मां दुर्गा के नौ रूपों का क्या है महत्व और कितने हैं मां के नाम, नवरात्रि मे कैसे करे पूजा-अर्चना

Dr. CHETAN THATHERA
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Bhilwara News । 5 दिन बाद शारदीय नवरात्र शुरू होने वाले हैं हिंदू संस्कृति के अनुसार और प्राचीन ग्रंथों व की ध्वनियों के अनुसार इन नवरात्रा का काफी महत्व है । मां के नौ रूप है उन नौ रूपों का क्या महत्व है तथा मां के कितने नाम हैं आइए जानते हैं इनके बारे में

माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों का अलग अलग महत्व


माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। आइऐ जानते के इनके बारे मे नवरात्रि मे कैसे करे इनकी पूजा -अर्चना
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1— शैलपुत्री
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
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2– ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

3— चंद्रघण्टा

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि−विधान के अनुसार, मां चंद्रघ.टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।

4– कूष्माण्डा

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

5– स्कन्दमाता

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।

6– कात्यायनी

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।

7– कालरात्रि

एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी।।
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

8–महागौरी
श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।

9– सिद्धिदात्री..
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।

माँ दुर्गा के कितने नाम



माता पार्वती ही संसार की समस्त शक्तियों का स्रोत हैं। उन्ही का एक रूप माँ दुर्गा को भी माना जाता है। उनपर आधारित ग्रन्थ “दुर्गा सप्तसती” में माँ के १०८ नामों का उल्लेख है। प्रातःकाल इन नामों का स्मरण करने से मनुष्य के सभी दुःख दूर होते हैं। आइये उन नामों और उनके अर्थों को जानें….

  1. सती: भगवान शंकर की पहली पत्नी। अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाली इन देवी का माहात्म्य इतना है कि उसके बाद पति परायण सभी स्त्रियों को सती की ही उपमा दी जाने लगी।
  2. साध्वी: ऐसी स्त्री जो आशावादी हो।
  3. भवप्रीता: जिनकी भगवान शिव पर अगाध प्रीति हो।
  4. भवानी: समस्त ब्रह्माण्ड ही जिनका भवन हो।
  5. भवमोचनी: संसार बंधनों से मुक्त करने वाली।
  6. आर्या: देवी, पुरुषश्रेष्ठ की पत्नी।
  7. दुर्गा: दुर्गमासुर का वध करने वाली, अपराजेय।
  8. जया: जो सदैव विजयी हो।
  9. आद्या: सभी का आरम्भ।
  10. त्रिनेत्रा: तीन नेत्रों वाली।
  11. शूलधारिणी:शूल को धारण करने वाली।
  12. पिनाकधारिणी: जो भगवान शिव का धनुष धारण कर सकती हो।
  13. चित्रा: अद्वितीय सुंदरी।
  14. चण्डघण्टा: प्रचण्ड स्वर में नाद करने वाली।
  15. महातपा:अत्यंत कठिन तपस्या करने वाली।
  16. मन: मानस शक्ति।
  17. बुद्धि: सर्वज्ञता।
  18. अहंकारा: अभिमान करने वाली।
  19. चित्तरूपा: वो जो मनन की अवस्था में है।
  20. चिता: मृत्युशैय्या के समान।
  21. चिति: सब को चेतना प्रदान करने वाली।
  22. सर्वमन्त्रमयी: सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली।
  23. सत्ता: जो सबसे परे है।
  24. सत्यानन्दस्वरूपिणी: जो अनन्त आनंद का रूप हो।
  25. अनन्ता: जिनका कोई अंत नहीं।
  26. भाविनी: सभी की जननी।
  27. भाव्या: ध्यान करने योग्य।
  28. भव्या: भव्य स्वरूपा।
  29. अभव्या: जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं।
  30. सदागति: मोक्ष प्रदान करने वाली।
  31. शाम्भवी: शम्भू (भगवान शंकर का एक नाम) की पत्नी।
  32. देवमाता: देवताओं की माता।
  33. चिन्ता: चिंतन करने वाली।
  34. रत्नप्रिया: जिन्हे आभूषणों से प्रेम हो।
  35. सर्वविद्या: ज्ञान का भंडार।
  36. दक्षकन्या: प्रजापति दक्ष की पुत्री।
  37. दक्षयज्ञविनाशिनी: दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली।
  38. अपर्णा: तपस्या के समय पूर्ण निराहार रहने वाली।
  39. अनेकवर्णा: अनेक रंगों वाली।
  40. पाटला: रक्तिम (लाल) रंग वाली।
  41. पाटलावती: लाल पुष्प एवं वस्त्र धारण करने वाली।
  42. पट्टाम्बरपरीधाना: रेशमी वस्त्र धारण करने वाली।
  43. कलामंजीरारंजिनी: पायल को प्रसन्नतापूर्वक धारण करने वाली।
  44. अमेय: जो सीमा से परे हो।
  45. विक्रमा: अनंत पराक्रमी।
  46. क्रूरा: दुष्टों के प्रति क्रूर।
  47. सुन्दरी: अनिंद्य सुंदरी।
  48. सुरसुन्दरी: जिनके सौंदर्य की कोई तुलना ना हो।
  49. वनदुर्गा: वन की देवी।
  50. मातंगी: मतंगा की देवी।
  51. मातंगमुनिपूजिता: गुरु मतंगा द्वारा पूजनीय।
  52. ब्राह्मी: भगवान ब्रह्मा की शक्ति का स्रोत।
  53. माहेश्वरी: महेश की शक्ति।
  54. इंद्री: देवराज इंद्र की शक्ति।
  55. कौमारी: किशोरी।
  56. वैष्णवी: भगवान विष्णु की शक्ति।
  57. चामुण्डा: चंड और मुंड का नाश करने वाली।
  58. वाराही: वराह पर सवार होने वाली।
  59. लक्ष्मी: सौभाग्य की देवी।
  60. पुरुषाकृति: जो पुरुष का रूप भी धारण कर सके।
  61. विमिलौत्त्कार्शिनी: आनंद प्रदान करने वाली।
  62. ज्ञाना: ज्ञानी।
  63. क्रिया: हर कार्य का कारण।
  64. नित्या: नित्य समरणीय।
  65. बुद्धिदा: बुद्धि प्रदान करने वाली।
  66. बहुला: जो विभिन्न रूप धारण कर सके।
  67. बहुलप्रेमा: सर्वप्रिय।
  68. सर्ववाहनवाहना: सभी वाहनों पर सवार होने वाली।
  69. निशुम्भशुम्भहननी: शुम्भ एवं निशुम्भ का वध करने वाली।
  70. महिषासुरमर्दिनि: महिषासुर का वध करने वाली।
  71. मधुकैटभहंत्री: मधु एवं कैटभ का नाश करने वाली।
  72. चण्डमुण्ड विनाशिनि: चंड और मुंड का नाश करने वाली।
  73. सर्वासुरविनाशा: सभी राक्षसों का नाश करने वाली।
  74. सर्वदानवघातिनी: सबके संहार में समर्थ।
  75. सर्वशास्त्रमयी: सभी शास्त्रों में निपुण।
  76. सत्या: सदैव सत्य बोलने वाली।
  77. सर्वास्त्रधारिणी: सभी शस्त्रों को धारण करने वाली।
  78. अनेकशस्त्रहस्ता: हाथों में अनेक हथियार धारण करने वाली।
  79. अनेकास्त्रधारिणी: अनेक हथियारों को धारण करने वाली।
  80. कुमारी: कौमार्य धारण करने वाली।
  81. एककन्या: सर्वोत्तम कन्या।
  82. कैशोरी: किशोर कन्या।
  83. युवती: सुन्दर नारी।
  84. यति: तपस्विनी।
  85. अप्रौढा: जो कभी वृद्ध ना हो।
  86. प्रौढा: प्राचीन।
  87. वृद्धमाता: जगतमाता, शिथिल।
  88. बलप्रदा: बल प्रदान करने वाली।
  89. महोदरी: ब्रह्माण्ड को धारण करने वाली।
  90. मुक्तकेशी: खुले केशों वाली।
  91. घोररूपा: भयानक (दुष्टों के लिए) रूप वाली।
  92. महाबला: अपार शक्ति की स्वामिनी।
  93. अग्निज्वाला: अग्नि के समान तेजस्विनी।
  94. रौद्रमुखी: भगवान रूद्र के समान रूप वाली।
  95. कालरात्रि: रात्रि के समान काले रंग वाली।
  96. तपस्विनी: तपस्या में रत।
  97. नारायणी: भगवान नारायण की शक्ति।
  98. भद्रकाली: काली का रौद्र रूप।
  99. विष्णुमाया: भगवान विष्णु की माया।
  100. जलोदरी: ब्रह्माण्ड निवासिनी।
  101. शिवदूती: भगवान शिव की दूत।
  102. करली: हिंसक।
  103. अनन्ता: जिसके स्वरुप का कोई छोर ना हो।
  104. परमेश्वरी: प्रथम पूज्य देवी।
  105. कात्यायनी: ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय।
  106. सावित्री: सूर्यनारायण की पुत्री।
  107. प्रत्यक्षा: वास्तविकता।
  108. ब्रह्मवादिनी: हर स्थान पर वास करने वाली।
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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम