भोपाल / कोरोना काल में प्रदेश के प्रसिद्ध कड़कनाथ मुर्गे की देश और विदेशों में तेजी से मांग बढ़ी है, जिसकी पूर्ति करना यहां के मुर्गा व्यवसायियों के लिए अब मुश्किल हो चला है। ऐसे में कड़कनाथ की बढ़ती मांग को देखते हुए राज्य सरकार सहयोग के लिए आगे आई है। शासन ने इसके उत्पादन और बिक्री बढ़ाने के लिये विशेष योजना तैयार की है। इससे कुक्कुट पालकों की आय में भी इजाफा होगा और देशभर के लोगों को उनका प्रिय कड़कनाथ आसानी से मिल सकेगा।
क्यो है मांग
स्वाद और सेहतमंद गुणों के चलते इस मुर्गे की मांग पूरे देश में है। इसकी खासियत यह है कि कड़कनाथ का शरीर, पंख, पैर, खून, मांस सभी काले रंग का होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ कम वसा, प्रोटीन से भरपूर, हृदय-श्वास ओर एनीमिक रोगी के लिए सभी चिकित्सक इसका सेवन लाभकारी बताते हैं। मध्य प्रदेश में फिलहाल कड़कनाथ पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम के अधिकृत विक्रेता चिकन पार्लर पर लोगों के लिये उपलब्ध है। प्रदेश के मूल झबुआ जिले की ये प्रजाति अब यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा-पंजाब समेत कई राज्यों में पानी जाने लगी है। झबुआ में इसकी हैजरी (बच्चे) बड़ा उद्योग बन गई है।
इस संबंध में अपर मुख्य सचिव पशुपालन जे. एन. कंसोटिया के अनुसार कड़कनाथ कुक्कुट पालन को सहकारिता के माध्यम से बढ़ावा देने के लिये झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी और धार जिलों की पंजीकृत कड़कनाथ कुक्कुट पालन समितियों के अनुसूचित जनजाति के 300 सदस्यों को एनएलआरएम में प्रशिक्षण दिया गया है। झाबुआ जिले का चयन कड़कनाथ की मूल प्रजाति के लिये प्राप्त जीआई टैग के कारण किया गया है। योजना में 33 प्रतिशत महिलाओं को स्थान दिया गया है।
जेएन कंसोटिया के अनुसार प्रत्येक चयनित हितग्राही को नि:शुल्क 28 दिन के वैक्सीनेटेड 100 चूजे, दवा, दाना-पानी का बरतन और प्रशिक्षण देने के साथ ही उनके निवास पर शेड भी बनाकर दिया जायेगा। राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम पालन-पोषण, प्रशिक्षण, मॉनिटरिंग, दवा प्रदाय और मार्केटिंग की व्यवस्था सुनिश्चित करेगा।
कडकनाथ मुर्गे के कितने रूप
जनसंपर्क अधिकारी सुनीता दुबे के अनुसार कड़कनाथ मुर्गे की तीन प्रजातियां होती हैं। पहला एकदम काला, जिसके पंख पूरी तरह से काले होते हैं। दूसरा पेंसिल्ड, इस मुर्गे का आकार पेंसिल की तरह होता है। इस शेड में कड़कनाथ के पंख पर नजर आते हैं। गोल्डन कड़कनाथ मुर्गे के पंख पर गोल्डन छींटे दिखाई देते हैं। अब कड़कनाथ मुर्गों की घटती प्रजाति को बढ़ाने के लिए मशीनों का सहारा मिल गया है। दरअसल ठंड के दिनों में इस प्रजाति के मुर्गों की डिमांड बहुत अधिक होती है। ऐसे में वेटनरी कॉलेज, महू और कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ स्थित हैचरी में अंडों को मशीनों की मदद से गर्म किया जाता है और 18 दिनों तक मशीनों में रखकर चूजे निकाले जाते है। इसके बाद इन चूजों को जरूरत के अनुसार देश-विदेश तक भेजा जाता है।
विदेशों में भी मांग
आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ में पाए जाने वाले कड़कनाथ की मांग सर्दियों के दिनों में देश ही नहीं विदेशों में भी होती है। भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे श्रीगंगानगर, दक्षिणी छोर कर्नाटक, हैदराबाद, केरल से लेकर गोरखपुर तक इस प्रजाति के मुर्गे की मांग है। यही नहीं कई एनजीओ भी झाबुआ क्षेत्र से मुर्गे व चूजे लेकर बाहर जाते हैं। अधिक डिमांड की हालत यह है कि इस सीजन में कृषि विज्ञान केंद्र स्थित हैचरी में हर महीने पांच से सात हजार चूजे निकलने के बाद भी मांग से कम ही आपूर्ति हो पा रही है।
कड़कनाथ की क्या विशेषताएं
तत्व
कड़कनाथ
अन्य प्रजातियां
विकास का समय
90-100 दिन
40-45 दिन
वजन
1250 ग्राम/ 90-100 दिन
2 कि.ग्रा./40-45 दिन
क्रूड प्रोटीन
25%-27%
17%-18%
कैलोरी
2400-2500 कैलोरी
3250-2800 कैलोरी
फैट
0.73 से 1.03 %
13 से 25 %
कोलेस्ट्राल
184.75 मि.ग्रा./100 ग्राम
218.12 मि.ग्रा.
लिनोलिक एसिड
24 %
21 %
बीमारियां
कम संक्रामक
अधिक संक्रामक बेक्टीरियल एवं वॉयरल बीमारियाँ