कोरोना से सुरक्षा के उपायों में ढील खतरनाक होगी

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कोरोना से सुरक्षा के उपायों में ढील खतरनाक होगी Relaxation in safety measures from Corona will be dangerous

महामारी के वायरस का नया संस्करण ओमिक्रॉन दुनिया भर के 91 देशों में फैल गया है। बताया जा रहा है कि पांच प्रतिशत से अधिक परीक्षण सकारात्मकता दर से सामने आ रहे हैं जो चिंता बढ़ाते हैं। कोरोना वायरस के नये रूप ओमिक्रॉन की वजह से लोगों के मन में यह आशंका होना स्वाभाविक ही है कि क्या देश में इस महामारी की तीसरी लहर आ सकती है? यूके में एक अध्ययन के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि कोरोनावायरस ओमिक्रॉन दूसरी लहर में कहर ढाने वाले डेल्टा की तुलना में कोई कम खतरनाक है। वायरस के इस नये वेरिएंट के बारे में भारत सरकार ने जो सलाह जारी की है उसमें भी इसके खतरे को खारिज नहीं किया गया है और कहा गया है कि ओमिक्रॉन भारत समेत अन्य देशों मे फैल सकता है। केंद्र सरकार की एड्वाइज़री में कहा गया है कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि नया वेरिएंट किस पैमाने पर फैलेगा और इसकी गंभीरता क्या होगी। मगर ऐसा भी माना जा रहा है कि इस बीमारी की गंभीरता कम रहेगी। हालांकि इस बारे में अभी वैज्ञानिक सबूत जुटाए जा रहे हैं और लगभग रोज ही नए-नए सबूत सामने आ रहे हैं। भारत सरकार ने सार्स-सीओवी-2 जीनोम सीक्वेंसिग लैब का एक नेटवर्क स्थापित किया है ताकि कोविड के अलग-अलग वैरिएंट्स पर नज़र रखी जा सके। इस जीनोमिक्स कंसोर्टियम ने अपने नवीनतम बुलेटिन में हालांकि कहा है कि देश में ओमिक्रॉन की गंभीरता के अभी तक कोई स्पष्ट सबूत नहीं है। फिर भी उसने यह जरूर दर्ज किया है कि यह नया वेरिएन्ट वैश्विक स्तर पर चिंताजनक स्तर पर तेजी से बढ़ रहा है। देश में ओमिक्रॉन के रोगियों का आंकड़ा 200 को पार कर गया है और स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि यह देश के लिए चिंता का कारण है। कहा गया है कि मामलों की जैसी प्रगति ब्रिटेन या फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में देखी जा रही है यदि वैसा भारत में होता है तो यहां की आबादी के हिसाब से 14 लाख दैनिक मामलों का सामना करना पड सकता है। सरकार ने चेतावनी दी है कि भारत में अभी तक वैरिएंट व्यापक नहीं है लेकिन हमें इस स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। देश के 11 राज्यों में इसके संक्रमित रोगी पाए गए हैं। इन राज्यों में राजस्थान तीसरे नंबर पर है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमिक्रॉन दूसरे वेरिएंट से “बहुत अलग” है और इसमें “म्यूटेशन का असामान्य समूह” देखा गया है। वैज्ञानिक हैरान हैं कि सामान्यतः वायरस में जिस तरह के बदलाव होते हैं और जिनकी उन्हें उम्मीद होती है, उनके हिसाब से यह बहुत तेज़ी से बदल रहा है। इसमें कुल मिलाकर 50 म्यूटेशन हुए बताए जा रहे हैं और 30 से ज़्यादा बदलाव स्पाइक प्रोटीन में हुए हैं। वायरस के हमारे शरीर की कोशिकाओं से संपर्क बनाने वाले हिस्से की बात करें तो इसमें 10 म्यूटेशन हुए हैं। दुनिया भर में तबाही मचाने वाले डेल्टा वेरिएंट में दो म्यूटेशन हुए थे। हालांकि सभी म्यूटेशन का मतलब यह नहीं होता कि वे सब बुरे होते हों। लेकिन यह देखना ज़रूरी है कि इसमें क्या-क्या म्यूटेशन हुए हैं। उसी से पता चलेगा कि उसका मानव शरीर पर हमला कितना घातक हो सकता है। जैसे एन501वाई म्यूटेशन कोरोना वायरस के लिए फैलना आसाना बनाता है। कुछ म्यूटेशन ऐसे होते हैं जो एंटबॉडी के लिए वायरस को पहचानना मुश्किल बना देते हैं और इससे वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाता है। कुछ म्यूटेशन इन सबसे बिल्कुल अलग तरह के भी हो सकते हैं। वेरिएंट्स के ऐसे उदाहरण भी हैं जो कागज पर तो डरवाने लगते थे लेकिन उनका कुछ खास असर नहीं हुआ। इस साल की शुरुआत में बीटा वेरिएंट चिंता का कारण बना था क्योंकि वह प्रतिरक्षा तंत्र से बच निकलने में ज़्यादा माहिर पाया गया। लेकिन बाद में यह नहीं बल्कि डेल्टा वेरिएंट पूरी दुनिया में फैल गया और बड़ी परेशानी का सबब बना। बीटा प्रतिरक्षा तंत्र से बच सकता था, डेल्टा वेरिएंट में संक्रामकता थी और प्रतिरक्षा तंत्र से बचने की थोड़ी क्षमता थी।

अब तक जो भी वैक्सीन बनी हैं वे दो साल पहले सामने आए वायरस के पहले रूप से लड़ने के लिए विकसित की गई थीं। यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना की कुछ वैक्सीन की दो ख़ुराक भी हमें ओमिक्रॉन के संक्रमण से नहीं बचा सकती है। हालांकि यह तो सभी मानते हैं कि इस वैक्सीन ने गंभीर रूप से बीमार होने और अस्पताल में भर्ती होने के ख़तरे को कम ज़रूर किया है। कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन में बड़े पैमाने पर म्युटेशन है जो कि कोविड वायरस से सुरक्षित रखने वाली वैक्सीन के असर को भी प्रभावित करते हैं। अब यह सवाल उचित ही उठता है कि मौजूदा वैक्सीन के तीसरे या ‘बूस्टर’ डोज़ से सुरक्षा मिल सकती है या ओमिक्रॉन पहले लगी वैक्सीन की डोज़ की सुरक्षा को तोड़ देने में सक्षम है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि बूस्टर डोज़ हमारे इम्यून सिस्टम के लिए पहले वाली स्थिति की तरह ही नहीं होगी क्योंकि हमारे इम्यून सिस्टम ने खुद भी महामारी के वायरस से बचाव करना सीखा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इम्यून सिस्टम को बूस्टर डोज़ से वायरस की गहरी जानकारी और समझ अधिक बन जाती है जिससे वह उसका प्रतिरोध कर पाने में सक्षम बेहतर हो जाता है। वैक्सीन की हर ख़ुराक शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र या इम्यून सिस्टम में एंटीबॉडी बनने के अगले दौर की शुरुआत कर देती है। वैक्सीन से शरीर में एंटीबॉडीज़ बनती हैं। ये एक चिपचिपे प्रोटीन होते हैं कोरोना वायरस को अपने में लपेट लेते हैं। यह ऐसी एंटीबॉडीज़ बनाती है जो कि वायरस को मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में ले लेती है। इसे यूं समझा जा सकता है कि वायरस को निष्क्रिय करने वाली ये एंटीबॉडीज़ वायरस से चिपक जाती हैं और उसे अपने अंदर बंद कर देती है। इससे वायरस मानव कोशिकाओं पर हमला न कर सके। दूसरी तरफ एंटीबॉडीज़ ‘वायरस को मारने का’ संकेत भी अन्य एंटीबॉडीज़ को भेजती रहती हैं।

ओमिक्रॉन के मामले सामने आने के बाद से दुनियाभर के देश यात्रा प्रतिबंध लगा रहे हैं। अनेक देशों ने यात्रा नियम कड़े कर दिए हैं। विश्व स्तर पर बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी सलाह दी है कि सभी गैर-आवश्यक यात्राओं से बचा जाना चाहिए और उत्सवों में भीड़-भाड़ नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही पुरानी सभी सावधानियों को बरतना भी जारी रखा जाना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अधिकारी का कहना है कि सिर्फ़ सीमाएं बंद करने पर ही हमें निर्भर नहीं रहना चाहिए। सबसे ज़रूरी बात यह है कि इस अत्यधिक संक्रामक वेरिएंट से निबटने की तैयारी की जाए। यह तैयारी यही हो सकती है कि कोरोना महामारी से बचाव के उपाय बरतने में हम कोई ढील न बरतें। भारतीय कंसोर्टियम ने भी सरकार से कहा है कि ख़तरे और आबादी के आधार पर 40 वर्ष से ऊपर के लोगों को बूस्टर डोज़ दिया जाना चाहिए। कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर एंटीबॉडीज़ कोरोना वायरस को और मज़बूती से पकड़ने में सफल होती हैं तो फिर ओमिक्रॉन वेरिएंट के लिए भी मुश्किल होगा कि वो इससे बच सके। नया वायरस काफ़ी म्यूटेशन के साथ है, लेकिन वह अब भी कोरोना वायरस ही है और उसके कई हिस्सों में कोई तब्दीली नहीं हुई है। माना जा रहा है कि टीकाकरण के अगले चरण से इम्यून सिस्टम को और नई एंटीबॉडी मिलेंगी जिससे वो वायरस पर नए तरीक़े से हमला कर उसे परास्त करने के रास्ते भी तलाश लेगी। लेबोरेट्री में लगातार होते प्रयोग और दुनिया के आंकड़े यह भी दिखा रहे हैं कि कोविड वैक्सीन की दो ख़ुराक़ के बाद शरीर में वायरस को मारने वाली जो एंटीबॉडीज़ बनती हैं वे ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ कम प्रभावी हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के प्रतिरक्षा विज्ञानी प्रोफ़ेसर डेनी ऑल्टमैन का यह कथन महत्वपूर्ण है कि आपके पास अब ‘वास्तव में कुछ भी नहीं है’ और आप ‘संक्रमण के ख़तरे के दायरे में हो।’ इसलिए अब वापस वहीं लौटने की ज़रूरत है जहां से हमने कोरोना के विरुद्ध लड़ाई शुरू की थी। चिंता यह भी है कि यदि कोरोना संक्रमण फिर झटका देता है तो उसका असर लोगों के ही नहीं अर्थ व्यवस्था के स्वास्थ्य पर भी होगा। पिछले कुछ दिनों में भारत सहित शेयर मार्केट पर नए खतरे का असर साफ नजर आया जब मार्केट नीचे गिरा।

भारत में उसकी संक्रमणता, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भेद देने की क्षमता और उसकी तीव्रता के बारे में अभी कुछ स्पष्ट नहीं है इसलिए हमें सुरक्षा उपायों के प्रति ढील देना बड़ी चूक होगी। सरकार अपने कदम उठाती है परंतु लोकतंत्र में नागरिक की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण होती है। सामाजिक व्यवस्थाओं में नागरिक वह करते हैं जो उन्हें जंचता है। कोरोना की पिछली दो लहरों ने नागरिकों को भी बड़ा सबक दिया है। सभी जानते हैं कि सुरक्षा ही इस संक्रमण से बचने का बड़ा उपाय है जब तक कि उसके इलाज की प्रभावी दवा न खोज ली जाए। अभी देश की सम्पूर्ण योग्य आबादी को वैक्सीन की दो डोज़ नहीं लग पाई है और बच्चों की वैक्सीन पर कोई निर्णय नहीं हुआ है ऐसे में बूस्टर डोज़ की बात करना बेमानी है। अतः सुरक्षा उपायों में ढील बरतना आग से खेलना होगा।

अतिथि संपादक,
राजेन्द्र बोड़ा
(वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक)

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