भवन निर्माण करते समय वास्तुपुरूष का महत्व

liyaquat Ali
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वास्तु पुरूष – वास्तुपुरूष का महत्व भवन निर्माण करते समय भुखण्ड पर निर्माण योजना से है। यह वास्तुकला की मूल परम्परा है। वास्तुपुरूष एक है। उसे भवन निर्माण की योजना बनाते समय विभिन्न प्रकार से परिकल्पित किया जाता है । वास्तुपुरूष का विभाजन भवन विशेष की योजनानुसार परिकल्पित किया जाता है ।

 

ज्योतिष शास्त्र अनुसार काल पुरूष से करने पर मेष-सिर, वृष-मुख, मिथुन – भुजा कंधे, कर्क – छाती हृदय, सिंह – पेट दिल, कन्या – गुर्दे, तुला – नाभि गुप्तांग, वृष्चिक – लिंग गुदा, धनु – जंघाये, मकर – घुटने, कुंभ – पिण्डलियंा, मीन – चरण पैर, वास्तु पुरूष ईषान कोण में सिर करके अधोमुख होकर स्थित है जिसका सिर षिखी में, बांया नेत्र दिति में, दांया नेत्र पर्जन्य मंे, मुख आप में, बांया कान अदिति में, दायंा कान जयन्त में, बायंा कंधा भुजंग में, दांया कंधा इन्द्र में, बायी भुजा सोम, भल्लाट, मुख्य नाग और रोग में तथा दायीं भुजा सूर्य सत्य भृष अंतरिक्ष और अनिल में है,

बांया मणि बंध पापयक्ष्मा में दांया मणि बंध उषा में, बांया हाथ रूद्र और राजयक्ष्मा में, दांया हाथ सावित्र और सविता में है, छाती आप वक्ष में, बांया स्तन पृथ्वीधर में, दायंा स्तन अर्यमा में है, हृदय ब्रहमा में, पेट मित्र तथा विवस्वान में, बांयी बगल शोष तथा असुर में, दांयी बगल वितथ तथा वृहतक्षत में, बंाया घुटना वरूण तथा पुष्पदत में, दांया घुटना यम तथा गंधर्व में, बांयी जंघा सुग्रीव में, दांयी जंघा भृगराज में, लिंग इन्द्र तथा जय में, बायंा निंतब दोवारिक में, दाया निंतब मृग में तथा पैर पिता में है । अतः काल पुरूष वास्तु पुरूष अनुसार पुरूषांगो की कल्पना स्वत ही हो जाती है ।

वास्तु पुरूष के किस अंग (अवयव) पर कोन सा निवेष निर्माण निहित या अविहित है यह ज्ञात होना आवष्यक है । सिर, मुख, हृदय, दोनो स्तन और लिंग यह वास्तु पुरूष के मर्म स्थान है, इन स्थानो में कोई शल्य हो अथवा कील खभा पोल आदि गाड दिया जाये तो गृह स्वामी के अंग में पीडा या रोग उत्पन्न हो जायेगा । भूखण्ड मे कौन सा भाग किस देवता विशेष के पद पर विन्यास है यह सब ज्ञान वास्तुपुरूष के चित्र से स्पष्ट हो जाता है ।

उदाहरणार्थ जिस स्थान पर वास्तुपुरूष का सिर (मस्तक) है वहा जूते खोलने का स्थान है या पखाना हो तो उसका दुष्परिणाम गृहस्वामी के साथ-साथ घर मे रहने वाले सभी प्राणियो को भोगना पडेगा । उस घर मे कपूत सन्ताने पैदा होगी। बेटा यदि बाप के जूते लगाए एंव पत्नि पति से वेवफाई करे तो कोई आश्चर्य नही होगा।

घर का मुख्य प्रवेश द्वार जहां से अतिथि और हम स्वंय घर मे प्रवेश करते है। अनुकुल वास्तु का प्राणाधार है। घर का मुख्य द्वार भुखण्ड की आकृति राजमार्ग पर आधारित होता है। तथा किसी भी दिशा मे हो सकता है परन्तु मुख्य द्वार की स्थापना योजना पूर्वक होनी चाहिए जिससे घर मे लक्ष्मी आवक अच्छी रहे एंव घर मे रहने वाले सभी प्राणी स्वस्थ व प्रसन्न रहें। मुख्य द्वार एक प्रकार से स्वस्थ मन की तिजोरी की चाबी है। जिसके माध्यम से घर मे प्राकृतिक वायु प्रकाश एंव अनुकुल रश्मियो का प्रवेश होता है । मकान के दांयी तरफ की खिडकिंयां का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है ।

सूर्य पुत्र संतान का प्रतिनिधि है, यदि मकान के दांयी ओर की खिडकिंया कमजोर व टूटी-फूटी है तो परिवार में पुरूष संतति कष्ट में होगी, यदि दांयी खिडकी पर दरार है तो परिवार में पुरूषो पर संकट रहेगा । दरार राहु केतु का प्रतिनिधित्व करती है जो कि सूर्य के शत्रु कहे गये है । यदि दायंी ओर की मृख्य खिडकी रसोई में खुलती है तो परिवार के पुरूष वर्ग गुस्सेल होगें क्योकिं सूर्य खिडकी का प्रतिनिधि, शुक्र रसोई का एंव मंगल अग्नि का कारक है ।

यदि दांयी ओर की खिडकी किसी गोदाम में खुलती है तो ऐसे घर में पिता-पुत्र लडेगें, गृह स्वामी का पुत्र तमोगुणी होगा । यदि घर में सूर्य का प्रकाष नही पहुंच रहा हो, मकान के पूर्व में कोई खिडकी न हो, मकान के भीतर दिन में अंधेरा रहता हो, खाने पीने की वस्तुओं पर प्रकाष की किरण नही पहुंचती हो तो वंहा पर सूर्य-षनि की युति का प्रभाव होने से मकान के स्वामी एंव निवासियंो को बैचेनी, नींद न आने की बीमारी, थकान आदि होगी ।

घर में बायंी खिडकी का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता है ं। चंद्रमा ज्योतिष में स्त्री ग्रह एंव जगतमाता का रूप है । यदि घर की बायंी ओर वाली खिडकियां दुरस्त है उसमें से सही प्रकाष व हवा यदि घर में आ रही है तो घर की स्त्रियंा सुखी एंव सम्पन्न होगी । इसके विपरीत होने पर स्त्रियां आलसी तथा मानसिक रूप से विकृत होगीं । चद्रंमा मस्तिष्क है और घर बायंी ओर का अंत पाप ग्रह केतु से प्रताडित होता है । यदि बांयी खिडकी के पास दरार हो या बंायी खिडकी घर के धान्य संग्रह स्थल में खुलती हो तो घर की स्त्रियों को अस्थमा दमा की षिकायत रहती है ऐसे घर पर चन्द्रमा शनि केतु का प्रभाव लक्षित होता है ।

यदि घर की बांयी खिडकी के सामने कूडादान हो तो घर की स्त्रियां बीमार रहेगी, शादी विवाह मांगलिक कार्यो में परेषानियंा आयेगी । घर की खिडकियां चाहे बायी हो या दायी हो अगर बंद है, विकृत है तो परिवार की सम्पन्नता व ऐष्वर्य धीरे-धीरे नष्ट हो जायेगंा ।

वास्तु शास्त्र अनुसार स्नान गृह में चद्रंमा का वास होता है तथा शौचालय में राहु का ं। अतः किसी भवन में स्नान गृह एंव शौचालय एक साथ अटेच हो तो चंद्रमा को राहु से ग्रहण लग जाता है क्योंकि चंद्रमा मन का एंव जल का कारक है एंव राहु विष का कारक है । अतः दोनो की युति होने से जल विषयुक्त हो जाता है ं।

राहु पृथक्ता जनक ग्रह है अतः इसका कुप्रभाव जब जातक के मन पर पडेगा तब दुष्प्रवतिंया जन्म लेती है । राहु को सर्प एंव चंद्रमा को सोम (अमृत) कहा गया है । अतः विष अमृत इन दोनो का साथ रहना जीवन के लिये कष्टकारी है जिसका विपरीत प्रभाव उसमें निवास करने वाले व्यक्तियो के मन एंव शरीर पर पडता है जिससे हीन विचार एंव अनेक व्याध्ंिायां, शारीरिक रोग उत्पन्न होते है ।

ईषान कोण का स्वामी पति कारक गुरू षिव का स्थान है, षिव आदि पुरूष है । अग्नि कोण का स्वामी पत्नि कारक शुक्र शक्ति का स्थान है, शक्ति आदि नारी है । षिव ने शक्ति के स्थान मंे तथा शक्ति ने षिव के स्थान मंे सतुंलन बनाया है तथा समस्त ब्रहमाण्ड में सृष्टि की रचना की हैं।

आग्नेय एंव ईषान कोण में दोष हो तो दामपत्य जीवन में बाधा आती है । आग्नेय कोण में शयन कक्ष होने से तलाक अलगाव, दहेज के आरोप, मुकदमा आदि की स्थिति पैदा होती है । ईशान कोण में पति-पत्नि को शयन नही करना चाहिये क्योंकि रोग पैदा होने की संभावना रहती है ।

अतः स्पष्ट है कि वास्तु सही रूप से जीवन जीने की एक कला है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही धर्म से संबधित भी है यदि वास्तु धर्म से संबधित नही होता तो पुराणो मे वास्तु देव पूजा कहा से आती वास्तु के सभी नियमो का पालन कर निर्माण करवाना संभव नही, जो हो गया उसी का रोना रोते रहना भी गलत है। मात्र अकेला वास्तु ही कोई दुष्प्रभाव नही दिखला सकता जब ग्रह दशा ही विपरीत हो तभी अपना प्रभाव दिखलाता है । साधारण मानव द्वारा अपनी दैनिक दिनचर्या में थोडा परिवर्तन कर वास्तु दोष निवारण के सरल उपाय कर सफल एंव सुखद जीवन जीने की आंकाक्षा जगा सकता है ।

प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठने के बाद पृथ्वी माता को नतमस्तक होकर प्रणाम करें एंव आषिर्वाद ले । पूजा पाठ, ध्यान, विधा अध्ययन आदि शुभ कार्य पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करने चाहिये । दीपक का मुंह पूर्व की ओर करके रखा जाये तो आयु की वृद्वि होती है । उत्तर की ओर धन की प्राप्ति होती है । पंश्चिम की ओर रखा जाये तो दुख तथा दक्षिण की ओर रखा जाये तो हानि होती है ।

दीपक की जगह बल्ब, टयुबलाइट समझने चाहियें । पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विधा की प्राप्ति, दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्वि होती है, पष्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिंता तथा उत्तर की तरफ करके सोने से हानि तथा आयु क्षीण होती है । शास्त्र अनुसार अपने घर में पूर्व की तरफ सिर करके ससुराल में दक्षिण की तरफ सिर करके तथा परदेष में पष्चिम की तरफ सिर करके सोये किंतु उत्तर की तरफ कभी सिर करके नही सोये, गृहस्थी के शयन कक्ष अन्न भंडार गो शाला गुरू स्थान रसोई तथा मंदिर के उपर नही होना चाहिये ।

दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग की करना चाहिये । पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढती है । दक्षिण की ओर मुख करके खाने से पे्रतत्व की प्राप्ति होती है ।पंश्चिम की ओर मुख करके खाने से मनुष्य रोगी होता है । उत्तर की ओर मुख करके खाने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है ।

 

 

बाबूलाल शास्त्री (साहू)

 

babu lal shartri,tonk
मनु ज्येातिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक
बड़वाली हवेली के सामने, सुभाष बाजार टोंक (राज.)

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