मस्तिष्क में उपस्थित कुछ तंत्रिका कोशिकाएँ ( न्यूरोन्स(Nerve cells) धीरे-धीरे क्षय या ख़राब होने लगती है. यह न्यूरोन्स ही मस्तिष्क में डोपामाईन(Dopamine) नाम का हॉर्मोन उत्पन्न करती है यह डोपामाईन हॉर्मोन ही शरीर की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाती हैं, जब इन न्यूरोन्स(Neurons) के क्षय या नष्ट होने की दशा उत्पन्न होने लगती है तो डोपामाईन हॉर्मोन(Dopamine hormone) की कमी आने लगती है डोपामाईन के स्तर में कमी आने के कारण ही शरीर में कम्पन रोग होने लगता है. यह तंत्रिका तंत्र की बीमारी हैं जो इंसान की गतिविधियों में रुकावट पैदा करती है.
जब यह धीरे-धीरे विकसित होता रहता है तो हमें पता भी नहीं चलता है, लेकिन जब कंपकंपी आती है तो पार्किन्सन रोग(Parkinson’s disease) का सबसे मुख्य संकेत बन जाता है तब यह बीमारी अकड़न या धीमी गतिविधियों का कारण भी बन जाता है. यह रोग शुरू में चेहरे के हावभाव कम या ख़तम कर सकता है या चलते समय बाजूयें हिलना बन्द कर सकता है.
आवाज़ धीमी या अस्पष्ट हो सकती है. यह एक या दोनों हाथों में या एक या दोनों पैरों में या गर्दन में कम्पन होने लगता है, समय के साथ जब यह बीमारी ज्यादा होती है तो मरीज़ बहुत परेशान हो जाता है.
पार्किन्सन बीमारी में शरीर अपने आप हिलता है, या गतिशीलता कम हो जाती है, चलने में तकलीफ़ होने लगती है इस रोग का शुरू में पता नहीं चल पाता है, कहीँ सप्ताह या महीनों के बाद पता चलता है.
ईलाज
कहीं पद्धतियों में इस रोग का ईलाज सम्भव नहीं हुआ है, लेकिन यूनानी पद्धति में कम्पन रोग का ईलाज काफ़ी हद तक ठीक हो जाता है और दवाइयां आजीवन भी नहीं खानी पड़ती है. यूनानी दवाओं(Unani medicines) का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है.
यूनानी ईलाज की अवधि _तीन महीने से एक वर्ष तक ही दवा लेनी होती है.
कारक _पार्किन्सन रोग ( कम्पन रोग) के होने के निम्न कारण भी हो सकते हैं
(1) जीन ( Gene’s)
शोधकर्ताओं ने पार्किन्सन रोग में विशिष्ट जेनेटिक उत्परिवर्तनों की भी पहचान कर इसको भी कारण बताया है.
(2) पर्यावरण
आजकल कुछ विषाक्त पदार्थों पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव अंतिम चरण के पार्किन्सन रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है.
जोखिम कारक
(1) बढ़ती आयु _यह रोग युवाओं में बहुत कम पाया जाता है यह आमतौर पर जीवन के मध्य या आखिरी पढ़ाव में शुरू होता है और उम्र के साथ जोखिम बढ़ता रहता है.
यह बीमारी सामान्य तौर पर 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों में विकसित होती है.
(2) आनुवंशिकता _किसी करीबी रिश्तेदार में इस रोग से ग्रसित होने के कारण आपको यह रोग होने की संभावना हो सकती है. हाँलाकि आपके परिवार में किसी सदस्यों को यह बीमारी होना जरूरी नहीं है.
(3) पुरुषों को जोखिम अधिक _महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह रोग ज़्यादा विकसित होने की संभावना देखी गई है.
(4) विषाक्त पदार्थों के सम्पर्क में आना _आजकल प्रयोग में होने वाले वनस्पति नाशकों ( Herbicides) और कीटनाशकों के लगातार संपर्क में आने से पार्किन्सन रोग से खतरा बढ़ने को मिल रहा हैं.
डोपामाईन हॉर्मोन _यह हॉर्मोन शरीर में, खास करके एड्रिनल ग्रंथी और तंत्रिका तंत्र में बनता है. यह हॉर्मोन दिमाग़ और एक्स्ट्रा पिरामिडल तंत्र (Extra pyramidal system)के लिए न्यूरो ट्रांसमीटर(Neuro transmitter) का कार्य कर शरीर के तंत्रिका तंत्र और एक्स्ट्रा पिरामिडल तंत्र को लगातार चलाने में खास भूमिका निभाता है.
मस्तिष्क का ईनाम सर्किट कहलाने वाला यह डोपामाइन हॉर्मोन उन प्रतिक्रियाओं को करता है जो आनन्ददायक होती है जैसे _अच्छा व्यवहार करना, दोस्तों के साथ हँसना या आकर्षक गीत सुनना, पुरस्कारों को बार बार याद करना, दवा लेने की इच्छा जागृत करना, दुष्प्रयोग की ड्रग्स ( जैसे _निकोटिन, कोकिन, मारिजुआना), प्रेरणा, सिखना और ख़ुशी का इज़हार को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है. ऐसे समय में डोपामाइन हॉर्मोन ज्यादा मात्रा में स्राव होता है. इसलिये लोग ज़्यादा आनंद लेने के लिए ऐसी ड्रग्स का उपयोग करने लगते हैं,
अधिक ड्रग्स लेने पर मस्तिष्क में कुलबुलाहट पैदा होती है और यह ड्रग्स उच्च उल्लासोन्माद करने की इच्छा को प्रबल बनाता है, शरीर में डोपामाइन हॉर्मोन नॉर्मल स्तर से अगर कम होता है तो शरीर की गतिविधियों में भी शिथिलता आने लगती है, और इच्छा के विरुद्ध शरीर में कम्पन शुरू होने लगते हैं.
✍️लेख डॉ. लियाकत अली मंसूरी
(न्यूरो डिस्ऑर्डर इन यूनानी)
राजकीय यूनानी औषधालय,
देवली, टोंक ( राजस्थान)