महात्मा ज्योतिराव फुले की 131वीं पुण्यतिथि पर की श्रद्धांजलि अर्पित

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भरतपुर/राजेंद्र शर्मा जती। महात्मा ज्योतिबा फुले की 131 बी पुण्यतिथि पर सूरजपोल चौराहे पर उनकी प्रतिमा पर फूल माला पहनाकर श्रद्धांजलि अर्पित की कार्यक्रम में पार्षद रामेश्वर सैनी ने महात्मा ज्योतिराव फूले के जीवन परिचय के बारे में बताएं महात्मा ज्योति राव फूले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में शूद्र वर्ण की ‘माली’ जाति में हुआ था।

जिन्हें ‘मनुस्मृति’ के विधान के हिसाब से न शिक्षा प्राप्त करने की आजादी थी और न अपनी मर्जी का पेशा चुनने की। लेकिन वक्त बदल चुका था। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में ‘दासता उन्मूलन अधिनियम-1833’ और मैकाले द्वारा प्रस्तुत ‘मिनिट्स ऑन एजुकेशन’ (1835) लागू किये जा चुके थे। यह मनुस्मृति-आधारित सामाजिक व्यवस्था को बदलने वाली एक महान पहल थी जिसमें जॉन स्टुअर्ट मिल की उल्लेखनीय भूमिका रही।

1848 में मात्र 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। वर्ष 1840 में उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की सावित्रीबाई फुले से हुआ। वे पढ़ना चाहती थीं। परंतु उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था।

शिक्षा के प्रति पत्नी की ललक देख जोतीराव फुले ने उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। लोगों ने उनका विरोध किया। परंतु फुले अड़े रहे। तीन वर्षों में पति-पत्नी ने 18 स्कूलों की स्थापना की। उनमें से तीन स्कूल लड़कियों के लिए थे।

24 सितंबर, 1873 को पुणे में, सत्य शोधक समाज की स्थापना के मौके पर आए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए महात्मा फुले ने कहा था—
‘अपने मतलबी ग्रंथों के सहारे हजारों वर्षों तक शूद्रों को नीच मानकर ब्राह्मण, भट्ट, जोशी, उपाध्याय आदि लोग उन्हें लूटते आए हैं। उन लोगों की गुलामगिरी से शूद्रों को मुक्त कराने के लिए, सदोपदेश और ज्ञान के द्वारा उन्हें उनके अधिकारों से परिचित कराने के लिए; तथा धर्म और व्यवहार-संबंधी ब्राह्मणों के बनावटी और धर्मसाधक ग्रंथों से उन्हें मुक्त कराने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई है।’

कार्यक्रम की अध्यक्षता रामगोपाल सैनी एडवोकेट ने कहा आने की सत्यशोधक समाज एक तरह से ब्राह्मण संस्कृति या हिन्दू धर्म को नकारने जैसा प्रयास था। जिसके प्रभाव में आकर लोगों ने पुरोहितों से किनारा करना शुरू कर दिया।

आधुनिक भारत के इतिहास में 19वीं शताब्दी सही मायनों में परिवर्तन की शताब्दी थी। अनेक महापुरुषों ने उस शताब्दी में जन्म लिया। कार्यक्रम में पार्षद किशोर सैनी ने कहां यदि किसी एक को ‘आधुनि वास्तुकार’ चुनना पड़े तो वे महात्मा ज्योतिबा फुले ही होंगे।

उनका कार्यक्षेत्र व्यापक था सैनी समाज महिला जिला अध्यक्ष बबीता सैनी ने कहा। स्त्री शिक्षा, बालिकाओं की भ्रूण हत्या, बाल-वैधव्य, विधवा-विवाह, बालविवाह, जातिप्रथा और छूआछूत उन्मूलन, धार्मिक आडंबरों का विरोध आदि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हो।

28 नवम्बर, 1890 को महात्मा ज्योतिराव फुले का निर्वाण हो गया। इस मौके पर समाजसेवी राहुल सैनी टीटू सैनी ऋषि राज गिरीश सैनी शिवम सैनी गोपी सैनी श्यामू सैनी चेतन सैनी आदि मौजूद रहे

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