सच बोलना व सच का साथ देना ही सबसे बड़ा धर्म है – संत सुधा सागर

liyaquat Ali
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संसार में वाणी का सब खेल 

 

देवली/दूनी (हरि शंकर माली)। देवली उपखण्ड के श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ‘सुदर्शनोदय’ तीर्थ आँवा मे चल रहे चातुर्मास मे महाराज ससंग मे मुनि श्री सुधा सागर जी ने अपने मंगल प्रवचनों मे कहा की मूर्खों से कभी तर्क मत कीजिये क्योंकि, पहले वे आपको अपने स्तर पर लायेंगे और फिर अपने ओछेपन से आपकी धुलाई कर देंगे। इंसान “जन्म” के दो वर्ष बाद बोलना सीख जाता है लेकिन बोलना क्या है ? यह सीखने में पूरा जन्म लग जाता है ।

 

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शब्द तो मन से निकलते हैं दिमाग से तो ‘मतलब‘ निकलते हैं। एक बेहतरीन इंसान अपनी जुबान से ही पहचाना जाता है वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं। इसी प्रकार आप इस संसार मे देखा होगा की वाणी में भी अजीब शक्ति होती है;
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नही बिकता और; मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है।

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हम किसी का भला न कर सकें तो कम से कम उसके भले के बारे में सोच सकते हैं। इसमें तो हमारा कुछ नहीं जाता है। हमारे मन में जैसे भाव दूसरे के लिए होंगे वैसे ही हमारे साथ होगा, इसलिए दूसरों के बारे में मन में अच्छे भाव होने चाहिए। इसलिए किसी का भला न कर सको तो कम से कम किसी का बूरा तो न करो। मनुष्य जीवन में हमेशा भला सोचना चाहिए ताकि हमारा लाभ हो। भला का उल्टा पढ़ेंगे तो लाभ होगा।

संसार में वाणी का सब खेल

मुनि पुगंव सुधा सागर जी महाराज ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसार में वाणी का सब खेल है। हमारा व्यवहार कई बार हमारे ज्ञान से अधिक अच्छा साबित होता है क्योंकि जीवन में जब विषम परिस्थितियाँ आती हैं तब ज्ञान हार सकता है किन्तु व्यवहार से हमेशा जीत होने की संभावना रहती है।शब्दों के द्वारा हमारा जीवन बहुत जल्दी प्रभावित होता है। एक शब्द सुनकर आपके अन्दर खुशियां छा जाती है। एक शब्द सुनके आपके अन्दर राग की रेखाएं छा जाती है। एक शब्द सुनकर क्रोध की लहर छा जाती है।

एक शब्द सुनकर क्षमा का संचार होने लगता है। मधुर वाणी एक प्रकार का वशीकरण है। जिसकी वाणी मीठी होती है, वह सबका प्रिय बन जाता है। प्रिय वचन हितकारी और सबको संतुष्ट करने वाले होते हैं। फिर मधुर वचन बोलने में दरिद्रता कैसी? वाणी के द्वारा कहे गए कठोर वचन दीर्घकाल के लिए भय और दुश्मनी का कारण बन जाते हैं। इसीलिए साधारण भाषा में भी एक कहावत है कि गुड़ न दो, पर गुड़ जैसा मीठा अवश्य बोलिए, क्योंकि अधिकांश समस्याओं की शुरुआत वाणी की अशिष्टता और अभद्रता से ही होती है।

सभी भाषाओं में आदरसूचक शिष्ट शब्दों का प्रयोग करने की सुविधा होती है। इसलिए हमें तिरस्कारपूर्ण अनादरसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें वाणी की मधुरता का दामन नहीं छोडऩा चाहिए। मीठी वाणी व्यक्तित्व की विशिष्टता की परिचायक है।

मंत्रों में अपूर्व शक्ति होती है

मंत्रों में अपूर्व शक्ति होती है। मंत्रों के माध्यम से आप शब्दों के प्रभाव देख सकते है। मंत्रों के माध्यम से आप अलोकिक निधियां प्राप्त कर लेते है पर आपने मंत्रों की महिमा को समझा नहीं है, मंत्र वह सुरक्षा कवच है जो मन की सुरक्षा करता है। श्रद्घा भक्ति सहित जो मंत्र का जाप करते है वह अपने जीवन में मानसिक प्रदूषण को दूर कर देते है। निरंकुश मन को अंकुष करने वाला मंत्र ही है।

मंत्र को जपते समय मन अगर स्थित नहीं है तो वह मंत्र उतने कार्यकारी नहीं होते मन की स्थिरता के साथ अगर आप जाप करते है तो वह मंत्र आत्म-साक्षात्कार कराने में माध्यम बनते है।

मन के अनेक कार्य है चिंतन, मनन, स्मृति आदि। आज का व्यक्ति अतीत और अनागता में जी रहा है वर्तमान में बहुत कम लोग जीते है। या तो व्यक्ति अतीत और अनागत में जी रहा है वर्तमान में बहुत कम लोग जीते है या तो व्यक्ति भूत की स्मृतियों में उलझ जाता है या भविष्य की कल्पनाओं में उलझ जाता है।

सच बोलना व सच का साथ देना ही सबसे बड़ा धर्म है

मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, द्वेष से बचना चाहिए। इनमें से अगर कोई भी मनुष्य पर हावी हो जाए तो मनुष्य भगवान को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता। अगर मनुष्य को भगवान की शरण में जाना है तो इन बुराइयों को अपने मन से निकालना होगा। बिना स्वार्थ के की गई सेवा व भक्ति का फल शीघ्र ही मिलता है। इसलिए मनुष्य को बिना स्वार्थ के भक्ति करनी चाहिए।

भगवान भी अपने भक्त का हर मुश्किल समय में साथ देते हैं और उसे मुश्किल से निकालते हैं। अगर कोई मुसीबत आती है तो उससे घबराएं नहीं, बल्कि डटकर उसका सामना करें और भगवान पर विश्वास बनाए रखें। मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति को हमेशा सच व धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए।

असल में सच बोलना व सच का साथ देना ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि जब बच्चा पैदा होता है, तब वह अपना पिछला भाग्य साथ लाता है। जैसा उसने पूर्व भाव में कर्म किया है, उसे वैसा ही फल मिलता है। जीव जैसा कर्म कर रहा है वैसा ही उसे आने वाले समय में फल भोगना पड़ेगा। जब समय खराब होता है तो अपने भी मुंह फेर लेते हैं। इसीलिए सम्यक भाव से जीवन यापन करना चाहिए।

जानकारी देते हुए समिति अध्यक्ष नेमिचन्द जैन पवन जैन आशीष जैन श्रवण कोठारी ने बताया कि शनिवार को प्रात: 7:30 बजे से अभिषेक एवं शांतिधारा तत्पष्चात् परम पूज्य पुगंव सुधा सागर जी महाराज के प्रवचन प्रात: 9:00 बजे ‘सुदर्शनोदय’ तीर्थ क्षेत्र आँवा स्थित प्रवचन पण्डाल में होगें, इसके पश्चात् 10:30 बजे मुनि श्री की आहारचर्या, 12:00 बजे सामायिक व सांय 5:30 बजे महाआरती एवं जिज्ञासा समाधान का कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा।

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