सुप्रीम कोर्ट ने कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर से मजिस्द हटाए

Supreme Court judges and lawyers had a T20 match, lawyers lost
FILE PHOTO-SUPRME COURT

नई दिल्ली/ सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में वक्फ बोर्ड को इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मजिस्द को 3 माह में हटाने के निर्देश दिए हैं इस आदेश की पालना नहीं होने पर स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट सहित अन्य अधिकारियों के पास उसे हटाने या ध्वस्त करने का विकल्प रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मस्जिद को हटाने के हाईकोर्ट के आदेश को यथावत रखा है और इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया है ।

हाई कोर्ट ने 8 नवंबर 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मस्जिद को हटाने का आदेश देते हुए वक्फ बोर्ड को 3 माह में मस्जिद कोर्ट परिसर से हटाने के लिए कहा था लेकिन उस आदेशों की पालना आज तक नहीं हुई।

इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मस्जिद ऐसी जगह पर बनी हुई है जिसकी लीज खत्म हो चुकी है और इसे अधिकार के रूप में उसी तरह रखे जाने का दावा नहीं किया जा सकता।

इसके साथ ही यह भी कहा कि जमीन एक पट्टे की संपत्ति थी जिसे खत्म कर दिया गया है और इसे जारी रखने के अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते। 

बेंच ने याचिकाकर्ता द्वारा विचाराधीन निर्माण को गिराने के लिए 3 महीने का समय देते हुए कहा कि आज से 3 माह की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है तो हाईकोर्ट समेत अन्य अधिकारियों के पास उसे हटाने या ध्वस्त करने का विकल्प होगा ।

मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे ऐसे ही हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता सिब्बल ने कहा कि 2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया ।

नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है अगर सरकार हमें वैकल्पिक स्थान देती है तो हमें स्थानांतरित करने में कोई समस्या नहीं है जबकि हाईकोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा है कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है।

क्योंकि दो बार नवीनीकरण के आवेदन इस संबंध में आए थे और इस बात की कोई सुगबुगाहट नहीं थी कि मस्जिद का निर्माण किया गया था उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बरामदे या हाईकोर्ट के बरामदे में नमाज अता करने की अनुमति दी जाती है तो यह जगह फिर से मस्जिद नहीं बन जाएगी ?