क्या आनंद नहीं रहेगा!

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नई टेक्नोलॉजी, लोगों की बदली हुई रुचियां और मनोरंजन के नये माध्यमों ने सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों का मर्सिया लिख दिया। जोधपुर भी इससे क्यों अछूता रहता। यहां भी एक एक करके बड़े सिनेमाघर बंद होते गए हैं और उनकी जगह नया मुनाफा देने वाले व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बन गए जिनमें से कुछ में छोटे छोटे सिनेमाघर मल्टीप्लेक्स आ गए।

ओलंपिक, मिनर्वा, स्टेडियम, चित्रा, चारभुजा सब बंद हो गए और उनकी जगह नए व्यवसायिक स्थल खड़े हो गए। आज शहर से गुजरते हुए देखा तो आनंद सिनेमा पर भी ताला लगा मिला। यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता हैं कि इस सिनेमाघर के खूबसूरत भवन के साथ भविष्य में क्या हो सकता है।

इस सिनेमाघर की बड़ी दिलचस्प दास्तान है। आजादी के बाद इस शहर में बनने वाला यह पहला सिनेमाघर था। कहते हैं इस सिनेमा हाल के निर्माता आनंद सिंह कच्छवाहा कोई फिल्म देखने स्टेडियम सिनेमा में गए थे जहां उन्हें उच्च श्रेणी की सभी सीटें बुक बता कर उसके प्रबंधकों ने उन्हें निचली श्रेणी का टिकट दे दिया। वे बिना फिल्म देखे चले आए और तुरंत यह तय किया की वे स्वयं एक सिनेमाघर बनाएंगे। और उन्होंने ऐसा किया।

आनंद सिनेमाघर के मुख्य द्वार के बाहर लगे शिलालेख इस सिनेमाघर का इतिहास कहते हैं। पहला शिलालेख बताता है कि इसके भवन की नींव मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास में 3 मार्च 1949 को रखी। एक साल में इसका भवन बनकर तैयार हुआ जिसका उद्घाटन राजस्थान के तत्कालीन श्रम मंत्री नरसिंह कछवाह ने 30 अप्रैल 1950 को किया।

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