श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन भद्रा रहित एवं तीन मुहुर्त से अधिक उदय व्यापिनि श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के अपरान्ह या प्रदोष काल में रक्षा बंधन पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। इस वर्ष श्रावण शुक्ला पूर्णिमा 3 अगस्त सोमवार को सूर्योदय से रात्रि 9.28 बजे तक तीन मुहुर्त से अधिक व्यापिनि है । भद्रा इस दिन पाताल लोक की सुबह 9.25 बजे तक रहेगी, उतराषाढ़ा नक्षत्र सुबह 7.18 बजे तक उपरांत श्रवण नक्षत्र का शुभारंभ है जो 4 अगस्त मंगलवार परात 8.10 बजे तक है।
अत: भद्रा समाप्ति सुबह 9.25 के बाद राखी बांधने का मुहुर्त श्रवण नक्षत्र में सम्पूर्ण दिन व रात रहेगा। रक्षा बंधन का श्रेष्ठ समय परात 9.26 से 10.53 बजे तक शुभ चोघडिय़ा दोपहर 2.12 बजे से सांयकाल 7.10 बजे तक चर, लाभ, अमृत का चोघडिय़ा, अभिजित मुहुर्त दिन में 12.06 बजे से 12.59 बजे तक शुभाशुभ समय है।
मनु जयोतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि श्रावण पूर्णिमा को कजरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन भागवत देवी की पुजा करते हैं, इस दिन स्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 7.19 बजे से आधी रात के बाद 4 अगस्त मंगलवार प्रात: 5.56 बजे तक है, जिसका महत्व 3 अगस्त को भद्रा समाप्ति 9.25 के बाद शुभ योग सम्पूर्ण दिन रात रहेगा ।
ऋग्वैदियों के उपाकर्म का मुख्य काल श्रवण नक्षत्र है, यदि पहले दिन सूर्योदय में श्रवण नक्षत्र नहीं हो एवं निर्णय सिंधु अनुसार दूसरे दिन सूर्योदय के अंतर में दो मुहुर्त हो तो दूसरे दिन उपाकर्म करना चाहिए ।
इस वर्ष 4 अगस्त भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकम मंगलवार को श्रवण नक्षत्र सुबह 8.10 बजे तक है जो दो मुहुर्त से अधिक एवं धनिष्ठा नक्षत्र से युक्त है अत: ऋग्वैदियों का उपाकर्म 4 अगस्त को पूर्वान्ह में किया जाना चाहिए। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि रक्षा बंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक धार्मिक राष्ट्रीय महत्व है जो भाईचारा, भाई, बहिन के भावनात्मक संबन्धों का प्रतिक पर्व है ।
इस दिन बहिन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांध कर उसके जीवन एवं सुरक्षा की कामना करतीं हैं । रक्षा सूत्र सम्मान एवं आस्था प्रकट करने के रुप में भाई चारे का प्रतीक है। रक्षा बंधन की व्यापकता देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा के लिए बांधी जाने की परम्परा आदि काल से चली आ रहीं हैं ।