✍ सिस्टम को अंगूठा दिखाती अनिल जांदू की ग्राउंड रिपोर्ट
श्रीगंगानगर । शिक्षा से वंचित बेटियां घर में बैठी है उन्हें नहीं मालूम कि निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 क्या है ? जब आजतक स्कूल की शक्ल ही नहीं देखी तो फिर भला पोषाहार, साईकिल और दुग्ध अमृत वितरण योजना का उन्हें क्या मालूम ? उनकी मां आज भी सिगड़ी के धुएं में खांसती हुई रोटियां बनाती है उसे नहीं मालूम की उज्ज्वला योजना क्या है ?
श्रीगंगानगर शहर के सबसे बेहतरीन वार्ड 13 में रहने वाले इन पांच परिवारों का कसूर सिर्फ इतना है कि वह बाहर से आये है और पिछले 15 वर्षों से श्रीगंगानगर में रह रहे है। गरीब जरूर है लेकिन मेहनतकश लोग है, छोटे – छोटे बच्चे और महिलाएं सभी लोगों के घरों में मजदूरी और झाड़ पोचा कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं । छह साल की नताशा ने इस सच्चाई को कबूल कर खुशी से जीना सीख लिया की अब वो कभी भी पढ़-लिख नहीं पायेगी। पांच परिवारों ने खूब धक्के भी खाए, मिन्नतें भी की, पर सब व्यर्थ।
अब पढ़ाई, चिकित्सा और हर सुविधा में आधार बाधा बन गया। पुरानी आबादी के चावला चौक पर नामदेव चक्की के सामने वाली गली में रहने वाले पांच गरीब परिवारों के बच्चे पढऩा चाहते हैं।
पर समझ नहीं आ रहा कि मजबूर वो लोग है या फिर हमारा सिस्टम। कई वर्षों से इन परिवारों के वोट तक नहीं बने है इस कारण ये परिवार राशन सहित सभी मुलभुत सुविधाओं से वंचित है। देश, राज्य और जिले तक फैले इस ”विकास” शब्द से आशा है कि मुलभुत सुविधाएँ तो दूर श्रीगंगानगर शहर में 15 वर्षों से रहने वाले इन लोगो को पहचान तो दिला दो….??