टोंक जिले के केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर ( Central Sheep and Wool Research Institute ,Avikanagar ) ने पिछले 60 साल में किसानों और ग्रामीण महिलाओं के साथ आम लोगों के लिए कई शोध किए. अब इन शोध किए गए प्रोडक्ट (product) को बाजार की जरूरत है. संस्थान ने एक खास प्रोडेक्ट बनाया है. जो शहरों में हर घर में काम लिया जा सकता है और वो है गमला ( Flowerpot ) देशी ऊन (country wool) से पौधारोपण के लिए काम आने वाला खास गमला.
देशी ऊन से बनाए गमलो को घरों में, छतों पर, बालकनी में या फिर मैदान में कहीं पर रखा जा सकता है. यह गमला ऊन का होने के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कारगर है. इसकी मोटाई और साइज छोटी बड़ी कर बनाई जा सकती है. सीमेंट और प्लास्टिक का 30 से 40 रुपए में मिलने वाले गमले के बजाए सिर्फ डेढ़ से 2 रुपए में ऊन से बने गमले को काम में लिया जा सकता है.
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर अरुण कुमार तोमर बताते हैं कि ऊन से बने इन गमलो की अभी बाजार में उपलब्धता कम है. इसके लिए संस्थान ने एग्री बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर से एक उद्यमी को रजिस्टर किया है. वह इसकी कमर्शियल मार्केटिंग कर रहा है. इसका कॉस्टिंग 1 से 2 रुपए के बीच में होने के कारण बाजार में डिमांड भी अच्छी खासी है.
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में टेक्सटाइल इंजीनियर डॉ. विनोद कदम ने बताया कि इसको आप घर के पर्सनल यूज़ के लिए भी ले सकते हो और एग्रीकल्चर हॉर्टिकल्चर फॉरेस्ट्री एप्लीकेशंस के लिए भी यूज़ कर सकते हैं. इसमें एडवांटेज यह है कि हम लोग इसकी डेंसिटी और थिकनेस को चेंज कर सकते हैं.
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में टेक्सटाइल इंजीनियर डॉ. विनोद कदम कहते हैं कि प्लास्टिक से बने गमले पर्यावरण संरक्षण के लिए ख़तरनाक होने के साथ महंगा भी पड़ता है. एक दो रुपए में मिलने वाले गमले में पौधे की बढ़वार भी ज्यादा होगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.