जिंदादिल शख़्शियत के धनी है सीरियल “मरियम खान रिपोर्टिंग लाईव” के डाइरेक्टर इस्माईल उमर खान

liyaquat Ali
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एम.इमरान टांक/9251325900

फ़िल्म सिटी में “मरियम खान रिपोर्टिंग लाईव” का सेट लगा है। सेट पर दिनभर शूटिंग के साथ मुम्बई की उमस भरी गर्मी की बेचैनी और थका देनें वाली मेहनत के बीच अपनी मुस्कुराहट से सेट पर अभिनय कर रहे कलाकार हो या पर्दे के पीछे की टीम, सबको खिलखिलाकर हंसनें को मजबूर कर देनें वाले डाइरेक्टर हैं इस्माईल उमर खान!

 

दिनभर की शूटिंग के बीच ज़रा सी भी शिकन उनके इर्द-गिर्द भटके ये नामुमकिन है। गलती पर गुस्सा भी करते हैं लेकिन महज़ चंद पलों का! यही गुस्सा सीरियल में किरदार अदा कर रहे कलाकारों के लिए संजीवनी सा होता है। सीरियल में मरियम खान का किरदार अदा कर रही देशना दुग्गड़ का कहना हैकि सर बहुत अच्छे है, बहुत प्यार देते हैं। सीरियल में दादा का किरदार अदा कर रहे सीनियर कलाकार एस.एम.ज़हीर तारीफ़ में कहते हैंकि इस्माईल बहुत क़ाबिल डाइरेक्टर है, इनका अनुभव हम लोगों के काम आ रहा है। वे हमसे अच्छे से अच्छा परफॉर्मेंस निकाल रहे है, ये उनकी क़ाबिलियत और अनुभव को दर्शाता है। इसी तरह सीरियल के फोटोग्राफी डाइरेक्टर अंकित चौकसे के साथ इनका बेहतरीन तालमेल है। नतीज़ा, सीरियल की परफॉर्मेंस जबरदस्त हैं। काबिल-ऐ-गौर बात हैकि इस्माईल उमर खान इससे पहले कई सीरियल्स में बतौर डाइरेक्टर अपनी लाज़वाब परफॉर्मेंस दे चुके है, इसी का नतीजा हैकि सीनियर कलाकार उनकी तारीफ़ किये बिना नहीं रहते। वे “मरियम खान रिपोर्टिंग लाईव” में अपनी क़ाबिलियत का लौहा मनवा रहें हैं।

खान की शुरुआत 1995 में हुई। वर्ष 2001 में मुकेश खन्ना के शो शक्तिमान में काम मिला। बाद में बालाजी टेलीफिल्म्स में एकता कपूर नें स्वतंत्र डाइरेक्टर के रूप में “कभी सौतन-कभी सहेली” में ब्रेक दिया। यानि खान की जर्नी व्यवस्थित रूप से वर्ष 2001 से शुरू हुई। इसके बाद शाकुन्तलम् टेलीफिल्म्स का पॉपुलर शो ” बनूं में तेरी दुल्हन” किया, जो हमेशा टीआरपी चार्ट में रहा। इसी तरह सीरियल संतान, बंधन कच्चे धागों का, मां, सपनों से भरे नैना, गुनाहों का देवता, मितवा किया। लाईफ ओके पर हातिम पुराना-नया दोनों शो किये। मरियम से पहले स्टार प्लस के लिए “इक्यावन” का सेटअप किया। यूटीवी के लिये “सौभाग्यवती भव:” किया जो बहुत चला। कई ग्राफिक शो भी किये। खान का फ़िल्मी बेकग्रॉउंड नहीं है, जो मुक़ाम हांसिल किया है वो मेहनत का नतीजा है। इस जर्नी में “दिनकर जानी” की अहम भूमिका रही है, जानी नें ही इन्हें “शक्तिमान” में लिया। बालाजी टेलीफिल्म्स में कैद सर नें मदद की तो नामचीन क्रिएटिव “निवेदिता बासू” का कॅरियर में काफ़ी स्पोर्ट रहा। फ़िल्म करनें की ख़्वाहिश दिल के एक कौने में रची-बसी है। हाल ही एक वेब फ़िल्म बनाई है, जिसके बारें में ज्यादा कुछ बतानें से परहेज़ किया है। इस्माईल उमर खान की ज़िन्दगी का लब्बोलुआब चंद लाइनें बयां करती है।

“तिशनगी के भी मुक़ामात है क्या-क्या यानि।

कभी दरिया नहीं काफी, कभी कतरा है बहुत।।

मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े है गवाह।

मैनें पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहुत।।”

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