क्या दस साल पहले मीडिया ने देश के साथ छल किया था?

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सिर्फ दस साल पहले की बात है। जब देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब मीडिया सरकार की धज्जियां उड़ाता रहता था। तब लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी थी कि मीडिया भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और सरकार की नकेल उसके हाथ में रहती है।

वह जनमत की अभिव्यक्ति का पर्यायवाची है। लोगों को यह नहीं मालूम नहीं था कि सरकार के खिलाफ वह प्रचार अपनी ही धुन में भारतीय लोकतंत्र को आर्थिक रूप से एक मजबूत नींव के साथ खड़ा करने में जुटे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को हमेशा के लिए हटाने के उद्देश्य से किया गया इनवेस्टमेंट था।

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक इस देश के लोकतंत्र का जो सिलसिला चला आ रहा था, उसे हमेशा के लिए पलट देने के इरादे से बहुत बड़ी योजना तैयार की गई थी, जिसके कुछ स्पष्ट मुद्दे थे।

देश की जनता झांसे में आ गई और भारतीय लोकतंत्र का जो रंगबिरंगा हरा-भरा बगीचा था, उसको तहस-नहस करने का काम शुरू हो गया।

जनता ने टीवी पर होने वाले प्रचार की रौ में बहते हुए नरेन्द्र मोदी को देश का बहुत बड़ा महान नेता मान लिया था। टीवी चैनलों पर कांग्रेस की जड़ों को हिलाने के लिए भ्रष्टाचार का पर्वत खोदने का पाखंड रचा गया था। अब लोग देख रहे हैं कि पहाड़ खोदने के बाद क्या निकला।

भारत एक बहु आयामी, बहु सांस्कृतिक, अनेक पंथी देश है। कांग्रेस पर आरोप लगता था कि वह अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति पर चलती है और देश को सही मायने में स्वतंत्रता सिर्फ कांग्रेस के कारण नहीं मिल पाई है। राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक उन्माद पैदा करने की योजना बनी और सफल हुई।

धार्मिक उन्माद पैदा करने में जिन नेताओं का इस्तेमाल किया गया, वे अब हाशिए पर हैं। मोदी सरकार ने पत्रकारों को सरकार से कई किलोमीटर दूर फेंक दिया है और टीवी के निजी समाचार चैनलों को अपने लाउडस्पीकर के रूप में तब्दील कर लिया है। जिस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को मनमोहन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार की खदान नजर आती थी, उसे अब मोदी सरकार दूध की धुली दिखाई देती है।

इस समय धन का बोलबाला है और नोटबंदी के बाद भाजपा ने अधिकांश धन अपने कब्जे में कर लिया है। जो थोड़ा-बहुत बचा है, वह सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद कब्जे में कर लिया जाएगा। देश की जनसंख्या कितने करोड़ है। उसमें से कितने खर्च करने वाले हैं और कितने सिर्फ जैसे-तैसे जिंदगी गुजार रहे हैं। इसका पूरा गुणा-भाग करने के बाद मोदी सरकार ने देश के लोकतंत्र को हमेशा के लिए अपने काबू में रखने का इंतजाम कर लिया है।

कौन कितने में खरीदा जा सकता है। किसे सैक्स स्कैंडल में फंसाया जा सकता है। किसे राजद्रोह के आरोप में अंदर किया जा सकता है। किस तरह धार्मिक उन्माद का सिलसिला शुरू किया जा सकता है। इंदौर में चूड़ी वाले को पीट दिया और पिटाई के समर्थन में जुलूस निकल गया।

गाय की तस्करी के आरोप में लोग अक्सर पीटे जाते हैं और मारे भी गए हैं। पूरे देश में सैकड़ों, हजारों की संख्या में गांव, कस्बे और शहर हैं, जिनके नाम गलत रख दिए गए हैं, उन्हें बदलना है। कुछ सौ साल पहले कुछ बादशाहों ने यहां शासन किया था और हिंदुओं पर जुल्म ढाए थे। अब उनका बदला लेना है। जब अपनी सरकार बन गई है तो बदला क्यों नहीं लेंगे?

मोदी सरकार मकड़ी की भूमिका में है, जो छोटे-छोटे कीट-पतंगों को फंसाने के लिए जाल बुनती है। यह सरकार गरीब लोगों की हैसियत और क्या समझती है? नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, चंदाखोरी, धार्मिक उन्माद, भगवान राम के नाम पर राजनीति, विरोध में उठने वाली हर आवाज को कुचलने का इंतजाम।

हरेक के बैंक खाते और चुनाव जीतते रहने के लिए उनके खातों में समय-समय पर कुछ रुपयों की बख्शीश। और कई वर्षों तक यह बख्शीश बांटने के लिए राष्ट्रीय संपदा को बेचने का सिलसिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को क्या दे रहे हैं?

अगर कोई यह समझता है कि मोदी के इतने भाषण देने से, दाढ़ी बढ़ा लेने से, इवेंट मैनेजमेंट कर लेने से भविष्य में महापुरुष के रूप में उनका उल्लेख होगा, तो यह गलत है। समय के खाते में हरेक के कार्य दर्ज होते हैं। कौन जनहित में काम कर रहा है, कौन जनता के साथ ठगी कर रहा है, इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं होती है, सब सामने दिखता है।

जब दो गिलास पीने का पानी बीस रुपए में मिलता है तो समझ लेना चाहिए कि देश में कितना जनहित चल रहा है। पेट्रोल, डीजल, गैस, तेल, अनाज, दाल, तमाम जरूरी चीजें पिछले पांच साल में दो गुना से ज्यादा महंगी हो गई हैं। इसका मतलब जनता के साथ ठगी नहीं तो और क्या है?

न्यायपालिका की हालत भी सब देख ही रहे हैं। जजों में रिटायर होने के बाद किसी न किसी बड़े पद पर रहने की लालसा होती है। मंत्री, सांसद, विधायक और पार्षद, नगर सेवक तक अपनी सात पीढि़यों तक का इंतजाम कर देना चाहते हैं।

सामाजिक व्यवस्था ऐसी बना दी गई है कि जिसके पास धन नहीं, वह व्यक्ति मनुष्य कहलाने लायक नहीं। मोदी सरकार ने लोकतंत्र को धन तंत्र में तब्दील कर दिया है। जन प्रतिनिधियों की भूमिका समाप्त हो गई है। वे अब जनता और सरकार के बीच पुल की भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं हैं।

यही हाल मीडिया का है। खास तौर से हिंदी के बड़े अखबार बिना संपादक के सरकारी या कॉर्पोरेट कंपनियों के पर्चे के रूप में निकल रहे हैं। समझा जा सकता है कि दस साल पहले स्वतंत्र मीडिया के नाम पर जनता के साथ कितना बड़ा छल किया गया था।

यह वास्तव में अद्भुत और विपरीत समय है। हिंदुओं में प्रचलित विक्रम संवत्सर में हर संवत्सर को नाम दिया जाता है। अभी संवत्सर 2078 चल रहा है, इसका नाम राक्षस है। इससे पहले संवत्सर 2077 का नाम प्रमाद था। इस दौरान कोरोना आ गया और इसके जरिए पूरी मानवता को हिला देने कोशिश हुई। मोदी सरकार ने देखा कि कोई रुकावट नहीं है।

सबकुछ अपने नियंत्रण में है और विरोध के स्वर उठने की संभावना फिलहाल नहीं है, इसलिए वह मनमाने तरीके से काम कर रही है। और वह अच्छा काम कर रही है, लोगों को यह समझाने के लिए करोड़ों अंधभक्तों की फौज है, जो हमेशा की तरह एक शाश्वत प्रश्न उठाए रहती है कि नरेन्द्र मोदी नहीं तो कौन, क्या पप्पू? या टुकड़े-टुकड़े गैंग? देश को महाशक्ति बनाने का काम चल रहा है। उसमें मीन मेख निकालना इस समय राजद्रोह से कम नहीं है।

Rishikesh Rajoria

Writer

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