किन्नर के मरने के बाद मातम नही खुशियां मनाई जाती है, क्यों जाने पूरा रिवाज

Dr. CHETAN THATHERA
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Bhilwara News । किन्नर यानी की तीसरी जाती थर्ड जेंडर जिसे कुछ समय पहले बड़ी ही राक्क्त की नजरों से देखा जाता था लेकिन सरकार द्वारा थर्ड जेंडर को मतदान का अधिकार देने के बाद इनके जीवन शैली में भी सुधार आने के साथ ही इनको समाज में एक मान्यता भी मिली और दर्जा भी मिला है वैसे मान्यताओं के अनुसार किन्नर की बख्शीश दुआ आशीर्वाद बहुत फनी फूलती है अक्सर हम देखते हैं कि अपने घर में मांगलिक कार्य शादी और बच्चा होने तथा त्योहारों पर किन्नर घर घर आते हैं और इनाम स्वरूप हिट लेकर जाते हैं लेकिन वास्तविक जिंदगी में यह त्योहार नहीं मनाते किन्नर समाज में किन्नर की मौत पर मातम नहीं मनाया जाता बल्कि खुशियां मनाई जाती है और गालियां दी जाकर चप्पलों से पीटा जाता है और रात को उनका अंतिम संस्कार होता है । क्या है इन के रीति रिवाज आइए हम जानते हैं ।

किन्नरों के रीत-रिवाज़

भारत में ऐसा माना जाता है की शायद किन्नर के पास कुछ आध्यात्मिक शक्ति होती है जिससे उनको अपनी मौत का आभास हो जाता है किन्नर अपनी मौत से कुछ दिन पहले खाना-पीना बंद कर देते है।

और इस दौरान वह कही भी जाना पसंद नहीं करते। वह अपना अंतिम समय सिर्फ पानी पीकर बिताते है। वह मरते हुए अपने लिए और वाकी किन्नरों के लिए यही दुआ करते है की अगले जन्म में वह किन्नर ना पैदा हो।

उनके आसपास के जानने वाले किन्नर मरने वाले से दुआ लेने आते है किन्नरों में ऐसा माना जाता है की मरने के समय किन्नर की दुआ काफी असरदार होती है। वह हमेशा यह एहतियात बरतते है की मरने की खबर उनके अलावा किसी और को ना हो। अंतिम संस्कार करने से पहले मरने वाले को खूब गालिया दी जाती है और जूते चप्पल से मारा जाता है। जिससे अगर उसने कोई अपराध किया हो तो उसका प्रायश्चित हो जाए। और अगले जन्म में पूर्ण इंसान पैदा हो।

मरने वाले को अंतिम संस्कार के लिए चार कंधों पर नहीं बल्कि खड़ा करके ले जाया जाता है। किन्नरों का ऐसा मानना है की अगर कोई बाहरी मरने वाले को देख ले तो मरने वाला फिर अगले जन्म में किन्नर ही पैदा होता है।

किन्नर का अंतिम संस्कार आधी रात के समय होता है ताकि कोई यह सब ना देख पाए। मृत शरीर को जलाने के जगह दफनाया जाता है। किन्नर की मौत के एक हफ्ते तक किन्नर के साथी पूरे एक सप्ताह तक व्रत रखते है और मृतक के लिए दुआ मांगते है की अगले जन्म में वह साधारण इंसान की तरह पैदा हो। किन्नर के मरने पर मातम नहीं मनाया जाता वल्कि वह ख़ुशी मानते है। इनके यंहा ऐसी मान्यता है की किन्नर की मृत्यु होने से उसे इस नर्क के समान जीवन से मुक्ति मिली है।

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम