा जी ने लिखा है त्रिगुणतीत माया तृष्णा काल जम ग्रेसे जग संसारी । भगवान तो त्रिगुणतीत है ।गुरूमुख से निकले हुए ज्ञान द्वारा बिरला मनुष्य माया को जान सकता है । हीरानन्द चेतन गुरु स्वामी निर्गुण रटो निर्भयकारी । इनके गुरु का नाम चेतनानन्द जी था ,हीरानन्दजी अद्धेतवादी महात्मा थे इनके पदो मैं अद्धेत के विचारों की झलक है, स्वामी जी का मानना था कि मानना था कि जहाँ जब वाद समाप्त हो जाये, मानव भगवान बन जाये, भगवान मानव बनकर भूमि पर अभिनय करता दीखे यही अद्धेतवाद है,जहाँ ब्रह्म ओर जीव का भेद मिट जाता है, जाती धर्म की व्यवस्था से दूर मानव को धरातल पर ही धरा से ऊँचे पर लाना बिरले साधुओ का काम है, स्वामी ने गाँव और झोपड़ियों और ढाड़ियो के बुझे दिलो मैं नया दौर नया जीवन तथा नया उत्साह भर दिया, विश्व के महान राष्ट्रों ने जिस शांति का आज महत्व समझा है, जिनके लिए मार्ग खोज रहे हैं । महात्मा हीरानन्दजी ने उन्ही विचारों विचारों का समाधान गीतो में गाकर किया है । राजस्थान के उत्तर पूर्वी भाग की ग्रामीण जनता इनके गीत गाती है ओर सहज संवेदन के सुख को पा रही है ।

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Editor - Dainik Reporters http://www.dainikreporters.com/
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