हीज़ामा पद्धति : आज की आवश्यकता

liyaquat Ali
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आज के आधुनिक माहौल में जहां लोगों के पास समय बिल्कुल नहीं है ऐसे में लोग तुरन्त गोली गटकना आसान समझ कर अपने ही शरीर को कमज़ोर बनाये जा रहे हैं. हीज़ामा पद्धति बहुत ही पुरानी लगभग 1400 साल पुरानी पद्धति हैं जिसे यूनानी चिकित्सक लगभग भूल से गये थे जिसकी आज सख्त आवश्यकता आ पडी है.

इस दौर में देखने में आया है कि टोंक के कस्बा देवली में न्यूरो डिस्ऑर्डर बीमारियों का इलाज प्राकृतिक हीज़ामा पद्धति से होने के कारण देवली की ऐसी पहचान बनी हुई है कि लोग यहाँ कहीं जिलों से ईलाज कराने के लिए ताँता लगा हुआ है. तो आइये आपको इस पद्धति से रुबरु कराते हैं.

हीज़ामा पद्धति क्या हैं __इसका अर्थ है – “खिंचाव” (suction).

यह एक तरह का प्राकृतिक खिंचाव है जिसके द्वारा हमारे शरीर की त्वचा के नीचे कोशिकाओं, ऊतकों ( अस्थि बन्धन, कन्डरा, हड्डियाँ और उपास्थियां), मांसपेशियों और नसों के भीतर खून के परिसंचरण में किसी विशेष तरह की रुकावट को दूर किया जाता है. इसे ख़ास कर दर्द या सूजन के लिए उपयोग में लाया जाता है इससे दर्द मिनटों में ग़ायब हो जाता है.

उपयोग 

(1) इससे दर्द का उपचार किया जाता है. जैसे _ऊतकों या मांसपेशियों का दर्द

(2) गांठों की सूजन कम करता है.

(3) त्वचा या मांसपेशियों में खून के बहाव को खोल कर ऑक्सीजन के स्तर को बहाल करता है.

(4) इससे खून के बहाव में रुकावट हटने पर पोषक तत्वों और अवशोषण के स्तर को बढ़ाता है.

(5) कोशिकाओं और ऊतकों में नई संचार व्यवस्था करके उन्हें और मजबूत और निखार देता है

(6) झांईयां और झुर्रियों में पुरानी कोशिकाओं को खत्म करके उनमें नई कैफ़ियत और टोन पैदा करता है.

(7)स्लिप डिस्क या किसी भी जगह दबी नर्व के लिए जगह बना कर उसे सही मुक़ाम पर लाता है.

(8) प्रभावित क्षेत्र में खून के परिवहन को बढ़ा कर स्वस्थ रखता है.

(9) ऊपरी और गहरी कोशिकाओं और ऊतकों की मरम्मत कर उन्हें नई कोशिकाओं में बदलता है. एवं उनमें नई नई रक्त वाहिकाओं को बनाता है जिससे त्वचा की सतह के तापमान को बढ़ाने वाला और सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर को कम करने वाला बनाता है.

(10) इसे चर्म रोग, अर्थ्राइटिस, लकवा, माइग्रेन, एक्ने, चेहरे की छांईयों और गंजेपन के लिए भी ईस्तेमाल किया जाता है.

हीज़ामा तरीका _यह दो तरीके से किये जाते हैं 

(1) सूखा हीज़ामा ( dry cupping)

(2) गीला हीज़ामा (wet cupping).

नोट _यहाँ सिर्फ़ सूखे हीज़ामा के बारे में ही बताया जायेगा.

सबसे पहले हाथों में दस्ताने पहने फ़िर प्रभावित क्षेत्र पर रोगन ए सुर्ख या अन्य तेल लगा कर जरूरत के अनुसार छोटा या बड़ा कप प्रभावित क्षेत्र में रख कर उसे एक निश्चित स्तर पर वैक्यूम करने वाली मशीन (गन) से वैक्यूम किया जाता है इससे प्राकृतिक रूप से चर्म व उसके अन्दर की त्वचा और मांसपेशियों को ऊपर की ओर खिंचा जाता है जिससे अंदर एक तरह का प्राकृतिक घाव बनाया जाता है. इसे कुछ सेकंडों से लेकर 5 या 10 मिनट तक वैक्यूम किया जाता है.

सूखे हीज़ामा के नुक़सान 

(1) असुविधा की वजह से लोग नहीं करवा पाते हैं.

(2) धीरे-धीरे रोग दूर होता है.

(3) हीज़ामा करने पर लाल से निशान हो जाते हैं जो ख़ुद को अच्छा मेहसूस नहीं होता है, हाँलाकि यह निशान थोड़े समय बाद ग़ायब हो जाते हैं

(4) कमज़ोर त्वचा पर फफोले हो सकते हैं जिससे जलन होती है.

(5) देख कर मतली या चक्कर आ सकते हैं.

(6) देखने से सिर दर्द या तनाव हो सकता है.

(7) पसीना या घबराहट हो सकती है. (8) प्रभावित क्षेत्र में खुजली या एलर्जी हो सकती है.

डॉक्टर पहले यह जाँच ले

हीज़ामा करने से पहले डॉक्टर निम्न बातों को जान लेना जरूरी है

(1) मरीज़ को शुगर की बीमारी तो नहीं है.

(2) किसी भी तरह का ऐसा संक्रमण तो नहीं है जो एक दूसरों में फैलता हो, इसके लिए चिकित्सक को दस्तानों का प्रयोग करना चाहिए.

(3) मरीज़ के दिल की बीमारी तो नहीं है (4) मरीज़ को खून की कमी तो नहीं है.

हीज़ामा क्रियाविधि ( Hizama mechanism) 

जब चमड़ी पर हीज़ामा थैरेपी की जाती हैं तो वहाँ प्राकृतिक घाव करना होता है फ़िर उस घाव को अपने आप प्राकृतिक तरीक़े से कहीं तरह की अवस्थाओं से गुजरना पड़ता हैं जिसके परिणामस्वरूप उस घाव में नई कोशिकाओं और ऊतकों का निर्माण होता है जिससे वहाँ की पुरानी ख़राब हुई कोशिकाओं और ऊतकों को एवं वहाँ रक्त वाहिकाओं की रुकावटों को हटा दिया जाता है यह हीज़ामा पद्धति एक प्राकृतिक अवस्था होती है जिसके द्वारा रक्त वाहिकाओं की रुकावट और पुरानी, ख़राब कोशिकाओं और ऊतकों का नवीनीकरण किया जाता है.

घाव भरने की निर्भरता 

( 1)स्थानीय और प्रणालीगत कारक ( local and systemic factors)
(2) नमी ( Moiture)
(3)संक्रमण (Infections)

(4) थकावट (Maceration)

(5) उम्र ( Age)

(6)पोषण स्तिथि ( Nutrition status

(7) शरीर की प्रकृति ( Body type)

 

डॉ. लियाकत अली मंसूरी
डॉ. लियाकत अली मंसूरी

✍️लेख
डॉ. लियाकत अली मंसूरी
न्यूरो डिस्ऑर्डर इन यूनानी
राजकीय यूनानी औषधालय,
देवली (टोंक)

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