टोंक । भगवान विष्णु सांसारिक सुखों से जुड़े हुए सारे मनोरत कार्य पूर्ण करने वाले है। सूर्य पुत्र शनि देव सात्विक एवं धार्मिक के साथ-साथ दुष्टों के लिये दंडनायक है। जिससे प्रश्र होकर भगवान शिव ने उन्हें प्राणियों के कर्मो अनुसार फलों का निर्णायक बनाया। शनि देव प्राणी के कर्मा के अनुसार फल देते है। वर्तमान में शनि देव मूल नक्षत्र जिसका स्वामी केतु, धनु राशि जिसका स्वामी बृहस्पति है में 18 अप्रेल से वक्री होकर भ्रमण कर रहे है जो 6 सितम्बर को मार्गी होगें।
शनि देव के वक्री होने से अशुभ फलों एवं कष्टों में वृद्धि होती है। जिसके निवारण के लिए भगवान शिव की पूजा आराधना का श्रावण माह का विशेष महत्व है। जिसमें 12 अक्टूबर शनिवार को शनि अमावस्या का आना भी अद्भूत योग है। जिसमें भगवान शिव के साथ-साथ शनि देव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है एवं अशुभ फलों में कमी आती है। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि चन्द्रमा मन का कारक है।
चन्द्रमा से 12 वें भाव में चन्द्रमा के उपर एवं द्वितीय भाव में शनि के गोचर करने से प्राणी का मन विचलित हो जाता है। इस अवधि को शनि की साढ़े साती कहते है। वर्तमान में शनि की साढ़े साती वृश्चिक, धनु, मकर, चतुर्थ ढेय्या कन्या, अष्टम ढय्या वृष राशि को आर्थिक हानि मांगलिक कार्यो में बाधा कार्य व्यवसाय में बाधा के योग, मिथुन, कर्क, तुला, मीन राशि वालों को मध्यम फल, मेष, सिंह, कुंभ राशि को शुभ फल के योग बनाते है।
शनि देव के अनिष्ठ फल निवाराणर्थ तेल छाया पात्र दान शनि मंत्र का जाप सप्त धान्य दान करना, अपंग एवं गरीबों को काली वस्तुओं का दान करना, उड़द की दाल की पकौडिय़ा, अमरतिया खिलाना, काला कपड़ा, उड़द, सरसों का तेल, लौहे की वस्तुओं से पूजा करना पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना लाभप्रद है। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि इसी दिन खंडग्रास सूर्य ग्रहण है जो भारत में नही होकर अमेरिका, यूरोप आदि में है जो दिन में 1.32 बजे से शाम 5 बजे तक दिखाई देगा।