चेन राजा बली बद्धो दान बेन्द्रो महाबलः
तेन त्वां प्रति बन्धामि रक्षे माचल माचल
महादानी राजा बलि को अमरता के लिये स्वंय भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर कलाई मे रक्षा सुत्र मोलि बाॅधी थी । तभी से मौलि बाधने की परम्परा चली आ रही है जो राजा बलि की उदारता दान शीलता और धैर्य का प्रतीक है। मौलि मे तीन रंग हरा पिला लाल उदारता दानशीलता और धैर्य सम्बधि गुण होने से यजमान को मौलि बाॅध कर इन तीनो गुणो की कामना की जाती है। मौलि तीनो देव ब्रहमा विष्णु महेश तथा तीनो देवीयो दूर्गा लक्ष्मी तथा सरस्वती की कृपा दृष्टि बरसा कर वरदान दिलाती है । महाशक्ति दायिनी माॅ दूर्गा शक्ति प्रदान कर प्रशासन एंव नेत्त्व करने की क्षमता देती है। ब्रहमा की अनुकम्पा से किर्ति यश प्राप्त होता है। स्वंय शिव शंकर दूर्गणो एंव संकट का विनाश करते है।
चन्द्र मौलि स्वंय शिव है क्योकि उनके सिर पर चन्द्र विराजमान है मानव शरीर जड सिर है। जिसमे सुषुम्ना इडा एंव पिंगला नाडियो का जाल है इनका सन्धि स्थान हाथ की कलाई है जिसे मणिबन्ध कहते है। मौलि हाथ की कलाई मे बाॅधने से त्रिक दोष का निवारण होता है एंव त्रिक फलो की प्राप्ति होती है। उदाहरणतः रोगो मे वात पित व कफ रोगो पर नियन्त्रण एंव रोगो से छुटकारा मिलता है। मौलि के बाधने से सिधे आत्मा को नियन्त्रित करने से सत्व रज और तम तीनो गुण मानव मे सन्तुलित होते है।
सर्व प्रथम पुरूष का जन्म सृष्टि रचियता ब्रहमा के दाहिने कन्धे से एंव स्त्री का जन्म बाये कन्धे से हुआ इसलिये स्त्री को पुरूष के वाम अंग मे प्रतिष्ठित किया जाता है। तथा मौलि पुरूष के दाहिने हाथ मे व स्त्री के बाये हाथ मे बाॅधी जाती है । स्त्री के बाये व पुरूष के दाये हाथ की हस्त रेखाये देखी जाती है। बैध द्वारा स्त्री के बाये हाथ की नाडी देखकर रोग का पता लगाया जाकर निवारण किया जाता है। क्योकि स्त्री को बांमांगी कहा गया है। अतः पूजा पाठ मागलिक कार्य के समय स्त्री को बाये अंग बिठाया जाता है जो धर्म की ही नही स्वंय सृष्टि के रचियता ब्रहमा की भी परम्परा है।
बाबूलाल शास्त्री
मो 9413129502, 9261384170
मनु ज्योतिष एंव वास्तु शोद्य संस्थान