वाराणसी की याद हमें इसलिए आई कि हमारे ‘सुरसंगत’ के सक्रिय साथी सुशीलचंद जैन बनारसी बाबू हैं और इन दिनों आभासी समूह में एक लंबे धारावाहिक उपन्यास ‘जश्न -ए- बर्बादी’ की रोज एक कड़ी लिख रहे हैं। बदलती हुई प्राचीन काशी नगरी का मंजर वे ऐसे सटीक तरीके से खींच रहे हैं कि समूह के सदस्यों को बेताबी से अगले दिन की कड़ी का इंतजार रहता है। उनके उपन्यास का नायक क्योंकि हिंदी फिल्में देखने की दीवानगी में अपनी जवानी खराब कर चुका है इसलिए शहर के घाटों, मंदिरों, रास्तों, मोहल्लों व प्रमुख स्थानों के साथ साथ वहां के सिनेमाघरों के पुराने सुनहरे दिनों तथा बाद की गिरावट और उनके एक एक कर बंद होने का उसमें प्रमुखता से जिक्र आया है।
अचानक आज बीबीसी की साइट पर शाकाहारी वाराणसी पर फीचर देखा तो इस नगरी के बारे में और जानने की उत्सुकता बढ़ गई।
यह जान कर आनंद हुआ कि ईसा से भी 1800 साल पहले से आबाद इस धरती पर बसा यह सबसे पुराना शहर पूरी तरह शाकाहारी है। लोक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर ने यह नगर बसाया। इस नगरी में दुनिया भर से शिव भक्त ही तीर्थयात्रा पर नहीं आते हैं बल्कि सभी आस्थाओं के लोग यहां के मंदिरों में शीश नवाने आते हैं। इनके साथ अन्य पर्यटकों का रेला भी लगा रहता है। एक प्रकार से वाराणसी भारत की आध्यात्मिक नगरी है।
यहां आने वाले पर्यटकों के लिए एक नया आकर्षण यहां के शाकाहारी व्यंजन भी बन गए हैं। दुनिया भर के जाने माने होटलों के दिग्गज बावर्ची यहां के शाकाहारी व्यंजनों से प्रेरणा लेकर अपने यहां नवाचार करते हुए वाराणसी के परंपरागत निरामिष भोजन के व्यंजन परोसे कर अपने ग्राहकों को लुभाने लगे हैं।
लंदन में तो एक नया भारतीय रेस्त्रां का नाम ही बनारस रखा गया है जो वाराणसी का ही पुराना नाम है जो अंग्रेजों के जमाने में प्रचलित था।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति के शेफ अतुल कोचर ने जब वाराणसी के एक मंदिर में कुट्टू के आटे का बना सागारी परांठा खाया तो उसके स्वाद से इतने मुग्ध हुए कि अमरीका के मैनहट्टन के अपने होटल जूनून की रसोई में भी उसे शामिल कर लिया।
भारत के हर शहरी घर में जिनका नाम मशहूर है उन शेफ संजीव कपूर ने भी अपने लेखन में शाकाहारी व्यंजनों में वाराणसी के भोजन की खूब तारीफ की है।
शाकाहारी भोजन सात्विक माना जाता है जिसमें प्याज और लहसुन का प्रयोग भी वर्जित होता है। बिना प्याज लहसुन वाला शाकाहारी भोजन क्योंकि हम जोधपुर वालों का भी भोजन रहा है इसलिए यह खबर हमें आल्हादित कर गई।
पहले वाराणसी के होटलों में विदेशी तथा अन्य मांसाहारी पर्यटकों के लिए मीट परोसा जाता था। मगर 2019 से ऐसा होना रुक गया है जब उत्तरप्रदेश की सरकार ने वाराणसी के प्रत्येक मंदिर के 250 मीटर के घेरे में मीट की बिक्री तथा उपभोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इस प्रतिबंध ने स्थानीय होटलों को स्थानीय घरों में बनने वाले शाकाहारी भोजन को अपने यहां परोसने को प्रोत्साहित किया और शीघ्र ही नई शाकाहारी रेसिपी अंतराष्ट्रीय ख्याति पा गई।
हर साल की भांति इस बार भी हमारे साथी सुशील जी दिवाली मनाने अपने मूल स्थान गए हैं। वे लौटेंगे तब इस प्राचीन नगरी का आंखो देखा हाल सुनेंगे।