टोंक रत्न डॉ. सैयद माकूल अहमद ‘नदीम’: उर्दू अदब का काबिल फ़रज़न्द

Dr. CHETAN THATHERA
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Tonk । फारसी जुबान के लफ्ज़ ‘चारागर’ ने हिन्दी भाषा में तगड़ी घुसपैठ की है, जिसका तर्ज़ुमा इलाज करने वाले डॉक्टर, चिकित्सक, हकीम या वैद्य के तौर पर लिया जाता है। टोंक में एक शख्स ऐसा भी मौजूद है, जिसका जिक्र हम सिर्फ मुलाजिमात के तौर पर ही नहीं करते बल्कि उसकी अदबी खिदमात को काबिले- गौर समझते हैं।

नसर के माहिर और उर्दू जुबान के निहायत ही काबिल बेटे की शक्ल में जिसकी अक्कासी जेहन में उभरती है, उसे टोंक के बाशिन्दे डॉ. सैयद माकूल अहमद नदीम के नाम से जानते हैं। एक उम्दा अफसानानवीस (कहानीकार) के तौर पर नदीम के अफसानों की ताजगी आकाशवाणी से लेकर ऑल इण्डिया रेडियो तक से प्रसारित हुई।

आकाशवाणी व ऑल इण्डिया रेडियो पर गूंजी कहानियां

आकाशवाणी से ‘मुंशी प्रेमचन्द एण्ड अदर उर्दू ग्रेट्स’ का तब्सिरा और ऑल इण्डिया रेडियो से उनकी कहानियां प्रसारित हुई। उनकी कहानियों को देश भर के जरीदों और रिसालों में बाकायदा खूब तवज्जो और मशहूरी मिली। बकौल माकूल के आजाद भारत के टोंक में बावड़ी इलाके से ताल्लुक रखने वाले सैयद मोहम्मद अहमद (मुंसिफ व सेशन कोर्ट में रीडर) के घर 1 जुलाई 1964 को पैदा हुए नदीम बचपन से ही जहीन रहेेेे। उर्दू, इतिहास व शिक्षा में एम. ए., एम. फिल., एम. एड. और पी. एच. डी. तक की तालीम हासिल करने वाले नदीम को कमसिनी से ही अफसाने लिखने का शौक रहा। तख़्लीकी तौर पर उनके रूझानात बेहद उम्दा रहे। उनकी कहानी ‘रिश्तों का दर्द’ पढ़कर पाकिस्तान के मशहूर ड्रामानिगार मुराद काशिफ ने नदीम की बेसाख़्ता तारीफ करते हुए जिक्र किया कि शायद नदीम दरिया-ए-बनास के साहिल पर बैठकर अफसाने लिखते होंगे, जो पानी की मौजों में रवानी की मानिन्द महसूस होती है, बाखुदा! वही तसव्वुर उनके अफसानों में नजर आता है। उनके द्वारा लिखी गई कहानियों में ‘सादा कागज’ व ‘आखिऱ क्यों’ खासी मकबूल रहीं। नदीम साहब की दानिशमंदी और हुनरमंदी का कायल शहर में हर कोई है।

सरकारी कोर्स में शामिल हुई नदीम की किताबे

 

बहुत कम लोग जानते हैं कि नदीम की हिन्दी और उर्दू में लिखी 20 लघु कहानियां देश भर की पत्र- पत्रिकाओं में शाया हो चुकी हैं। नदीम द्वारा लिखे गए 125 मुसव्विदे, मजमून, मकाले और तब्सिरे अखबारों में भी शाया हो चुके हैं। भाषा पर पकड़ होना कोई मामूली बात नहीं है, उर्दू भाषा के काबिल डॉक्टर नदीम का लोहा समय- समय पर शासन और प्रशासन ने भी माना, उन्हें जिला प्रशासन ने 2002 और 2010 में सम्मानित भी किया। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- राजस्थान ने भी 2002 में नदीम का सम्मान किया। उनके द्वारा सम्पादित कक्षा 10 की ‘उर्दू कोर्स रीडर’ पुस्तक भी बोर्ड ने 1999 से 2003 तक चलाई। उदयपुर के प्रख्यात सरकारी संस्थान एसआईईआरटी ने भी उनका लिखा लेख ‘दिलचस्प अदब’ अपनी किताब में छापा और कक्षा 6 व 7 के लिए उनकी पुस्तक ‘उर्दू निस्ब’ को कोर्स में शरीक किया। राजस्थान पाठ्यपुस्तक मण्डल ने भी उनके द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘राजस्थान उर्दू रीडर’ को कक्षा 4 के लिए स्वीकृत किया। वे एनसीईआरटी- नई दिल्ली, राजस्थान उर्दू अकादमी, एपीआरआई- टोंक तथा भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनारों में कई मर्तबा पत्र वाचन भी कर चुके हैं। नदीम आज भी बरसों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- राजस्थान व एसआईईआरटी की उर्दू पाठ्यक्रम समिति के समन्वयक सदस्य हैं।

जिले के सर्वोत्कृष्ट मंच संचालक

एक बात जो खास तौर से माकूल साहब के बारे में कही जाती हैं, वो ये कि उनके जैसा रवां तल्लफुज (धाराप्रवाह उच्चारण) टोंक में किसी और का नहीं। खालिस उर्दू भाषा में मंच संचालन करना नदीम के ही इख्तियार में है। उर्दू जुबान की खिदमतगारी के तौर पर नदीम का मुकाम हमेशा आला दर्जे का रहा। अदब की दुनिया में ऐसे कई लोग मशहूरी पा गए, जिन्होंने तमाम हथकण्डे अपनाकर कौम की आंंखों में धूल झौंकी। अदब के ऐसे फर्जी रवन्ने एक मुद्दत के लिए मंजरे- आम पर तो आ गए मगर लोगों के दिलों में जगह ना बना सके। आज भी माकूल साहब उनियारा (टोंक) में अतिरिक्त मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के पद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनका मिजाज पहले जैसा ही है। मशहूरी की हसरतों से दूर, बेलाग और बेगरज़।

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम