मिर्च की फसल में इस मौसम में रोग का सबसे ज्यादा खतरा

Dr. CHETAN THATHERA
4 Min Read

लखनऊ । इस वर्ष कई क्षेत्रों में बारिश व जल जमाव के कारण मिर्च की फसल खराब हो गई है। लेकिन, जो फसल बची है, वह अब फूल व फल की स्थिति में आ गयी है। बहुतेरे मिर्च अब तेजी से वृद्धि कर रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इसी समय मिर्च की फसल पर किसानों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसका कारण है कीटों का प्रकोप इसी समय ज्यादा बढ़ जाता है। इसी समय कुष्ठ रोग भी मिर्च में लगता है, जिससे मिर्च की पुरी फसल बर्बाद हो जाती है। मिर्च की फसल में प्रमुख रूप से नीम का अर्क या बीज काफी फायदेमंद होता है।


इस संबंध में गोण्डा मंडल के उद्यान निरीक्षक अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि मिर्च में पौधे की वृद्धि के लिए हार्मोंस का प्रयोग करना चाहिए। मिर्च की फसल में पुष्प आने के समय प्लैनोफिक्स 10 पीपीएम देना चाहिए। उसके तीन सप्ताह बाद हार्मोन का छिड़काव करने से शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है। इसके साथ ही फल भी अधिक लगते हैं। पौधों में रोपाई के 18 से 43 दिन बाद ट्राई केटेनाल अथवा इस तरह की दवाइयां एक पीपीएम की ड्रेंचिंग करने से भी पौधों में अच्छी वृद्धि होती है। किसानों को जिब्रेलिक एसिड 10-100 पीपीएम सांद्रता को घोल के फल लगने के बाद छिड़काव करने से फल ज्यादा लगते हैं।


रोग और उपचार

मिर्च का पौधा जब छोटा होता है तो उसमें थ्रिप्स नामक रोग लगता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में सिटरोथ्रिट्स डोरसेलिस हुड कहते हैं। छोटी अवस्था में ही कीट पौधों की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं, जिसके कारण पत्तियां ऊपर की ओर मुडकर नाव के समान हो जाती हैं। इसके लिए किसानों को बुआई के पूर्व थायोमिथम्जाम पांच ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोचार करें। नीम बीज अर्क का चार प्रतिशत का छिड़काव करें। रासायनिक नियंत्रण के अंतर्गत फिप्रोनिल पांच प्रतिशत एससी 1.5 मिली एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। एसिटामिप्रिड दो ग्राम एक लीटर या इमिडक्लोप्रिड .3 ग्राम का छिड़काव करना चाहिए।


सफेद मक्खी और उपचार

इस संबंध में प्रगतिशील किसान और मिर्च की वृहद मात्रा में खेती करने वाले गाजीपुर के दीवाकर राय इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेमिसिया तवेकाई है, जिसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं, जिसकी पत्तियां नीचे तरफ मुड़ जाती हैं। इस रोग में कीट की सतत निगरानी कर संख्या के आधार पर डाईमिथएट की दो मिली का छिड़काव करना उपयुक्त होता है।

माइट रोग 

 यह बहुत ही छोटे की होते हैं, जो पत्तियों की सतह से रस चूसते हैं, जिसमें पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती हैं। इस रोग में नीम निबोली के सत का चार प्रतिशत का छिड़काव करे। इसमें डायोकाफाल या ओमाइट का छिड़काव भी फायदेमंद होता है।

डेम्पिंग ऑफ आर्द्रगलन 

इस रोग का कारण पीथियम एफिजडरमेटम, फाइटोफ्थेरा स्पी फफूंद है, जिसमें नर्सरी में पौधा भूमि की सतह के पास से गलकर गिर जाता है। इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम एक ग्राम दवा एक किलो बीज से उपचारित करें।


ये रोग भी लगते हैं मिर्च में

इसके अलावा एन्थेरक्लोज, जीवाणु जम्लानी, पर्ण कुंचन रोग भी प्रमुख रूप से लगते हैं। किसानों को इसके लिए क्रमश: लाइटक्स, कापर आक्साइड का छिड़काव करना चाहिए।

Share This Article
Follow:
चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम