एपीआरआई में प्रदर्शनी एवं भक्तिकाल और समरसता विषय पर भाषण का आयोजन

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Tonk। आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में मंगलवार को भक्तिकाल और समरसता विषय पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मुफ़्ती इस्लाउद्दीन खिज़र (अरबी स्कॉलर) ने कुरआने पाक एवं डॉ. जिया टोंकी ने तिलावत नात शरीफ़ पढ़कर किया।

भक्तिकाल और समरसता विषय पर अपने संबोधन में डॉ. मनु शर्मा ने कहा कि भक्तिकाल का समय विक्रम संवत 1375 से 1750 तक रहा। इससे पूर्व का काल चारण काल एवं वीरगाथा काल था। अमीर खुसरो से भक्ति काल प्रारम्भ हुआ। खुसरो ने समाज का प्रतिनिधित्व किया।

उनके विचारों ने देश की संस्कृति को प्रभावित किया। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की पुस्तक ’’संस्कृति के चार अध्याय’’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पुस्तक सभी को पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति, समाज का दर्शन कराती है। भक्तिकाल के अन्य कवियों अब्दुल रहीम खान खाना, मीरा, सूरदास एवं तुलसी आदि के बारे में विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सांझा संस्कृति से ही देश का भविष्य सुरक्षित है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महबूब उस्मानी ने सामाजिक समरसता की आज के समय नितांत आवश्यकता बताई। संस्थान के निदेशक डॉ. सैयद सादिक़ अली ने कहा कि देश की बौद्धिक संस्कृति को मजबूत करने के लिए विस्तार भाषण की आवश्यकता बताई और कहा कि देश को सांझा संस्कृति बहुत आवश्यक है क्योंकि यह देश को एकसू़त्र में जोड़ने का कार्य करती है।

उन्होने कहा कि विस्तार भाषण श्रृंखला में डॉ. पीसी जैन साहिब, लेखक एवं सामाजिक चिंतक, टोंक 29 मार्च को प्रातः 11.00 बजे ’’गांधीवाद और वर्तमान परिदृश्य’’ विषय पर अपना विस्तार भाषण देंगे तथा राजस्थान संस्कृति महोत्सव पर प्रदर्शनी 29 मार्च तक जारी रहेगी। कार्यक्रम का संचालन मौलाना जमील अहमद, पूर्व अनुवादक फ़ारसी, एपीआरआई, टोंक ने किया।

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