श्रीचक्र स्वरूपी ललिता वास्तवनम
नमो हैमा द्रिस्ये शिव शक्तिनम: श्रीपुरगते।
नम: पदमाव्यां कुतुकिनि नमो रत्र गृहगे ।।
नम: श्रीचक्रस्थ खिलमये नमो बिन्दु विलये ।
नम: कामेशांक स्थिति मतिनमस्ते य ललिते।।
दीपावली महापर्व 59 वर्ष बाद मालवय योग का शुभाशुभ योग घटित हो रहा है जो इस से पुर्व एक नवंबर सन् 1959मे घटित हुआ था वार बुधवार है जो इस से पुर्व सन 2001.2011.एव2015मे आया था अतः दीपावली महापर्व का महत्व इस वर्ष विशेष है। साहू बाबूलाल शास्त्री टोक राजस्थान
श्री वैभव समृद्धि अर्थ प्रदाय कमॉ लक्ष्मी को प्रसन्नकर मनवांछित फल
प्राप्ति हेतु आराधना का सहज एवं सुलभ योग महापर्व लक्ष्मी पूजा दीपावली
समय काहै । अभयदात्रि धनदायिनी महालक्ष्मी और रिद्धि सिद्धि दातागणपति,
ज्ञानबुद्वि चौसठकलाओं की दात्री मां सरस्वती के पूजन का महापर्व दिपावली
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के प्रतीक रूप में अमावस्या के दो दिन
पूर्व से लेकर अमावस्या के दो दिन बादतक पंच पर्व रूप में प्रतिवर्ष बड़े
उत्साह एवं उल्लास से मनाया जाता है। लक्ष्मी का स्थायी वास संभव है।
किन्तु उसके लिये नैतिक मूल्यों के प्रति आस्था रखकर प्रथम तो उसी के
अनुकुल वातावरण बनाना आवश्यक है। जिसके लिए घर में ऐसे वातावरण का
निर्माण करे कि परिवार में मधूरता और मृदभाषी सत्यभाषी परिवार के सदस्य
हो। धर्म को मानने वाले सदाचारी हो लड़ाई-झगड़ा नही हो घर के इष्टदेव के
प्रति श्रद्धानत हो आध्यात्मिक वातावरण हो पूजा पाठ होता हो एवं शुद्ध
सात्विक भोजन करते हो।
द्वितिय कालगणना अनुसार लग्न मूहर्त का शुभ योग हो
क्योकि भक्ति आराधना कर्म से जुड़ी है इनका समन्वय किसी पर्व योग मूहर्त
मं में होता हो तो मानव जीवन का निर्माण स्वत: ही सम्पन्न हो जाता है ।
सही योग व सही लग्न में किया गया कार्य निश्चित ही सफलता प्रदान करता है।
लक्ष्मी पूजन स्थिर लग्न में किये जाने से समस्त भौतिक सम्पदाओं की
पूर्ति मॉ लक्ष्मी के स्थायित्व निवास से प्राप्त होती है।
महालक्ष्मी पूजन प्रदोष युक्तअमावस्या को स्थिर लग्न व स्थिर नवमांश में किया जाना
सर्वश्रेष्ठ होता है। इस वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या बुधवार 7 नवम्बर
2018 को प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने से इसी दिन दीपावली मनाई जाकर
लक्ष्मी पूजन किया जायेगा जिसमें प्रदोष काल सांय 5.36 बजे से रात्रि
8.14 बजे तक है ।
प्रदोष काल सहित स्थिर वृष लग्न संाय 06.08 बजे से
रात्रि 8.05 बजे तक है जो महालक्ष्मी पूजन के लियेश्रेष्ठ समय है जिसमें
सांय 6.20 बजे से 6.33 बजे तक प्रदोष काल स्थिर वृष लग्न तथा कुभ्ंा का
नवमांष अतिश्रेष्ठ है । निशिथकाल अद्र्वरात्रि 01.45 बजे से 02.37 बजे तक
सिंह लग्न मध्य रात्रि बाद 12.38 बजे से अद्र्वरात्रि बाद 2.54 बजे तक है
। चौघडिया मुहुर्त अनुसार शुभ अमृत चरका रात्रि 7.15 बजे से मध्यरात्रि
12.10 बजे तक लाभ का अद्र्वरात्रि बाद 3.27 बजे से 5.06 बजे तक सूर्योदय
से पूर्व में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है ।
ज्योतिषीय दृष्टि से
चन्द्रमा रात्रि 07.37 बजे तक स्वाति नक्षत्र में जिसका स्वामी राहु है
उपरांत सूर्य के साथ विशाखा नक्षत्र जिसका स्वामी बृहस्पति है विचरण
करेगें। इस वर्ष 59 वर्ष बाद शुक्र अपनी तुला राशि चित्रा नक्षत्र जिसका
स्वामी मंगल है। गोचर कर मालवीय योग बना रहा है। जो पूर्व में 1 नवम्बर
1959 को गठित हुआ था। अत: सूर्य चन्द्र, शुक्र की युति तुला राशि में
राहू, मंगल, गुरू, शनि के प्रभाव को लिये हुये है।
सूर्य का नीच भंग योग
बन रहा है। सूर्य पंचमेश एवं चन्द्रमा, चर्तुथेश है। वार बुधवार होने से
बुध जो पराक्रम भाव एवं शत्रु भाव का स्वामी है। का विशेष प्रभाव है। काल
पुरूष की कुंडली में सप्तम भाव तुला राशि शुक्र की है । ग्रहों का
केन्द्र व त्रिकोण मधुर संबंध होने से विधासुख, संतान, भौतिक सुखों, सर्व
भोगप्रद, धनकारक महालक्ष्मी योग बन रहा है । साथ ही स्वास्थ्य लाभ
पराक्रम वृद्वि शत्रुओं पर विजय के साथ सर्व बाधा निवारण के योग बन रहे
है।
बाबूलाल शास्त्री (साहू)
मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक
बड़वाली हवेली के सामने
सुभाष बाजार टोंक (राज.)
मोबाइल:- 9413129502, 9261384170