दीपावली महा पर्व लक्ष्मी पूजन मुर्हुत योग

liyaquat Ali
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Tonk News। महालक्ष्मी पूजन प्रदोष युक्त अमावस्या को स्थिर लग्न व स्थिर नवमांश में किया जाना सर्वश्रेष्ठ होता है। इस वर्ष कार्तिक कृष्णा अमावस्या 14 नवम्बर शनिवार को दिन में 2.18 बजे से प्रारम्भ है, जो 15 नवम्बर रविवार को सुबह 10.37 बजे तक है। अत: 14 नवम्बर शनिवार को प्रदोषव्यापिनी अमावस्या होने से इसी दिन दिपावली मनाई जाकर लक्ष्मी पूजन किया जायेगा, जिसमें प्रदोषकाल सांयकाल 5.33 बजे से रात्रि 8.12 बजे तक है । वृष स्थिर लग्न सांयकाल 5.40 से रात्रि 7.37 बजे तक है जिसमें कुम्भ का नवमांश सांयकाल 5.49 से 6.02 बजे तक श्रेष्ठ समय है स्वार्थसिद्वि योग सुबह 6.50 से रात्रि 8.09 बजे तक है। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शौद्य संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि निशीथ काल रात्रि 11.45 से 12.38 बजे तक है। सिंह लग्न अर्द्ध रात्रि 12.07 बजे से अन्तरात्रि 2.26 बजे तक शुभ है। चौघडिय़ा अनुसार सांयकाल 5.33 से 7.12 बजे तक लाभ का, रात्रि 8.52 बजे से रात्रि 10.32 तक शुभ का रात्रि 10.32 से रात्रि 12.11 तक अमृत का, मघ्य रात्रि 12.11 से 1.51 बजे तक चर का तथा अन्तरात्रि 5.10 बजे से अग्रिम प्रात: 6.50 बजे तक लाभ का चौघडिय़ा है जो श्रेष्ठ एवं शुभ है। लक्ष्मी पूजन का सम्पूर्ण दिन एवं रात्रि में पूजन होने से सुबह 8.10 से 9.30 तक शुभ का दोपहर 12.11 बजे से 1.31 बजे तक चर का दोपहर 1.31 से 2.51 बजे तक लाभ का एवं दोपहर 4.11 बजे तक लाभ का चौघडिय़ा है । अभिजित मुर्हुत दिन में 11.47 बजे से दोपहर 12.35 बजे तक है जो श्रेष्ठ है। व्यापारी वर्ग के लिए धनु लग्न सुबह 9.18 से 11.22 तक कुम्भ लग्न दोपहर 1.06 बजे से दोपहर 2.36 बजे तक हैं। देवगुरू ब्रहस्पति अपनी धनु राशि एवं शनिदेव अपनी मकर राशि में विचरण कर रहे हैं। जो शुभाशुभ योग है। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि प्रदोष व्यापिनी तिथि अमावस्या शनिवार वार स्वामी शनि स्वाति नक्षत्र स्वामी राहु चन्द्र राशि तुला स्वामी शुक्र हैं। इन तीनों का उत्तम योग है। कालपुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव तुला राशि शुक्र की हैं। शुक्र सर्वभोगप्रद वीर्यतत्व प्रदान भौतिक सुखों का भोग कारक है। राहु उच्च ख्याति आकस्मिक लाभ का कारक है। ग्रहों का केन्द्र व त्रिकोण मधुर सम्बन्ध होने से विद्या सुख सन्तान भोतिक सुखों, धनकारक महालक्ष्मी योग बन रहा है। साथ ही स्वास्थ्य लाभ पराक्रम वृद्वि सर्व बाधा निवारण के योग बन रहे हैं।

महर्षि बाबूलाल शास्त्री टोक राजस्थान

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