मांगलिक योग:- वैवाहिक / दाम्पत्य जीवन दोष एंव निवारण

liyaquat Ali
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           बाबू लाल शास्त्री

 

जिस जातक की जन्मकुण्डली में मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम द्वादश भावों में स्थित होता है तो उसे मांगलिक कहा जाता है । उपरोक्त भावों के अलावा द्वितीय भाव मेें मंगल की स्थिति को भी मंगली दोष मानते है । अर्थात यदि वर की जन्मकुण्डली के उपयुक्त भावों में से किसी भाव मंें मंगल हो तो वर या वधु के जीवन को खतरा हो सकता है । जिसका कारण मंगल अग्नि तत्व प्रधान ग्रह है । अनिष्ट व मारकेश होने पर मृत्यु कारक है किन्तु यही एक योग से मंगल मृत्यु का कारण नही बन सकता है, क्योंकि मंगल ग्रह साहस, पुरूषार्थ, आत्म बल व उच्च शिखर का कारक है । पापी ग्रह ओर भी है । नव ग्रहों में मंगल ग्रह के अलावा सूर्य, शनि राहु, केतु पाप ग्रह है । बुध इन ग्रहों के साथ होने या सम्बन्ध बनाने से पापी है अतः यदि एक व्यक्ति के पूर्ण भावों में मंगल के साथ-साथ उक्त ग्रह हो तो वह द्विगुण, त्रिगुण मंागलिक हो जायेगा । पाप ग्रह जहाॅं पर जातक को आकस्मिक धन लाभ प्राप्त कराते है । वहाॅं पर भौतिक सुखों में कमी लाते है एंव मृत्यु कारक होते है ।

लग्न शरीर है । चन्द्रमा मन है । शुक्र रति है । मंगल स्वंय कामदेव है । गुरू उच्च शिखर पर ले जाने वाले एंव सुखों की प्राप्ति एंव सम्मान दिलाने वाले है ।

 

वर के लिए शुक्र पत्नि कारक है कन्या के लिए गुरू पति कारक है अत: इनकी शुभता व अशुभता का सुगमता से अध्ययन किया जाना आवश्यक है –

1. यदि वर की कुण्डली मंगली दोष मुक्त है किन्तु उसका सप्तमेश सप्तम भाव तथा पत्नि सुख कारक ग्रह, शुक्र बलवान है तो मांगलिक कन्या से विवाह होने पर पत्नि सुख प्राप्त होगा । उसी प्रकार सप्तमेश सप्तम भाव व गुरू बलवान हो तो मंागलिक वर से विवाह होने पर पति सुख प्राप्त होगा ।

2. यदि एक को मंागलिक दोष हो एंव दूसरे का लग्नेश अष्टमेश बलवान हो तो मंागलिक होना आवश्यक नही है ।

3. यदि एक के मंगल हो एंव दूसरे के मंगल के अलावा शनि, राहु सप्तम भाव में हो या भाव पर दृष्टि डालते हो तो मंगल दोष के सदृश्य ही कार्य करेगें । दाम्पत्य सुख का सम्बन्ध सप्तम भाव से ही नही है । द्वादश भाव का सम्बन्ध भोग तथा चतुर्थ भाव का शयन सुख से है । अतः जीवन साथी के लग्न चतुर्थ, सप्तम, अष्टम द्वादश में शनि राहु की स्थिति से जीवन साथी का मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है ।

4. यदि वर वधु की राशि में मैत्री हो, ग्रह स्वामी एक हो अथवा तीस गुण से अधिक गुण मिलान हो तो मांगलिक दोष नही रहता ।

5. यदि सप्तम भाव मंे मंगल की मेष, वृश्चिक राशि है एंव मंगल सप्तम भाव में है या कहीं से सप्तम भाव को देख रहा है तो मंगली दोष नही होगा क्योंकि सप्तम भाव का स्वामी स्ंवय मंगल है । यदि मंगल केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी होकर केन्द्र मंे बैठा हो तो हानि नही करेगा ।

6. गुरू, शुक्र बलवान होकर केन्द्र में बैठे हो मंगली दोष से खतरा नही होगा ।

विवाह में विलम्ब:-

विवाह में विलम्ब का कारक ग्रह शनि है सप्तम भाव शनि या सप्तमेश से शनि का संबंध हो तो विवाह मंे विलम्ब होता है । ऐसे जातक का विवाह 32 वर्ष से 39 वर्ष के मध्य हो पाता है । कभी-कभी यह सीमा 42-43 वर्ष भी पार कर जाती है । शनि व राहु की युति सप्तमेश व शुक्र निर्बल होने से एंवशनि राहु की सप्तम भाव पर दृष्टि होने से विवाह 50 वर्ष की आयु में होता है । सप्तम भाव में शनि पूर्व जन्म के दोष दर्शाता है एंव पूर्व जन्मों के कर्मो का ज्ञान भी कराता है । सप्तम भाव से विवाह में विलंब, विवाह प्रतिबंध, सन्यास योग आदि दर्शाता है । शनि की सूर्य से युति जातक के विवाह में बाधायें एंव विलंब पैदा करती है । चन्द्र से युति घातक एंव राहु मंगल केतु से अनिष्ट कारक होती है । सप्तम भाव केन्द्रवती भाव है जिसमंे शनि बलि होता है । किन्तु सप्तम भाव के एक ओर शत्रु भाव एंव दूसरी ओर आयु भाव होता है । अतः सप्तम भाव का स्वामी शनि होने से दोनो भावो मे छठे आठवे भावो मे एक भाव का स्वामी होगा क्यांेकि शनि दो राशियों मकर कुंभ का स्वामी है । सिद्धांत के अनुसार केन्द्रस्थ, पापग्रह अशुभ फल देते है । सप्तमस्थ शनि तुला मकर कुंभ राशि मंे होने से शश योग निर्मित होता है जिससे जातक उच्च पद प्रतिष्ठ होता है । किन्तु चारित्रिक दोष से बच नही पाता

उपाय:- विवाह में विलंब के लिये निम्न उपाय किये जाना चाहिये ।

1. शनिवार को पीपल के वृक्ष को मीठा जल चढायें व सात परिक्रमा करें ।

2. शनिवार को काली गाय व कोवों को मीठी रोटी एंव बंदरों को लडडू खिलायें ।

3. शनिवार को छायादान करें, हनुमानजी की पूजा करें, सूर्य की उपासना करें, शनि के गुरू शिव है अतः शिव आराधना करें । दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करें ।

4. रामायण की चैपाई – सौ तुम जानहू अंतरयामी, पुरवहू मोर मनोरथ स्वामी का जाप करें।
दोषों को बढावा देने में स्ंवय मानव दोषी है पूर्व में हमारे गाय पाली जाती थी जिसका दूध, दही सात्विक गुण विधान एंव गुरू, चन्द्र शुक्र ग्रह का प्रभाव देता था । वर्तमान में भैंस व बकरी के दूध से राक्षसी पाप ग्रहों के गुण प्राप्त होेते है जिससे कथनी-करनी में फर्क, तामसी प्रवृति की ओर मानव अग्रसर है । देश की आबादी में तीन गुणा वृद्वि होने पर भी विवाह न होने का कारण वर्तमान में कल्चर का कुप्रभाव है । ग्रहों की पीडा निवारण के साथ – साथ जो उर्जा ईश्वर से मिली है उसका फल तो भोगना है किन्तु जो उर्जा ईश्वर से नही मिली है उसको प्राप्त की जा सकती है । जिसके लिए आवश्यक है ईश्वर की आराधना नियमों की पालना एंव व्यसन संबंधी बुराईयों का त्याग करना । स्पष्ट है कि जैसा खायें अन्न वैसा होवे मन ।

बाबूलाल शास्त्री (साहू)
मनु ज्येातिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक
बड़वाली हवेली के सामने, सुभाष बाजार टोंक (राज.)
मोबाइलः- 9413129502, 9261384170

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